लेख
13-Apr-2024
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डॉ. बी.आर. आम्बेडकर की जयंती पर विशेष -- ना हुआ है और ना होगा कोई ....बाबा साहब जैसा (एपीसोड 1) भारत रत्न, महान मर्मज्ञ, अर्थशास्त्री, संविधान शिल्पी, आधुनिक भारत की नींव रखने वाले, इतिहास के ज्ञाता, तत्वज्ञानी, मानव शास्त्र के ज्ञाता, कानूनविद, मानवाधिकार के संरक्षक, पाली साहित्य के अध्ययनकर्ता, महान लेखक, समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, संपादक, बौद्ध साहित्य के अध्ययनकर्ता, मजदूरों के मसीहा, इतिहासविद, प्रोफेसर, शिक्षाविद्, आजाद भारत के पहले कानून मंत्री डाॅ. भीमराव आंबेडकर जिन्हें पूरी दुनिया प्यार और सम्मान के साथ बाबा साहब के नाम से पुकारती है। वह अपने युग के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे राजनेता और एवं विचारक थे। 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। उनका मूल नाम भीमराव है। यूं तो इतिहास में कई महापुरूष हुए लेकिन बाबा साहब जैसा शायद ही कोई हुआ हो। बाबा साहेब ने अपने विचार और काम, दोनों केे जरिए समाज को जो दिया वैसा योगदान किसी और का नहीं है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, संवैधानिक, शैक्षणिक सहित शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जिसमें बाबा साहब का योगदान ना हो। बाबा साहब चाहते थे कि दलितों को जो अधिकार मिलने चाहिए, वे उन्हें हासिल हों, देश-समाज में उनका सम्मान बढ़े, दलितों का स्तर ऊँचा उठे और उन्हें बराबरी का दर्जा हासिल हो। बाबा साहब ने कहा कि उनका जीवन तीन गुरुओं और तीन उपास्यों से कामयाब बना है। उन्होंने जिन तीन महान व्यक्तियों को अपना गुरु माना, उसमे उनके पहले गुरु थे तथागत गौतम बुद्ध, दूसरे थे संत कबीर और तीसरे गुरु थे महात्मा ज्योतिराव फुले थे। उनके तीन उपास्य थे ज्ञान, स्वाभिमान और शील। आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के और भी कई देशों में आम्बेडकरवाद का प्रचार और प्रसार हो रहा है। स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, बौद्ध धर्म, विज्ञानवाद, मानवतावाद, सत्य, अहिंसा ही आम्बेडकरवाद के सिद्धान्त हैं। छुआछूत को खत्म करना, दलितों में सामाजिक सुधार, भारतीय संविधान में निहीत अधिकारों तथा मौलिक हकों की रक्षा करना, जातिमुक्त समाज की रचना ही इसका मकसद है। आम्बेडकरवाद सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक विचारधारा है। बता दें कि वह कुल 64 विषयों में मास्टर थे, 32 डिग्रियों के साथ 9 भाषाओं के जानकार थे, इसके साथ ही उन्होंने विश्व के सभी धर्मों के बारे में पढ़ाई की थी। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मात्र 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की थी। वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑल साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं। बाबा साहेब का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और उनकी माता का नाम भीमाबाई सकपाल है। डॉ बाबा साहेब का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने बचपन से ही जाति भेदभाव और असमानता का सामना किया। वे ज़िंदगी भर समाज में अधिकार, समानता और न्याय के लिए संघर्ष करते रहे। उन्हें बचपन से ही पढ़ने का शौक था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की और अंततः लंदन के अंग्रेजी विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद भारत लौटे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे। भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना जीवन सामाजिक सुधार कार्यों में लगा दिया। वे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की। इसके बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में अधिक बीता। डाॅ आम्बेडकर ने आजादी मंे भी अहम योगदान दिया। साथ ही पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने के साथ ही दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की। डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जी व उनका का परिवार संत कबीर की विचारधारा से खासा प्रभावित था और संत कबीर के ज्ञान को आधार बनाकर जीवन जीता था। हिंदू पंथ में व्याप्त कुरूतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकार सन 1951 में बाबा साहब ने बौद्ध धर्म अपना लिया था। 14 अप्रैल को उनका जन्म दिवस आम्बेडकर जयंती के तौर पर भारत समेत दुनिया भर में मनाया जाता है। बाबा साहब का महापरिनिर्वाण 6 दिसंबर 1956 को राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में हुआ, इस दिन को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। ---------------- आंबडवे गांव का रहने वाला था परिवार --------------- बाबा साहेब का पूरा नाम भीमराव रामजी आंबेडकर हैं। आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमा बाई की 14 वीं व अंतिम संतान थे। आम्बेडकर के दादा का नाम मालोजी सकपाल था। उनका परिवार कबीर पंथ को मानने वाला मराठी मूूल का था और वो वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव के निवासी थे। वे दलित महार जाति से संबंध रखते थे, जो तब अछूत कही जाती थी। भीमराव आम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत रहे थे और उनके पिता रामजी सकपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में सेवारत थे। यहां काम करते हुए वे सूबेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी। 