भारतीय राजनीति मे इन दिनों धर्म और जाति के बढ़ते प्रभाव पर चर्चा हो रही है। पिछले 10 साल की राजनीति में धर्म आधारित राजनीति प्रमुख कारण था। 2014 का लोकसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हिंदुत्व को आधार बनाकर जीता। गुजरात मॉडल के धार्मिक ध्रुवीकरण ने भाजपा को केंद्र एवं राज्यों की सत्ता में मजबूती से स्थापित किया। धार्मिक ध्रुवीकरण का यह मॉडल सारे देश में फैलाया गया। केंद्र एवं राज्यों में डबल इंजन की सरकारें बनी। जिससे देश में धर्म आधारित राजनीति को बढ़ावा मिला। धार्मिक आधार पर राजनीति का ध्रवीकरण हुआ। भाजपा ने इसे ही राजनीति का सत्य मान लिया था। विपक्षी दल भी लगभग 10 साल तक बदली हुई परिस्थितियों में कोमा में चले गए थे। 80:20 की राजनीति का गणित विपक्षी दल नहीं समझ पा रहे थे। धर्म की राजनीति अपने चरम पर पहुँच गई। धर्म के आधार पर भगवान राम और हिंदुत्व के नाम पर जो राजनीतिक सफलता नरेंद्र मोदी और भाजपा ने प्राप्त की थी। उसका आम जनता को कोई लाभ नहीं मिला। 2014 में जो वादे किए गए थे। वह पूरे नहीं हुए। उल्टे महंगाई, बेरोजगारी और कर्ज आम लोगों पर बढ़ता चला गया। पिछले 10 सालों में जनता के ऊपर कई तरह के टैक्स और शुल्क लगाकर सरकारों ने भारी राजस्व कमाया। पिछले 10 सालों में जनता की परेशानी शने:- शने: बढ़ती चली गई। धर्म की राजनीति का तिस्लिम अब टूटता हुआ दिख रहा है। भविष्य के चुनावों में अब धर्म का स्थान जाति के आधार पर तैयार हो रहा है। भारत में परिवार एवं जाति समुदाय की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। आने वाले समय में आर्थिक कारणों से जाति आधारित राजनीति अधिक सशक्त होना तय है। भारतीय राजनीति मे जाति के मुद्दे को इस्तेमाल कर, विपक्षी दलों ने सत्ता पक्ष के चुनावी समीकरणो को पूरी तरह से चुनौती देने की तैयारी कर ली है। दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग का बड़ा समूह विभिन्न जाति और समुदाय में बंटा हुआ है। सभी विपक्षी दल मिलकर आर्थिक एवं सामाजिक उन्नयन के आधार पर 67 फ़ीसदी आबादी को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव धर्म आधारित राजनीति के लिए मुफीद नहीं रहा। चुनाव के पहले भाजपा 400 पार का नारा दे रही थी, चुनाव परिणाम आने के बाद 240 पर सिमट गई। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राज्यों में जो चुनाव हो रहे हैं। उसमें यह बदलाव स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है। आने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय राजनीति के लिए निर्णायक मोड़ साबित हो सकता हैं। भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों को इस बदलाव का एहसास हो गया है। भविष्य की रणनीति, जाति-समुदाय के आधार पर बनाने की रणनीति सभी राजनैतिक दल तैयार कर रहे हैं। इस बदलाव में अब भारतीय जनता पार्टी भी अब शामिल होती हुई दिख रही है। भारतीय राजनीति में, हमेशा से धर्म, जाति और गरीबी अमीरी की लड़ाई चुनाव का मुख्य मुद्दा बनती रही है। समय-समय पर राजनीतिक दल इन्हीं तीन आधारों पर चुनाव जीतने की कोशिश करते रहे हैं। वर्तमान स्थिति में जाति का मुद्दा भारतीय राजनीति में प्रभावी हो गया है। बीते 10 साल धर्म आधारित राजनीति के थे। आर्थिक महंगाई,बेरोजगारी और बढ़ते कर्ज के कारण अब भारतीय राजनीति परिवार और जाति पर केंद्रित हो रही है। इसका लाभ विपक्षी दलों को बड़े पैमाने पर मिलता हुआ दिख रहा है। समय के साथ चीजें बदलती हैं। अब समय बदल रहा है। समय के साथ राजनीतिक हालात भी बदल रहे हैं। कमंडल के बाद मंडल की राजनीति 35 वर्ष बाद नए रुप में सामने आ रही है। 2021 की जनगणना जो 2024-25 में होगी। उसमें जाति आधारित जनगणना लगभग तय हो चुकी है। भारतीय राजनीति समय के साथ तेजी से बदल रही है। एसजे/11 सितम्बर 2024