लेख
28-Jan-2024
...


बात उन दिनों की है, जब मैं सन 1985-86 में राजकीय महाविद्यालय देवबंद में छात्र संघ का अध्यक्ष था । उस समय मैं कांग्रेस संगठन में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा चलाए गए कैडर बिल्डिंग प्रोग्राम में भी जिम्मेदारी संभालता था,तब लक्सर के विधायक लंढोरा रियासत के राजा नरेंद्र सिंह हुआ करते थे। मेरे मामा जी पंडित ताराचंद वत्स उन दिनों अखिल भारतीय कांग्रेस स्वतंत्रता सेनानी संगठन के बैनर तले अविभाजित सहारनपुर जिले में जगह जगह चरित्र निर्माण शिविर लगाकर युवा पीढ़ी का चरित्र उत्थान कार्यक्रम चला रहे थे,जिनमे मंत्रियों को आमंत्रित करने के लिए वे अक्सर मुझे लखनऊ भेजते थे। चूंकि विधायक राजा नरेंद्र सिंह हमारी तत्कालीन विधानसभा क्षेत्र लक्सर के विधायक थे,इसलिए मैं उन्हें लखनऊ में शक्ति भवन के पीछे आवंटित विधायक निवास में ही प्रवास करता था,राजा साहब ने मुझे वहां कभी भी जाकर ठहरने के लिए कोठी की एक चाबी दी हुई थी, उनकी कोठी के पास ही विधायक मांधाता सम्राट व विधायक मुलायम सिंह यादव भी रहते थे। उस समय उनके आवास पर विपक्षी पार्टी के विधायक होने के कारण बहुत कम लोग आते थे,इसलिए रहना सुगम था। राजा नरेंद्र सिंह इतने विन्रम व सहज स्वभाव के थे कि लगता ही नही था कि वे लंढोरा रियासत के राजा हो या फिर विधायक हो। एक साधारण आम इंसान की तरह बेहद सादगी के साथ वे ईमानदारी का जीवन जीते थे,जिसका मैं हमेशा कायल रहा। उत्तराखंड राज्य में हरिद्वार जिले की रियासत लंढोरा के अंतिम शासक राजा बलवंत सिंह के पुत्र लक्सर विधायक रहे राजा नरेंद्र सिंह का हाल ही में लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ है। उनके निधन से क्षेत्र के लोग तो दुःखी है ही,मुझे व्यक्तिगत कष्ट की अनुभूति हुई। पूर्व विधायक राजा नरेंद्र सिंह का पार्थिव शरीर जब वीर गुर्जर समाज की प्राचीन रियासत लंढोरा के रंग महल में लाया गया तो उनके अंतिम दर्शन के लिए लोग उमड़ पड़े। उनकी शव यात्रा लंढोरा से चलकर लक्सर के रास्ते कनखल स्थित श्मसान घाट पर पहुची जहां उनके बेटे कई बार विधायक रहे कुँवर प्रणव सिंह चैंपियन ने उनकी देह को मुखग्नि दी। राजा नरेंद्र सिंह का जन्म जनपद हरिद्वार की तहसील रुड़की में स्थित रियासत लंढोरा के अंतिम शासक राजा बलवंत सिंह के यहाँ 4 अप्रैल सन 1935 में हुआ था। उनकी माता का नाम रानी सरस्वती देवी था, जोकि गढ़वाल के पौड़ी जिले के लैंसडाउन के सीमार खाल के ठाकुर रामदयाल सिंह सिंह बिष्ट की पुत्री थी। सन 1804 में नेपाल के गोरखाओ ने टिहरी गढ़वाल की रियासत पर जब आक्रमण कर दिया तो राजा प्रधुमन शाह ने अपनी सेना को एकत्रित कर नेपाल के गोरखाओ की सेना से कडा मुकाबला किया। लेकिन उनके पैर उखड़ने लगे । तभी टिहरी रियासत के राजा ने अपनी और अपने परिवार की रक्षा तथा राज्य की सुरक्षा के लिए रियासत लंढोरा के राजा रामदयाल सिंह से मदद की गुहार लगाई। राजा रामदयाल सिंह पंवार ने टिहरी रियासत के नरेश राजा प्रधुमन शाह का सम्मानपूर्वक स्वागत किया और 12000 सैनिकों की विशाल सेना तैयार कर सेनापति मनोहर सिंह गुर्जर और उप सेनापति लंढोरा रियासत के कुँवर सवाई सिंह के नेतृत्व में टिहरी रियासत को भेज दी। 