1896 में आम्बेडकर जब पाँच वर्ष के थे तब उनकी माँ की मृत्यू हो गई थी। मां के निधन के बाद उन्हें बुआ मीराबाई संभाला, जो उनके पिता की बड़ी बहन थी। मीरा बाई के कहने पर रामजी ने जीजा बाई से पुनर्विवाह किया ताकि बालक भीमराव को माँ का प्यार मिल सके। बालक भीमराव जब पाँचवी अंग्रेजी कक्षा पढ रहे थे, तब उनकी शादी रमाबाई से हुई। रमाबाई और भीमराव को पाँच बच्चे भी हुए जिनमें चार पुत्र यशवंत, रमेश, गंगाधर, राजरत्न और एक पुत्री इन्दु थी। किंतु यशवंत को छोड़कर सभी संतानों की बचपन में ही मृत्यु हो गई थीं। प्रकाश, रमाबाई, आनंदराज तथा भीमराव यह चारो यशवंत आम्बेडकर की संतानें हैं। मुंबई में बाबा साहब के परिवार में यशवंत (बेटे), डॉ. आम्बेडकर, रमाबाई (पत्नी), लक्ष्मीबाई (उनके बड़े भाई बलराम की पत्नी), मुकुंद (भतीजे) और इसके साथ ही उनका कुत्ता टोबी भी उनके साथ रहता था। प्रकाश आम्बेडकर, भारिपा बहुजन महासंघ का नेतृत्व करते हैं और भारतीय संसद के दोनों सदनों के सदस्य रह चुके हैं। भीमराव आंबेडकर ने दो शादियां की थीं। उनकी पहली पत्नी का नाम रमाबाई आंबेडकर और दूसरी पत्नी का नाम सविता आंबेडकर हैं। आम्बेडकर जी की पहली पत्नी रमाबाई की लंबी बीमारी के बाद 1935 में निधन हो गया। 1940 के दशक के अंत में भारतीय संविधान के मसौदे को पूरा करने के बाद, वह नींद के अभाव से पीड़ित थे, उनके पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द था और इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाएं ले रहे थे। वह उपचार के लिए बॉम्बे (मुम्बई) गए और वहां डॉक्टर शारदा कबीर से मिले, जिनके साथ उन्होंने 15 अप्रैल 1948 को नई दिल्ली में अपने घर पर विवाह किया था। बाबा साहब की दूसरी पत्नी सविता आम्बेडकर ने दलित बौद्ध आंदोलन में बाबा साहब के साथ बौद्ध दीक्षा ग्रहण की थी। विवाह से पहले बाबा साहब की पत्नी का नाम डॉ शारदा कबीर था। सविता आम्बेडकर जिन्हें माई या माइसाहेब कहा जाता था, का 29 मई 2003 को नई दिल्ली के मेहरौली में 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। -------------- आंबडवेकर से ऐसे बने आम्बेडकर -------------------- बाबा साहब ने सातारा नगर में राजवाड़ा चैक पर स्थित शासकीय हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में 7 नवंबर 1900 को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए 7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। स्कूल में उस समय उनका नाम भिवा रामजी आम्बेडकर उपस्थिति पंजिका में क्रमांक -1914 पर अंकित किया गया था। आम्बेडकर का मूल उपनाम सकपाल की बजाय आंबडवेकर लिखवाया था, जो कि उनके आंबडवे गाँव से संबंधित था। चूंकि, कोकण प्रांत के लोग अपना उपनाम गाँव के नाम से रखते थे, अतः आम्बेडकर के आंबडवे गाँव से आंबडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज करवाया गया। बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा केशव आम्बेडकर ने उनके नाम से आंबडवेकर हटाकर अपना आम्बेडकर उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं। जब बाबा साहब अंग्रेजी चैथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए तब दलित समाज के लोगों ने समारोह आयोजित किया था। बाबा साहब के परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित बुद्ध की जीवनी उन्हें भेंट दी गई थी। बाबा साहब ने इसे पढकर गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना। 1897 में बाबा साहब का परिवार मुंबई आ गया। डॉ. अंबेडकर और उनके पिता मुंबई शहर के एक ऐसे मकान में रहने गए जहां एक ही कमरे में पहले से बेहद गरीब लोग रहते थे इसलिए दोनों के एक साथ सोने की व्यवस्था नहीं थी तो बाबा साहेब और उनके पिता बारी-बारी से सोया करते थे। जब उनके पिता सोते थे तो डॉ भीमराव आंबेडकर दीपक की हल्की सी रोशनी में पढ़ते थे। भीमराव आंबेडकर संस्कृत पढ़ने के इच्छुक थे परंतु छुआछूत की प्रथा के अनुसार और निम्न जाति के होने के कारण वे संस्कृत नहीं पढ़ सकते थे। ये विडंबना थी कि विदेशी लोग संस्कृत पढ़ सकते थे। मुंबई में उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित शासकीय हाईस्कूल में आगे की शिक्षा प्राप्त की। भीमराव आंबेडकर ने मुंबई के एलफिन्स्टन हाई स्कूल से शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। इस स्कूल में वह एकमात्र अछूत छात्र थे। उन्होंने वर्ष 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इसके बाद उन्होंने एलफिन्स्टन कॉलेज में दाखिला लिया जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था।। बाबा साहेब ने वर्ष 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र में स्नातक (बीए) किया। सन 1913 में उन्होंने 15 प्राचीन भारतीय व्यापार पर एक शोध प्रबंध लिखा था। बाबा साहेब को बड़ौदा (अब वडोदरा) के गायकवाड़ शासक द्वारा छात्रवृत्ति दी गई थी। