प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार का तीसरे कार्यकाल का पहला बजट संसद में प्रस्तुत हो गया है। इस बजट को लेकर देश मे बड़ी तीखी क्रिया-प्रतिक्रिया हो रही है। 2024-25 के केन्द्रोय बजट में सरकार ने बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष पैकेज की घोषणाएं की हैं। जिसके कारण अन्य राज्यों के साथ भेदभाव होने की बातें सामने आ रही है। संसद के दोनों सदनों में बजट का मुद्दा लगातार गर्मा रहा है। इंडिया गठबंधन के सभी राजनीतिक दल बड़े मुखर होकर बजट का विरोध कर रहे हैं। इस बजट को जन विरोधी भी बताया जा रहा है। सरकार ने आंध्र और बिहार राज्य को विशेष पैकेज देने के लिए, जिस तरह से अन्य राज्यों की उपेक्षा मनरेगा एवं शिक्षा के बजट मे कटौती की है। उसका बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। बेरोजगारी बढ़ती चली जा रही है, लोगों को काम नहीं मिल रहा है। मनरेगा का बजट बढ़ाने की बजाये कम कर दिया गया है। इसका असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पड़ेगा। शहरी क्षेत्र के बेरोजगारों के लिए मनरेगा जैसी योजना लाने की मांग हो रही थी। इस बजट में शहरी मजदूरों के लिए रोजगार उपलब्ध कराने का कोई प्रस्ताव नहीं है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, दो राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों को बजट मे कुछ भी नहीं मिला। सबकी थाली खाली करके 2 थालियों में सरकार ने पकोड़ा और जलेबी परोस दी है। उन्होंने व्यंग्यात्मक रूप से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को माता जी कहकर राज्यसभा में संबोधित किया। जो विपक्ष की पीड़ा को जग जाहिर कर रहा था। इस बयान की बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया सत्ता पक्ष और विपक्ष में देखने को मिली। विपक्ष ने संसद परिसर के बाहर जिस तरह एकत्रित होकर बजट का विरोध किया। सामूहिक रूप से नारेबाजी की। केंद्र सरकार के ऊपर आरोप लगाया, सरकार संघीय व्यवस्था को भूलकर केवल सरकार बचाने के लिए बजट लेकर आई है। सदन के दोनों सदनों में सत्ता पक्ष के सांसदों मे भी बजट को लेकर निराशा देखने को मिल रही है। देश के कई राज्यों में डबल इंजन की भाजपा सरकारें हैं। इस बजट में उन राज्य सरकारों की भी उपेक्षा हुई है। जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं। उनकी भी बजट मे उपेक्षा हुई है। इस बजट से भाजपा के सांसद और भाजपा शासित राज्यों के विधायक भी मायूस हैं। 2024-25 के बजट में जिस तरह से आंध्र और बिहार को अतिरिक्त राशि दी गई है। वहीं अन्य राज्यों के मनरेगा और शिक्षा के बजट में कमी की गई है। नए बजट में 2 राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों को कुछ नहीं मिला है,जिसकी वह आशा कर रहे थे। ऐसी स्थिति में भाजपा शासित राज्यों के सांसदों और विधायकों के लिए मतदाताओं को संतुष्ट करना बहुत मुश्किल हो गया है। डबल इंजन के सरकारों को भरोसा था, इस बजट में उन्हें ज्यादा आर्थिक सहायता मिलेगी। डबल इंजन की राज्य सरकारों के मुखिया अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। अगले कुछ महीनो में हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव होने हैं। आंध्र और बिहार को विशेष पैकेज देने के कारण, जिन राज्यों में अगले कुछ महीनो में चुनाव होना है। वहां भारतीय जनता पार्टी की स्थिति पहले से कमजोर है। रही-सही कसर इस बजट ने आग में घी डालने जैसा काम कर दिया है। बजट में जिस तरह से मध्यम वर्ग के ऊपर कैपिटल गेन एवं संपत्ति की बिक्री पर टीडीएस काटने जैसे प्रावधान बजट मे होने से मध्यमवर्गीय परिवारों में तीखा विरोध हो रहा है। इस बजट से राज्यों के साथ भेदभाव का मामला तूल पकड़ने लगा है। विपक्ष कह रहा है,कि केंद्र सरकार ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए तमिलनाडु,केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की भारी उपेक्षा की है। इस बजट का यह संदेश देश भर में, भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जाएगा। इसका अंदाजा सरकार को नहीं रहा होगा। जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं,उनकी भी स्थिति बजट आने के बाद कमजोर हुई है। जिन राज्यों के मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी को भारी समर्थन देकर चुनाव जिताया है। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में पहली बार 29 लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को विजय दिलाई है। उन राज्यों को भी बजट में कुछ नहीं मिला। आम जनता की नाराजी होना स्वाभाविक है। बहरहाल केंद्रीय बजट पेश हो गया है। इस पर दोनों सदनों में चर्चा भी शुरू हो गई है। इस बजट के बारे में देश भर से क्रिया प्रतिक्रिया मिलना शुरू हो गई है। जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं। जिन राज्यों में इसी साल चुनाव होने वाले हैं। वहां भारतीय जनता पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। केंद्र की मोदी सरकार बचाने के लिए, सरकार ने भाजपा को ही दांव पर लगा दिया है, यह कहा जा रहा है। महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक संकट के कारण पहले भी भाजपा नाराजी का शिकार हो रही थी। इस बजट ने एक तरह से नाराजी की आग में घी डालने का काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए गठबंधन की सरकार का यह पहला अनुभव है। गुजरात में जब वह मुख्यमंत्री बने थे, उसके बाद से ही वहां पर स्पष्ट बहुमत की सरकार रही हैं। 2014 तथा 2019 की केंद्र सरकार पूर्ण बहुमत की सरकार थी। 2024 में भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। इसके कारण मोदी सरकार की राजनीतिक चुनौती बढ़ी हुई हैं। इस बजट ने उनकी चुनौतियों को और भी बढ़ा दिया है। मोदी सरकार के लिए यह कार्यकाल तलवार की धार में चलने के समान है। जरा सी लापरवाही बड़ा नुकसान कर सकती है। इसका ध्यान केंद्र सरकार और भाजपा को रखना होगा। ईएमएस / 25 जुलाई 24