लेख
02-Apr-2024
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केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा पुरानी विक्रय कर व्यवस्था को समाप्त कर, वर्ष 2017 से जीएसटी वस्तु एवं सेवा कर के रूप में टैक्स की जो नई व्यवस्था शुरू की है। उसमें सबसे ज्यादा टैक्स गरीबों को देना पड़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में जब यह टैक्स शुरू हुआ था। उस वित्तीय वर्ष में 7.9 लाख करोड़ रुपए जीएसटी से केंद्र एवं राज्य सरकारों को मिले थे। उसके बाद से दायरा निरंतर बढ़ता चला गया। वस्तुओं पर टैक्स के अलावा सेवाओं को जीएसटी के दायरे में लाकर बहुत सारी चीजों को शामिल किया गया। जिसके कारण जीएसटी का कलेक्शन साल दर साल बढ़ता रहा। वस्तुओं की खरीदी के साथ-साथ अब हर किस्म की सेवा में भी जीएसटी का भुगतान गरीब और अमीर सभी को करना पड़ रहा है। जिन सेवाओं पर कभी कोई टैक्स नहीं लगता था, उन सभी को टैक्स के दायरे में लाया गया है। टैक्स की दरें भी बहुत ज्यादा होने के कारण, जीएसटी का बोझ आम आदमी पर बढ़ता ही जा रहा है। सरकार की प्रतिमाह जीएसटी की कमाई लगातार बढ़ रही है। यह टैक्स जनता से ही वसूल किया जा रहा है। 2017-18 में जीएसटी से 7.19 लाख करोड़, 2018-19 में 11.77 लाख करोड़, 2019-20 में 12.22 लाख करोड़, 2020-21 में 11.36 लाख करोड़, इस वित्तीय वर्ष में कोविड के कारण लंबे समय तक लॉकडाउन लगा रहा। 2021-22 में 14.76 लाख करोड़ रुपए की आय सरकार को हुई। उसके बाद केंद्र एवं राज्य सरकारों ने जीएसटी के दायरे में अन्य वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया। इस कारण 2022-23 और 2023-24 में जीएसटी की आय बड़ी तेजी के साथ बढ़ना शुरू हुई। वर्ष 2023 के मुकाबले में वर्ष 2024 में जीएसटी के कलेक्शन में 22 से 23 फ़ीसदी तक की वृद्धि देखी जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा जो राज्यवार आंकड़े जारी किए गए हैं, उसमें कर्नाटक राज्य से 26 फ़ीसदी, हरियाणा में 23 फ़ीसदी, महाराष्ट्र में 22 फ़ीसदी, पंजाब राज्य में 20 फ़ीसदी, उत्तर प्रदेश में 19 फ़ीसदी, मध्य प्रदेश में 19 फ़ीसदी, गुजरात में 15 फ़ीसदी, राजस्थान में 15 फ़ीसदी तथा बिहार राज्य में 14 फ़ीसदी की दर से टैक्स कलेक्शन में वृद्धि हुई है। वर्ष 2023-24 के मार्च महीने में जीएसटी कलेक्शन 11.5 फ़ीसदी बढ़कर 1.78 लाख करोड रुपए का हो गया है। जो अभी तक का सर्वाधिक जीएसटी कलेक्शन है। यह टैक्स आम जनता से प्रत्यक्ष कर के रूप में वसूल किया जा रहा है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने ऐसी कोई वस्तु अथवा सेवा को नहीं छोड़ा है, जो जीएसटी के दायरे में नहीं आती हो। उन्हीं चीजों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, जिसमें बहुत कम राजस्व की प्राप्ति होती है। भारत के गरीब हों या मध्यम वर्ग हो, किसान हों यह पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं हों। सभी को 12 फ़ीसदी से लेकर 28 फ़ीसदी तक का टैक्स देना पड़ रहा है। लोगों की क्रय क्षमता लगातार घटती चली जा रही है। भारत में सबसे ज्यादा टैक्स गरीबों से वसूल किया जा रहा है। गरीब जितनी भी कमाई करता है, वह पूरी खर्च कर देता है। गरीब के परिवार में दो से तीन लोग काम करते हैं। महीने में 20 से 30000 रूपये किसी भी तरीके से परिवार के सभी सदस्य मिलकर कमाते हैं। जो पैसा उनके हाथ में आता है वह सारा खर्च कर देते हैं। वही सबसे ज्यादा जीएसटी का टैक्स भर रहे हैं। भारत में गरीबों की आबादी सबसे ज्यादा है। कांग्रेस पार्टी इसे गब्बर सिंह टैक्स भी कहती है। जीएसटी का आतंक गरीब और मिडिल क्लास सबसे ज्यादा झेल रहा है। गरीब अपना पैसा शराब, बिड़ी, सिगरेट, गुटखा, तंबाकू और पेट्रोल में सबसे ज्यादा खर्च करता है। इनमें सबसे ज्यादा टैक्स देना होता है। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन अन्य वस्तुएं जीएसटी के दायरे में हैं। सरकार एक गरीब परिवार से 3000 रूपये से लेकर 9000 रूपये तक का टैक्स वसूल करती है। बदले में गरीब परिवार को 2 से 3000 रूपये की आर्थिक सहायता प्रतिमाह केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में गरीबों से प्रत्यक्ष रूप से कभी भी इतना भारी टैक्स नहीं वसूल किया गया, जो जीएसटी के रूप में वसूल किया जा रहा है। गरीबों की 80 करोड़ से ज्यादा की आबादी है। वही सबसे ज्यादा टैक्स अदा कर रहे हैं। सरकार गरीबों को आर्थिक सहायता देकर यह संदेश देती है, कि सरकार उनके लिए पैसा खर्च कर रही है। गरीबों के वोट पाने के लिए इस तरह का संदेश दिया जाता है, लेकिन वास्तविकता यह है, कि गरीबों से पिछले 6 वर्षों में सबसे ज्यादा टैक्स केंद्र एवं राज्य सरकारों ने जीएसटी के रूप में वसूल किया है। मध्यम वर्ग यह मानकर चलता है, कि जो टैक्स वह अदा कर रहे हैं, उससे गरीबों को आर्थिक सहायता दी जा रही है। लेकिन यह अब सच नहीं रहा। मध्यम वर्ग से ज्यादा गरीबों से जीएसटी वसूल की जा रही है। गरीबों से जितना टैक्स वसूल किया जाता है, उससे कम आर्थिक सहायता दी जा रही है। राजनीतिक दल गरीबों के वोट पाने के लिए इस तरह का संदेश मध्यवर्ग और गरीब वर्ग के बीच में देते हैं। भारत में मतदान का अधिकार सभी को प्राप्त है। राजनीतिक दल गरीबों के वोट जो संख्या में 80 फ़ीसदी से ज्यादा होते हैं। उनके एक तरफा वोट जुटाने के लिए इस भ्रम को बनाए रखते हैं। अब यह बात, धीरे-धीरे जनता भी समझने लगी है। महंगाई लगातार बढ़ती चली जा रही है। सरकार का टैक्स कलेक्शन भी उसी हिसाब से बढ़ता चला जाता है। अब गरीब हो या मध्यम वर्ग, सभी को टैक्स देना पड़ रहा है। भारत में विभिन्न माध्यमों से जिस तरह से टैक्स वसूल किया जा रहा है। उसके कारण आम नागरिक की आय का बहुत बड़ा हिस्सा, अमूमन 50 से 65 फीसदी तक, अप्रत्यक्ष कर, जीएसटी, आयकर तथा स्थानीय संस्थाओं के करों के रूप में देना पड़ रहा है। इस कारण आम जनता में असंतोष बढ़ रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकारों को इस ओर समय रहते ध्यान देने की जरूरत है। ईएमएस / 02 अप्रैल 24