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। ऐसा माना जाता है कि जब गायकवाड़ शासक के अनुरोध पर बाबा साहेब ने बड़ौदा लोक सेवा में प्रवेश लिया, तो उन्हें उच्च जाति के सहयोगियों द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता था। इसी बीच उन्हें बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया। इसके बाद बाबा साहेब ने कानूनी अभ्यास और शिक्षण की ओर रुख किया। इसी दौरान, भीमराव आंबेडकर ने कई सारे पत्रिकाओं को शुरू किया। वहीं उन्होंने सरकार की विधान परिषदों में दलितों के लिए विशेष प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़ी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे। -------------- कोई नहीं है ऐसा ........ बाबा साहब जैसा -------------- डाॅ भीमराव अम्बेडकर का जन्मदिन समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. आम्बेडकर को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। भारत सहित दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती या भीम जयंती पर कार्यक्रम होते हैं। बाबा साहब विश्व भर में मानवाधिकार आंदोलन, संविधान निर्माता और प्रकांड विद्वता के लिए जाने जाते हैं। बाबा साहब ने समानता और मानवता आधारित भारतीय संविधान को 2 साल 11 महीने और 17 दिन में तैयार करने का महत्वपूर्ण और एतिहासिक काम किया। बाबा साहब की पहली जयंती सदाशिव रणपिसे ने 14 अप्रैल 1928 में पुणे में मनाई थी। हाथी और उंट को सजाकर उनकी पीठ पर बाबा साहब की प्रतिमा और फोटो रखकर शोभा यात्रा निकाली गई थी। डाॅ अम्बेडकर के जन्मदिन पर हर साल उनके करोड़ों अनुयायी उनके जन्मस्थल महू (मध्य प्रदेश), बौद्ध धम्म दीक्षा स्थल दीक्षाभूमि, नागपुर, उनकी समाधी स्थल चैत्य भूमि, मुंबई सहित अन्य स्थानों पर इकट्टा होते है। सरकारी दफ्तरों और बौद्ध-विहारों में भी आम्बेडकर की जयन्ती मनाकर उन्हें नमन किया जाता है। गूगल ने डॉ. आम्बेडकर की 125वीं जयन्ती 2015 पर अपने गूगल डूडल पर उनकी तस्वीर लगाकर उन्हें अभिवादन किया था। तीन महाद्वीपों के देशों में यह डुडल था। सन 2016 में भारत सरकार ने भव्य तौर पर बाबा साहब की 125 वी जयंती मनाई थी। इस दिन पूरे देश में सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित किया गया। 125 वीं जयंती 102 देशों में आंबेडकर जयंती मनाई गई थी। इसी वर्ष पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने भी भीमराव आंबेडकर की जयंती मनाई जिसमें 156 देशों के प्रतिनिधीयों ने भाग लिया था। संयुक्त राष्ट्र नेे भीमराव आंबेडकर को विश्व का प्रणेता बताते हुए गुणगान किया। संयुक्त राष्ट्र के 70 वर्ष के इतिहास में वहां पहली बार किसी भारतीय व्यक्ति का जन्मदिवस मनाया गया था। बाबा साहब के अलावा विश्व में केवल दो ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी जयंती संयुक्त राष्ट्र ने मनाई हैं मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला। आंबेडकर, किंग और मंडेला ये तीनों लोग अपने अपने देश में मानवाधिकार संघर्ष के सबसे बडे नेता के रुप में जाने जाते हैं। महाराष्ट्र के बौद्धों के लिए यह सबसे बड़ा त्यौहार है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा आम्बेडकर जयंती को ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा डाॅ आम्बेडकर का स्कूल प्रवेश दिवस यानि 7 नवम्बर को विद्यार्थी दिवस घोषित किया गया है। क्योंकि प्रकांड विद्वान होते हुए भी आम्बेडकर जन्म भर विद्यार्थी बनकर ही रहे। डाॅ आम्बेडकर के सम्मान में भारतीय संविधान दिवस (राष्ट्रीय कानून दिवस) 26 नवम्बर को मनाया जाता है। भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार, आम्बेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को पहला औपचारित संविधान दिवस मनाया गया। 26 नवंबर का दिन संविधान के महत्व का प्रसार करने और डॉ. भीमराव आम्बेडकर के विचारों और अवधारणाओं का प्रसार करने के लिए चुना गया हैं। ------------ ......हिन्दु के रूप में हरगिज़ नहीं मरूंगा ------------- बाबा साहब ने हिन्दू धर्म तथा हिन्दु समाज को सुधारने, समता तथा सम्मान प्राप्त करने के लिए तमाम प्रयत्न किए। उसके बाद उन्होंने कहा था कि हमने हिन्दू समाज में समानता का स्तर प्राप्त करने के लिए हर तरह के प्रयत्न और सत्याग्रह किए परन्तु सब निरर्थक सिद्ध हुए। हिन्दू समाज में समानता के लिए कोई स्थान नहीं है। हिन्दू समाज का यह कहना था कि मनुष्य धर्म के लिए हैं जबकि आम्बेडकर का मानना था कि धर्म मनुष्य के लिए है। आम्बेडकर ने कहा कि ऐसे धर्म का कोई मतलब नहीं जिसमें मनुष्यता का कुछ भी मूल्य नहीं। आम्बेडकर जी ऐसे धर्म को चुनना चाहते थे जिसका केन्द्र मनुष्य और नैतिकता हो, उसमें स्वतंत्रता, समता तथा बंधुत्व हो। भीमराव आंबेडकर ने 13 अक्टूबर 1935 को नासिक के निकट येवला में एक सम्मेलन में धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की। उन्होंने कहा था, हालांकि मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूंगा। इसके साथ ही उन्होंने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद 21 साल तक विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का गहन अध्ययन किया। आम्बेडकर बौद्ध धर्म को पसन्द करते थे क्योंकि उसमें तीन सिद्धांतों का समन्वित रूप मिलता है जो किसी अन्य धर्म में नहीं मिलता। बौद्ध धर्म प्रज्ञा (अंधविश्वास तथा अतिप्रकृतिवाद के स्थान पर बुद्धि का प्रयोग), करुणा (प्रेम) और समता (समानता) की शिक्षा देता है। उनका कहना था कि मनुष्य इन्हीं बातों को शुभ तथा आनंदित जीवन के लिए चाहता है। सन् 1950 में भीमराव आम्बेडकर बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध भिक्षुओं व विद्वानों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका (तब सिलोन) गये। स्वदेश वापसी पर डॉ. आम्बेडकर ने घोषणा की कि वे बौद्ध धर्म पर एक पुस्तक लिख रहे हैं और जैसे ही यह समाप्त होगी वो औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लेंगे। 1954 में आम्बेडकर ने म्यानमार का दो बार दौरा किया। दूसरी बार वो रंगून में तीसरे विश्व बौद्ध फैलोशिप के सम्मेलन में भाग लेने के लिए गये। 1955 में उन्होंने भारतीय बौद्ध महासभा यानी बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना की। उन्होंने अपने अंतिम प्रसिद्ध ग्रंथ, द बुद्ध एंड हिज धम्म को 1956 में पूरा किया। यह उनकी मृत्यु के पश्चात सन 1957 में प्रकाशित हुआ। इस ग्रंथ की प्रस्तावना में आम्बेडकर ने लिखा हैं कि मैं बुद्ध के धम्म को सबसे अच्छा मानता हूं। इससे किसी धर्म की तुलना नहीं की जा सकती है। यदि एक आधुनिक व्यक्ति जो विज्ञान को मानता है, उसका धर्म कोई होना चाहिए, तो वह धर्म केवल बौद्ध धर्म ही हो सकता है। सभी धर्मों के घनिष्ठ अध्ययन के पच्चीस वर्षों के बाद यह दृढ़ विश्वास मेरे बीच बढ़ गया है। 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने एक आम सभा आयोजित की, जिसमें उनके साथ-साथ अन्य पांच लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म अपनाया। कुछ समय बाद 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति-रिवाज के अनुसार किया गया। -------- काश .... ऐसा हो जाता (अपनों से अपनी बात) -------------- बाबा साहब ने यूं तो हर वर्ग और तबके की भलाई के लिए काम किया। खासकर अपने समाज को उंचा उठाने, दलित समाज के लोगों की शिक्षा, उनके सामाजिक और आर्थिक विकास, समाज में उनके सम्मान और बराबरी के हक के लिए ताउम्र संघर्ष करते रहे। बाबा साहेब दलितों में चेतना जगाने में तो सफल रहे। बाबा साहब दलितों के मन से हीन भावना को निकालने में कामयाब रहे लेकिन सवर्ण समाज के लोगों के मन से श्रेष्ठ या बेहतर होने की मानसिकता को खत्म नहीं कर सके। सवर्ण समाज ने उनके बराबरी के सिद्धांत को नहीं स्वीकारा। बाबा साहब ने दलित और शोषित समाज के लिए संविधान में भी कई चीजों को शामिल किया, वे ये चाहते थे कि कानून को सहीं तरीके से लागू किया जाए ताकि अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंच सके। इसी से पता चलता है कि बाबा साहब केवल अपने समाज या दलितों के लिए ही नहीं सोचते थे बल्कि सभी शोषित, मजलूम और कमजोर वर्ग के तबके के लिए उनकी चिंता थी। बाबा साहब ने तो सवर्ण महिलाओं के लिए भी चिंता जताई थी। ये भी विडम्बना ही है कि समाज का उच्च वर्ग बाबा साहब की नेक मंशा और उनके उसूलों को समझ नहीं पाया। इसके अलावा बाबा साहब ने जो अलख जगाई थी उसे दलित समाज का ही कोई अन्य नेता प्रजवलित नहीं रख सका। समाज के अंदर की खेमेबाजी, राजनीतिक कूटचाल, भीतरी कलह, पदलोलूपता की वजह से दलित समाज को काशीराम के बाद कोई नेतृत्व नहीं मिल सका। काशीराम ने खासी मेहनत की और वे कुछ हद तक कामयाब रहे। एक बड़े राजनीतिक मंच के तौर पर काशीराम ने राष्ट्रीय स्तर पर बहुजन समाज पार्टी को स्थापित किया। हालांकि, आरपीआई सहित लगभग सभी पार्टियाँ कुछ कामयाबी के बाद ही अपने रास्ते से भटक गईं और अपने मूल मकसद में कामयाब नहीं हो सकीं। एक खास बात और, दलित समाज में उंच-नींच का भेद पनपने लगा। इस समाज के जो लोग उच्च पदों पर आसीन हो गए उन्होंने अपने ही समाज के लोगों को आगे बढ़ाने की बजाए उनसे ही भेदभाव शुरू कर दिया। उच्च शिक्षित या आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग समाज के ही कमजोर लोगों को कमतर समझने लगे हैं। आज जरूरत इस बात की है कि सिर्फ बाबा साहब को ही नहीं मानें बल्कि बाबा साहब की भी मानें। जय भीम का नारा लगाकर हम खुद को उनका अनुयायी तो बता सकते हैं लेकिन बाबा साहब का सपना तो तभी साकार होगा जब हम उनके बताए रास्ते पर चलेंगे, हम उनके आर्दशों को आत्मसात करेंगे, हम कमजोर-शोषित-पीड़ित और आर्थिक रूप से पिछड़े तबके इस इस तबके के लोगों का हाथ पकड़कर उसे सहारा देगें। अन्यथा हर बाबा साहब की जयंती और महापरिनिर्वाण दिवस मनाकर ही इतिश्री हो जाएगी। ------------------ शिक्षा से रोका लेकिन कोलंबिया और लंदन जाकर तक पढ़े ---------- 1913 में आम्बेडकर 22 वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका गए। वहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल की। उन्हें तीन वर्ष के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एमए) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थ शास्त्र प्रमुख विषय और समाज शास्त्र, इतिहास, दर्शन शास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे। उन्होंने स्नातकोत्तर के लिए प्राचीन भारतीय वाणिज्य विषय पर शोध कार्य प्रस्तुत किया। आम्बेडकर जॉन डेवी और लोकतंत्र पर उनके काम से प्रभावित थे। 