बिहार के सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज में सेंट जॉन बोर्डिंग स्कूल में एलकेजी के छात्र ने अपने से बड़े छात्र को पिस्तौल की गोली से स्कूल में मारने की घटना सामने आई है। बच्चा छोटा था, पिस्तौल से जब गोली चलाई, उसे झटका लगा। जिसके कारण जिस बच्चे को गोली मारी गई थी, निशाना चूकने के कारण उसके हाथ में गोली लगी। जिसके कारण बच्चे की जान बच गई। गोली मारने वाला बच्चा 8 साल का था। जिसे गोली मारी गई, उसकी उम्र 12 साल की थी। बोर्डिंग स्कूल में यह घटना घटी। जिस छात्र ने गोली चलाई थी। वह अपने घर से स्कूल बैग में पिस्तौल रखकर लाया था। यह घटना भारत की सामाजिक व्यवस्था मे छोटे-छोटे बच्चों के हिंसक विचार ओर उनके मनोभाव को देखने की है। छोटे-छोटे बच्चे इतने हिंसक क्यों हो रहे हैं। इस तरह की घटनाएं अमेरिका जैसे देशों में देखने और सुनने में आती थीं। अब यह घटनाएं भारत में भी होने लगी हैं। यह चिंता का सबसे बड़ा कारण है। पिछले कुछ वर्षों से ऑन लाइन वीडियो गेम का प्रचलन बड़ी तेजी के साथ भारत में बढ़ा है। वीडियो में बच्चों को हथियार के साथ खेलते हुए और एक दूसरे के साथ मारामारी करते हुए गेम बने हुए हैं। छोटे-छोटे बच्चे गेम देखते हुए दूध पीते हैं। नाश्ता करते हैं, और खाते-पीते हैं। यदि इन्हें मोबाइल या टीवी पर वीडियो गेम नहीं दिखाया जाए, तो यह घर पर आक्रामक हो जाते हैं। बच्चे अपनी नाराजी को माता-पिता और भाई बहनों के साथ तरह-तरह से प्रकट करते हैं। संयुक्त परिवार खत्म हो गए हैं। माता-पिता अपने बच्चों को अब किस्से कहानी नहीं सुनाते हैं, उनके पास इसके लिए समय ही नहीं है। ऐसी स्थिति में वह अपने बच्चों को टीवी और वीडियो गेम को दिखाना शुरू कर देते हैं। बच्चे अकेले रहते हैं। इसलिए भी उनकी सोच और दुनिया बदलती जा रही है। भारत के टेलीविजन चैनल भी हिंसा को फैलाने में बड़ा योगदान दे रहे हैं। हिंदू-मुस्लिम, धार्मिक एवं सामाजिक भेदभाव की हिंसक घटनाओं का जिस तरह से चित्रण नेशनल टेलीविजन चैनल कर रहे हैं, उससे बच्चों के दिमाग में हिंसा फैल रही है। कहा जाता है, छोटी उम्र के बच्चे बड़े संवेदनशील होते हैं। वह जो अपने आसपास देखते ओर सुनते हैं। इसका उनके ऊपर गहरा असर होता है। पहले बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता बड़े भाई-बहन अच्छी-अच्छी साहसिक एवं ज्ञानवर्धक कहानियाँ सुनाते थे। सामाजिक सद्भाव के साथ रिश्तों से जुड़ने की सीख देते थे। इसका बड़ा असर बच्चों पर संस्कार के रूप में होता था। डिजिटल इंडिया के इस दौर में बच्चों के लिए जिस तरह से हिंसक वीडियो तैयार किये जा रहे हैं। खिलौने के रूप में मिले हथियार से बच्चे खेल रहे हैं। घर और बाहर वह नफरत का वातावरण और हर तरफ हिंसा ही हिंसा बच्चों को दिखती है। इस हिंसा का असर छोटे-छोटे बच्चों पर कई तरह से पड़ रहा है। बिहार के स्कूल में 8 साल के बच्चे ने अपने से 4 साल बड़े बच्चे को गोली मारकर इसका असर दिखा दिया है। भारत में अभी तक इस तरह की घटनाएं नहीं होती थीं। अब इस तरह की घटनाएं भारत में भी होने लगी हैं, तो यह चिंता का विषय है। अमेरिका जैसे देश में खुलेआम हथियारों की बिक्री होती है। हर घर में हथियार उपलब्ध होते हैं। अमेरिका जैसे देश में सुरक्षा की दृष्टि से हथियार रखना जरूरी होता है। भारत में हथियार बिना लाइसेंस के उपलब्ध नहीं होते हैं। सरकार और प्रशासन लाइसेंस पूरी जांच करने के बाद ही देते हैं। भारत में पिछले कई वर्षों से अवैध हथियारों की बिक्री बड़ी तेजी के साथ हो रही है। भारत के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से हथियार बनाकर बेचे जाते हैं। बहुत कम कीमत पर अवैध हथियार आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस छोटे बच्चे के पास किस तरह से रिवाल्वर आई, कैसे यह छात्र इतना हिंसक हो गया, इसकी जांच केवल आपराधिक कार्रवाई की तरह नहीं होनी चाहिए। छोटे-छोटे बच्चों पर किस तरह से हिंसा घर कर रही है। इसका भी अध्ययन कराया जाना जरूरी है। भारत की सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था बड़ी तेजी के साथ बदली है। हर मां-बाप और बच्चों के पास इन दोनों मोबाइल फोन देखने को मिलते हैं। वीडियो गेम से लेकर इंटरनेट पर पॉर्न वीडियो इत्यादि छोटे-छोटे बच्चे और कम उम्र के युवा देखने लगे हैं। इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। एक घटना हाल ही में सामने आई है। जब 13 साल के बड़े भाई ने अपनी 8 साल की छोटी बहन के साथ दुष्कर्म किया। जब उसने पापा से शिकायत करने की बात की तो उसकी गला दबाकर हत्या कर दी। विकास और दिखावे की दौड़ और होड़ में हम किस तरह का समाज और परिवार बना रहे हैं। इसे आसानी से समझा जा सकता है। हमारे आने वाली पीढ़ी किस तरह से आगे बढ़ेगी, इस पर गंभीरता के साथ विचार करना जरूरी हो गया है। यह भी उल्लेख करना जरूरी है। शिक्षा के नाम पर जिस तरह से बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट से जोड़कर उन्हें वास्तविक ज्ञान की दुनिया से दूर किया जा रहा है। काल्पनिक ज्ञान की ओर ले जाने की जो प्रवृत्ति शिक्षण संस्थानों में बढ़ रही है। वह आने वाली पीढ़ी को पूरी तरह से बर्बाद करके रख देगी। यह घटना इस बात को दर्शाती है, कि इस तरह की घटनाओं से सबक लेकर गंभीरता से विचार करना होगा। सरकार, समाज, परिवार एवं धर्म गुरुओं को भी इस दिशा में विशेष प्रयास करना होंगे। समय रहते इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले दिनों में सामाजिक एवं पारिवारिक रिश्तों में हिंसा बढ़ेगी। जो वर्तमान की सबसे बड़ी चिंता है। ईएमएस / 01 अगस्त 24