14 मई सन1804 के खुडबुड़ा युद्ध में गोरखा सेनाओ से एक संयुक्त सेना बनाकर युद्ध आरम्भ कर दिया। सेना तीन टुकड़ियों में बटी थी जिसमे से सबसे पहली बटालियन का नेतृत्व टिहरी नरेश राजा प्रधुमन शाह खुद कर रहे थे दूसरी बटालियन का नेतृत्व राजा राम दयाल सिंह पंवार के बड़े पुत्र लंढोरा रियासत के राजकुमार सवाई सिंह कर रहे थे। तीसरी बटालियन का नेतृत्व लंढोरा रियासत के सेनापति मनोहर सिंह कर रहे थे। लंढोरा रियासत के योद्धाओं ने गोरखाओं पर पुर जोर आक्रमण कर दिया और कुँवर सवाई सिंह सेना का नेतृत्व करते हुए तेजी से आगे बढ़ने लगे तभी गोरख सेना के जरनल अमर सिंह थापा ने रणनीति के तहत कुँवर सवाई सिंह को घेर लिया और उनको घोड़े से उतार लिया और कपट विद्या के चलते घोड़े से उनपर वार कर दिया। जिससे राजकुमार सवाई सिंह युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हो गये। इस कायरतापूर्ण कुकृत्य ने वीर गुर्जर सेना को आग बबूला कर दिया और वह गोरखाओं पर बुरी तरह टूट पड़े और गोरखाओं के टुकड़े टुकड़े कर दिये थे। जिससे युद्ध मे टिहरी रियासत की विजय हुई थी। इसी खानदान के चिराग कुंवर नरेंद्र सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा जूनियर कैम्ब्रिज सेंट जोसफ एकादमी देहरादून से हुई और उच्च शिक्षा सेंट जॉर्जर्स कॉलेज मंसूरी से संम्पन्न हुई। राजा नरेंद्र सिंह को कुश्ती प्रतियोगिता कराना और भारतीय कुश्ती को बढ़ावा देना एवं उच्च कोटि का बृहद विषयो में अध्ययन करना बहुत भाता था। उनके द्वारा महशूर पहलवानो से दंगल आयोजित करावाये गये और कई पुस्तकालय खोले गये। उनके गुरु डॉ शांति प्रकाश आत्रे जो कि पांच विषयों में पीएचडी एवं कुश्ती में रुस्तम ए हिन्द थे,उनके हुनर से बहुत खुश रहते थे। राजा नरेंद्र सिंह सन 1985 में तत्कालीन लक्सर विधानसभा क्षेत्र जो उस समय जनपद सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से सम्बंधित था,के विधायक बने थे। उनका जीवन सादगी से भरा रहा और उनके विचार बहुत ऊंचे थे। उनकी कार्यशेली से उनके क्षेत्र के लोग बेहद प्रभावित रहते थे। राजा नरेंद्र सिंह का विवाह प्रथम पीसीएस अधिकारी डिप्टी कलेक्टर आर एन सिंह की पुत्री रानी सरला देवी के साथ 18 नवंबर सन1961 में हुआ था। राजा नरेंद्र सिंह के यहां 31 अगस्त सन1962 में एक पुत्री ने जन्म लिया जिनका नाम डॉ मधुरिमा पंवार है, जिन्होंने एमबीबीएस, एमडी किया हुआ है। उसके बाद 6 अप्रैल सन1966 को राजा नरेंद्र सिंह के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया, जिनका नाम कुँवर प्रणव सिंह चैंपियन है, वे विभिन्न खेल विधाओ के महारथी रहे है। पिता की विरासत को संभालते हुए वे राजनीति में लगातार चार बार 2002 से 2022 तक उत्तराखंड राज्य में विधायक रहे। उन्हें कई बार कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिला। जिनमे सन 2003 में अध्यक्ष राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग , सन 2012 में अध्यक्ष राज्य वन विकास निगम,सन 2014 में अध्यक्ष राज्य खनिज विकास परिषद शामिल हैं। स्वर्गीय राजा नरेंद्र सिंह का महाप्रयाण एक रिक्तता पैदा कर गया। वे लंढोरा के अपने “रंग-महल” की शान कहे जाते थे। जिन्हें बरसो बरस याद किया जाएगा। उनके निधन पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ,पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत अनेक राजनेताओं, अधिकारियों और आमजन ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। राजा नरेंद्र सिंह को मेरा शत शत नमन। (लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है) ईएमएस / 28 जनवरी 24