1916 में उन्हें अपना दूसरा शोध कार्य भारत का राष्ट्रीय लाभांश-एक ऐतिहासिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन के लिए दूसरी कला स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान की गई। अन्ततः वे लंदन गए। 1916 में अपने तीसरे शोध कार्य ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास के लिए अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की, अपने शोध कार्य को प्रकाशित करने के बाद 1927 में अधिकृत रुप से पीएचडी प्रदान की गई। 9 मई को उन्होंने मानव विज्ञानी अलेक्जेंडर गोल्डनवेइजर द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भारत में जातियां-उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास नामक एक शोध पत्र प्रस्तुत किया, जो उनका पहला प्रकाशित पत्र था। 3 वर्ष तक की अवधि के लिए मिली हुई छात्रवृत्ति का उपयोग उन्होंने केवल दो वर्षों में अमेरिका में पाठ्यक्रम पूरा करने में किया और 1916 में वे लंदन गए। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अपने प्रोफेसरों और दोस्तों के साथ अंबेडकर सन् 1916 में लंदन चले गए। वहाँ उन्होंने ग्रेज इन में बैरिस्टर कोर्स (विधि अध्ययन) के लिए प्रवेश लिया। साथ ही लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भी प्रवेश लिया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया। सन् 1917 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली। बता दें कि उन्होंने ‘नेशनल डेवलपमेंट फॉर इंडिया एंड एनालिटिकल स्टडी’ विषय पर शोध किया। वर्ष 1917 में ही लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन विवश होकर अपना अध्ययन अस्थायी तौर पर बीच में ही छोड़ कर भारत लौट आए क्योंकि बड़ौदा राज्य से उनकी छात्रवृत्ति समाप्त हो गई थी। लौटते समय उनके पुस्तक संग्रह को उस जहाज से अलग जहाज पर भेजा गया था जिसे जर्मन पनडुब्बी के टारपीडो द्वारा डुबो दिया गया। ये प्रथम विश्व युद्ध का काल था। उन्हें चार साल के भीतर अपने थीसिस के लिए लंदन लौटने की अनुमति मिली। बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुए उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। डॉ भीमराव आम्बेडकर निराश हो गए और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम के कारण उन्हें मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गई। 1920 में कोल्हापुर के शाहू महाराज, अपने पारसी मित्र के सहयोग और कुछ निजी बचत के सहयोग से वो एक बार फिर से उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए। लंदन जाकर ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स‘ से अधूरी पढ़ाई उन्होंने पूरी की। 1921 में विज्ञान स्नातकोत्तर (एमएससी) किया। उन्होंने प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईजेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया (ब्रिटिश भारत में शाही अर्थ व्यवस्था का प्रांतीय विकेंद्रीकरण) खोज ग्रन्थ प्रस्तुत किया था। 1922 में उन्हें ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। 1923 में उन्होंने अर्थशास्त्र में डीएससी (डॉक्टर ऑफ साईंस) उपाधि प्राप्त की। उनकी थीसिस दी प्राब्लम आफ दि रुपी-इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन (रुपये की समस्या- इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान) पर थी। लंदन का अध्ययन पूर्ण कर भारत वापस लौटते हुए भीमराव आम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होंने अपना अर्थ शास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। उनकी तीसरी और चैथी डॉक्टर ऑफ लॉज (एलएलडी, कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका, 1952) और डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (डी.लिट.), (उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद 1953) सम्मानित उपाधियाँ थीं। यहां ये भी बताना लाजमी होगा कि 13 अक्टूबर 1935 को, डाॅ आम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्षो तक कार्य किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज के संस्थापक श्री राय केदारनाथ की मृत्यु के बाद इस कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। ----------- बाबा साहेब और संविधान निर्माण --------------------- बाबा साहब का जिक्र हो और संविधान की बात ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। बाबा साहब को संविधान का पिता भी कहा जाता है। भीमराव आंबेडकर ने भारत के संविधान का निर्माण किया। उन्होंने संविधान समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। संविधान समिति का काम 1946 में शुरू हुआ था और संविधान का निर्माण 26 नवंबर 1949 को पूरा हुआ था। संविधान भारत की संवैधानिक शासन व्यवस्था है और 26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्र की शुरुआत हुई थी। 