राज्य
28-Mar-2024


- एक प्रत्याशी 18 से 22 लाख रुपये तक का दे रहा है ठेका भोपाल (ईएमएस)। 19 अप्रैल से देश में लोकसभा चुनाव का दौर शुरू हो जाएगा। इसके लिए हर क्षेत्र में नेताजी जी-तोड़ तैयारी में जुट गए हैं। राजनीति अब पूरी तरह आधुनिक हो गई है। ऐसे में डोर टू डोर कैंपेन केवल दिखावटी रह गए हैं, क्योंकि प्रचार का पूरा जिम्मा डिजिटल मार्केटिंग वालों ने उठा लिया है। इसमें नेताजी का कंटेट बनाना, ग्राफिक्स के जरिए काम गिनवाना, वीडियो रिकार्ड और एडिट करवाना, इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट करना, रैंक करवाना, अपने क्षेत्र के मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाना आदि कई कार्य यह कंपनियां करती हैं। हालांकि इसके लिए ये कंपनियां प्रति प्रत्याशी 18 से 20 लाख रुपये खर्च करते हैं। यह अनुबंध पूरे चुनाव तक जारी रहता है। आइए जानते हैं कि डिजिटल मार्केटिंग कंपनियां प्रत्याशियों के लिए कैसे काम करती हैं। फेक ट्रेंड और फेक फालोअर्स का खूब प्रयोग एक डिजिटल मार्केटर ने बताया कि इंटरनेट मीडिया पर नेताओं की पोस्ट के लिए फेक फालोअर्स और फेक ट्रेंड का काफी प्रयोग होता है। फेक फालोअर्स को पुल फालोअर भी कहते हैं। इंटरनेट मीडिया पर एक ही व्यक्ति द्वारा कई अकाउंट बनवाए जाते हैं। इससे नेताओं के फालोअर्स बढ़ जाते हैं। हालांकि ये अकाउंट कोई प्रतिक्रिया नहीं कर पाते हैं। वहीं इन्हीं अकांउट के जरिए टविटर पर हैच टैग के जरिए फेक ट्रेंड चलवाया जाता है। पार्टी द्वारा इस हैश टैग के प्रयोग के लिए सदस्यों और नेताओं को कहा जाता है। इससे लोगों को मनोदशा तय की जाती है। दूसरे की पोस्ट दबाने के लिए अपनी पोस्ट ऊंची डिजिटल मार्केटर ने बताया कि इंटरनेट मीडिया पर अगर किसी ने कोई रिव्यू या पोस्ट की है तो उसे हटाना थोड़ा मुश्किल होता है। कई बार लोग रुपये देकर उसे हटवा देते हैं। उस पोस्ट को दबाने के लिए हम नेताओं से इसका कोई सकारात्मक जवाब लेते हैं और कई एंगल से उसे पोस्ट करते हैं, ताकि विपक्षी की पोस्ट से ज्यादा हमारा जबाव ट्रेंड करे। तीन महीने पहले चलाते हैं कैंपेन डिजिटल मार्केटर ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव से तीन महीने पहले कैंपेन चलाते हैं। इस दौरान प्रत्याशी से संबंधित हर जानकारी, दौरा, बैठक, घोषणाएं, मदद आदि जानकारी शामिल होती हैं। इंटरनेट मीडिया पर पिन कोड के हिसाब से क्षेत्र के लोगों को टारगेट किया जाता है। नेताओं के अकाउंट तक स्थानीय जनता को लाया जाता है। नेता की रैली के भाषण, विपक्षी की आलोचना, पेड विज्ञापन आदि प्रसारित करते हैं। नेता अपने कार्यकाल के दौरान किए गए अच्छे कार्यों को शार्ट वीडियो के जरिए दिखाते हैं। रैली से पहले जनता को देते हैं पूरी जानकारी डिजिटल मार्केटर ने बताया कि राजनीतिक पार्टी की रैली या आयोजन जिस स्थान पर होना होता है। पहले हम स्थान की रिसर्च करते हैं। इसके बाद एक ग्राफिक और प्रोमो वीडियो बनाकर इंटरनेटर मीडिया पर पोस्ट करते हैं। इसमें हम लोग ध्यान रखते हैं कि यह पोस्ट उस क्षेत्र की जनता को ज्यादा से ज्यादा दिखे। इंटरनेट मीडिया के डाटा की मदद से टारगेट लोगों तक पहुंचाना आसान होता है। मीडिया मानीटरिंग से विपक्ष पर रहती है नजर डिजिटल मार्केटर ने बताया कि चुनावों में आनलाइन और आफलाइन मीडिया मानीटरिंग होती है। इसमें विपक्ष द्वारा गलत बयानों को, अधूरी जानकारी, गलत जानकारी को हाईलाइट किया जाता है। कई नेता विपक्षी नेताओं के भाषण को तोड़मरोडक़र एडिट करके पेश करवाते हैं। नेताओं के अकाउंट पर रिचर्स करके टीम ही रिप्लाई करती है। ताकि वह जवाब कोई मुद्दा न बने। उन्होंने बताया कि क्षेत्र की जनता से जुडऩे के लिए एसएमएस मार्केटिंग सबसे प्रभावी होती है। इसमें क्षेत्र के ज्यादा से ज्यादा लोगों के मोबाइल नंबर होते हैं। नंबर के साथ ही उनके परिवार और जन्मदिन का डाटा होता है। जन्मदिन पर हम लोग उन्हें शुभकामनाएं भेजते हैं। वहीं कुछ महत्वपूर्ण लोगों के जन्मदिन पर क्षेत्रीय नेता खुद मिलने जाते हैं। इस डाटा के जरिए अपनी बात पहुंचाना आसान होता है। विनोद / 28 मार्च 24