15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने डाॅ आम्बेडकर को देश का पहला कानून एवं न्याय मंत्री बनाया। 29 अगस्त 1947 को डाॅ. आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत का नया संविधान बनाने के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। बाबा साहब ने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। संविधान निर्माण के कार्य में आम्बेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन भी काम आया। संविधान सभा में मसौदा समिति के सदस्य टी. टी. कृष्णामाचारी ने कहा, अध्यक्ष महोदय, मैं सदन में उन लोगों में से एक हूं, जिन्होंने डॉ. आम्बेडकर की बात को बहुत ध्यान से सुना है। मैं इस संविधान की ड्राफ्टिंग के काम में जुटे काम और उत्साह के बारे में जानता हूं। उसी समय मुझे यह महसूस होता है कि इस समय हमारे लिए जितना महत्वपूर्ण संविधान तैयार करने के उद्देश्य से ध्यान देना आवश्यक था, वह ड्राफ्टिंग कमेटी द्वारा नहीं दिया गया। सदन को शायद सात सदस्यों की जानकारी है। आपके द्वारा नामित, एक ने सदन से इस्तीफा दे दिया था और उसे बदल दिया गया था। एक की मृत्यु हो गई थी और उसकी जगह किसी को नहीं लिया गया था। एक अमेरिका में था और उसका स्थान नहीं भरा गया और एक अन्य व्यक्ति राज्य के मामलों में व्यस्त था, और उस सीमा तक एक शून्य था। एक या दो लोग दिल्ली से बहुत दूर थे और शायद स्वास्थ्य के कारणों ने उन्हें भाग लेने की अनुमति नहीं दी। इसलिए अंततः यह हुआ कि इस संविधान का मसौदा तैयार करने का सारा भार डॉ. आम्बेडकर पर पड़ा और मुझे कोई संदेह नहीं है कि हम उनके लिए आभारी हैं। इस कार्य को प्राप्त करने के बाद मैं ऐसा मानता हूँ कि यह निस्संदेह सराहनीय है। ग्रैनविले ऑस्टिन ने पहला और सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक दस्तावेज के रूप में आम्बेडकर द्वारा तैयार भारतीय संविधान का वर्णन किया। संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था। अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए डाॅ. आम्बेडकर ने कहा, मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मजबूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था। ---------------------दलित समुदाय के हक के लिए लड़ते रहे --------------- बाबा साहब को बचपन से ही छुआछूत और जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। उन्होंने तभी से तय कर लिया था कि वे उच्च शिक्षा हासिल करने के साथ ही दलित समाज को सम्मान दिलाकर रहेंगे। स्कूल के दिनों में उन्हें उस मटके से पानी नहीं पीने दिया जाता था जिससे दूसरे समाज के बच्चे पानी पीते थे। यहां तक कि उन्हें बैठने के लिए भी खुद की चटाई ले जाना पड़ता था। सिर्फ स्कूल में ही उनके साथ भेदभाव हुआ हो ऐसा नहीं था बल्कि जब 1918 में, वे मुंबई के सिडेनहैम काॅलेज आॅफ काॅमर्स एंड इकोनाॅमिक्स में जब वे प्रोफेसर के रूप में पढ़ाते थे तब भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। इन्हीं सब कारणों से उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को भी प्रेरित किया। बॉम्बे उच्च न्यायालय में कानून की पे्रक्टिस करते हुए उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उन्हें ऊपर उठाने के लिए कई तरह से कोशिश की। उनकी पहली कोशिश केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना थी। इसका उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देना, संगठित करना और शोषित वर्ग का कल्याण करना था। डाॅ. आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। उन्होंने दलित समुदाय को उसके हक क्या हैं ये बताने के लिए सत्याग्रह और आंदोलन किए। नासिक में मंदिर में प्रवेश का सत्याग्रह किया। उन्होंने देखा कि महाड़ में एक ऐसा तालाब, जहाँ जानवर तो पानी पी सकते हैं, लेकिन जो दलित है उसे पानी पीने का अधिकार नहीं था। उन्होंने इसके लिए आंदोलन किया। बाबा साहेब ने 1926 में एक वकील के रूप में अपने करियर के दौरान तीन गैर-ब्राह्मण नेताओं का बचाव किया। इन नेताओं ने ब्राह्मण समुदाय पर देश को बर्बाद करने का आरोप लगाया था। जाति वर्गीकरण के खिलाफ यह जीत बाबा साहेब के लिए काफी बड़ी थी और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन का जन्म यहीं से हुआ था। ब्राह्मणों द्वारा छुआछूत की प्रथा को मानना, मंदिरों में प्रवेश ना करने देना, दलितों से भेदभाव, शिक्षकों द्वारा भेदभाव आदि के खिलाफ अभियान चलाया। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया। अंबेडकर जी ने ऑल इंडिया क्लासेज एसोसिएशन का संगठन किया। साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर जी ने सुनवाई के दौरान दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की। 1920 में, बंबई से उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। डाॅ आम्बेडकर ने इसके जरिए रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति लोगों को जागरूक किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिसकी वजह से उन्होंने बाबा साहब के साथ भोजन किया। सन् 1927 में अछूतों को लेने के लिए एक सत्याग्रह का नेतृत्व किया और सन् 1937 में मुंबई में उच्च न्यायालय में मुकदमा जीत लिया। वे दलित वर्ग के लिए मसीहा के रूप में सामने आए जिन्होंने अपने अंतिम क्षण तक दलितों को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष किया। दलित अधिकारों की रक्षा के लिए, उन्होंने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी पांच पत्रिकाएं निकालीं। सन 1925 में, उन्हें बंबई प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन कमीशन में काम करने के लिए नियुक्त किया गया। इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुए। डाॅ आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं। अंग्रेजों और मराठा युद्ध के अन्तर्गत 1 जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में बाबा साहब ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक में समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। सन 1927 तक, डॉ. आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में एक सम्मेलन में आम्बेडकर जी ने जाति भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति आदि की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। 1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। कालाराम मन्दिर आंदोलन में लगभग 15,000 स्वयंसेवक इकट्ठे हुए, जिससे नाशिक की सबसे बड़ी प्रक्रियाएं हुईं। वर्ष 27 मई 1935 को बाबा साहब की पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर आम्बेडकर ने उन्हे इसकी इजाजत नहीं दी। आम्बेडकर ने कहा कि उस हिन्दू तीर्थ में जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है, इसके बजाय उन्होंने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कहीं। वर्ष 1920 के दशक में मुंबई में डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपने भाषण में कहा था कि जहां मेरे व्यक्तिगत हित और देश हित में टकराव होगा वहां पर मैं देश के हित को प्राथमिकता दूंगा परंतु जहां दलित जातियों के हित और देश के हित में टकराव होगा वहां मैं दलित जातियों को प्राथमिकता दूंगा। आम्बेडकर जी ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक एनीहिलेशन ऑफ कास्ट (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की, जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में उन्होंने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अछूत समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कड़ी निंदा की। ---------------- बाबा साहेब आम्बेडकर का महापरिनिर्वाण -------------- भीमराव आंबेडकर वर्ष 1948 से मधुमेह बीमारी से पीड़ित थे। वर्ष 1954 में जून से अक्टूबर तक काफी बीमार रहे और उन्हें देखने में भी परेशानी होने लगी थी। बावजूद इसके वे 1955 तक काम करते रहे। 3 दिसंबर 1956 को डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और धम्म उनके को पूरा किया। इसके तीन दिन बाद ही 6 दिसम्बर 1956 को बाबासाहेब का महापरिनिर्वाण दिल्ली स्थित उनके घर में हो गया। निधन के समय उनकी आयु 64 वर्ष और सात महीने की थी। दिल्ली से विशेष विमान द्वारा उनका पार्थिव मुंबई में उनके घर राजगृह में लाया गया। बाबा साहेब का अंतिम संस्कार 7 दिसंबर को मुंबई में दादर चैपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में किया गया।उनके अंतिम संस्कार के समय उनके पार्थिव को साक्षी रखकर उनके 10,00,000 से अधिक अनुयायियों ने भदन्त आनन्द कौसल्यायन द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। दरअसल, डाॅ आम्बेडकर ने 16 दिसंबर 1956 को मुंबई में एक बौद्ध धर्मांतरण कार्यक्रम आयोजित किया था, इसी का स्मरण करते हुए लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। मालूम हो कि अंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। बाबा साहब की जयंती (14 अप्रैल), महापरिनिर्वाण यानी पुण्यतिथि (6 दिसम्बर) और धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस (14 अक्टूबर) को चैत्य भूमि (मुंबई), दीक्षा भूमि (नागपूर) तथा भीम जन्मभूमि (महू) में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने लाखों लोग एकत्रित होते हैं। अनुमान के मुताबिक इन मौकों पर 20 लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा होते हैं। ------------ पुरस्कार एवं सम्मान -------------------------- - बाबा साहब को बोधिसत्व (1956) से सम्मानित किया गया। - वे पहले ऐसे शख्स थे जिन्हें कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाईम (2004) से नवाजा गया। - 1990 में डाॅ. आम्बेडकर को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार को सविता आम्बेडकर ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमण द्वारा आम्बेडकर के 99 वें जन्मदिवस, 14 अप्रैल 1990 को स्वीकार किया था। यह पुरस्कार समारोह राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल (अशोक हॉल) में आयोजित किया गया था। - डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का स्मारक दिल्ली स्थित उनके घर 26 अलीपुर रोड में स्थापित किया गया है। - अंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। - भारतीय डाक विभाग ने 1966, 1973, 1991, 2001 और वर्ष 2013 में उनके जन्मदिन पर बाबा साहब को समर्पित डाक टिकट जारी किए। इसके अलावा वर्ष 2009, 2015, 2016 और 2017 में बाबा साहब की फोटो वाली अन्य टिकटें जारीं की। - सन 1990 में भारत सरकार ने आम्बेडकर जी की 100 वीं जयंती पर उनके सन्मान में ₹1 का सिक्का जारी किया था। आम्बेडकर की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में ₹10 और ₹125 के सिक्के 2015 में प्रचलन के लिए जारी किए गए थे। - गुगल ने 14 अप्रैल 2015 को अपने होमपेज डूडल के माध्यम से आम्बेडकर जी के 124 वें जन्मदिन का जश्न मनाया था। यह डूडल भारत, अर्जेंटीना, चिली, आयरलैंड, पेरू, पोलैंड, स्वीडन और यूनाइटेड किंगडम में दिखाया गया था। - डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय विमान क्षेत्र, डॉ. आम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, डॉ. बी. आर. आम्बेडकर राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जालंधर, आम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली का नाम भी उनके सम्मान में है। उनके नाम पर कई सारे पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। - कई सार्वजनिक संस्थान का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है जैसे कि हैदराबाद, आंध्र प्रदेश का डॉ. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय- मुजफ्फरपुर। - डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नागपुर में है, जो पहले सोनेगांव हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता था। - अंबेडकर का एक बड़ा आधिकारिक चित्र भारतीय संसद भवन में प्रदर्शित किया गया है। - लंदन विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी की किताबों पढ़ने और उसकी जानकारी रखने वाले एक मात्र शख्स। - लंदन विश्वविद्यालय के दो सौ छात्रों में नंबर 1 होने का सम्मान बाबा साहब को प्राप्त था। - विश्व से सबसे ज्यादा प्रतिमाएं बाबा साहब की ही हैं। - लंदन विश्वविद्यालय में डीएससी की उपाधि पाने वाले पहले भारतीय। - वर्ष 2004 में विश्वविद्यालय की स्थापना के 200 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय ने अपने विश्वविद्यालय में पढ़ चुके शीर्ष 100 बुद्धिमान विद्यार्थियों की कोलंबियन अहेड्स ऑफ देअर टाइम नामक सूची बनाई, इस सूची में पहला नाम था भीमराव आम्बेडकर था। आम्बेडकर जी को सबसे अधिक बुद्धिमान विद्यार्थी यानी पहले कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाइम के रूप में घोषित किया गया। -डाॅ आम्बेडकर को हिस्ट्री टीवी 18 और सीएनएन आईबीएन द्वारा 2012 में आयोजित एक चुनाव सर्वेक्षण द ग्रेटेस्ट इंडियन (महानतम भारतीय) में सर्वाधिक वोट दिये गये थे। -भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि, डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर हिंदू समाज की सभी दमनकारी प्रथाओं के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक थे। -अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीत चूके अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा हैं कि, आम्बेडकर अर्थशास्त्र विषय में मेरे पिता हैं। -आध्यात्मिक गुरू ओशो (रजनीश) ने टिप्पणी की, वह एक विश्व प्रसिद्ध प्राधिकरण थे। -अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2010 में भारतीय संसद को संबोधित करते हुए डॉ. बी. आर. आम्बेडकर को महान और सम्मानित मानवाधिकार चैंपियन और भारत के संविधान के मुख्य लेखक के रूप में संबोधित किया। - सन 1990 के उत्तरार्ध के दौरान, कुछ हंगरियन रोमानी लोगों ने हंगरी में डॉ. आम्बेडकर हाइस्कूल के नाम से तीन विद्यालय भी शुरू किये है, जिसमें एक में 6 दिसम्बर 2016 को आम्बेडकर का स्टेच्यू भी स्थापित किया गया, जो हंगरी के जय भीम नेटवर्क ने भेंट दिया था। - नेपाल के दलित लोग व नेता आम्बेडकर को मुक्तिदाता मानते हैं। साथ ही वे यह मानते हैं कि आम्बेडकर का दर्शन ही जातिगत भेदभाव को मिटाने में सक्षम है। - जापान के बुराकुमिन समुदाय के नेता आम्बेडकर के दर्शन को बुराकुमिन लोगों तक पहुँचा रहे हैं। - डाॅ आम्बेडकर विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री लेने वाले पहले भारतीय थे। उनका कहना था, औद्योगिकीकरण और कृषि विकास से भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि हो सकती है। - दिग्गज नेता शरद पवार के अनुसार, आम्बेडकर के दर्शन ने सरकार को अपने खाद्य सुरक्षा लक्ष्य हासिल करने में मदद की। आम्बेडकर ने राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास की वकालत की, शिक्षा, सार्वजनिक स्वच्छता, समुदाय स्वास्थ्य, आवासीय सुविधाओं को बुनियादी सुविधाओं के रूप में जोर दिया। - आम्बेडकर अनुयायी एक-दूसरे से अभिवादन के लिए जय भीम का इस्तेमाल करते हैं। दुनिया भर में बोला जाने वाला जय भीम वाक्यांश आम्बेडकर जी के एक अनुयायी बाबू एल. एन. (लक्षमणराव नगराठे) हरदास द्वारा गढ़ा गया था। ईएमएस / 13 अप्रैल 24