कई महीनो से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल के दाम लगातार गिर रहे हैं। इसके बाद भी भारतीय तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार मे तेल के दाम घटने के बाद भी रेट नहीं घटाा रही हैं। पेट्रोलियम कंपनियों का यह खेल कई महीनो चल रहा है। पिछले 3 साल से पेट्रोलियम कंपनियों और सरकार ने चुप्पी साध रखी है। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढ़ते थे। तब तेल कंपनियां रोजाना पेट्रोल डीजल के रेट बढ़ा देती थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम पिछले 3 साल की तुलना में सबसे निचले स्तर पर हैं। 15 मार्च 2024 को लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए सरकार और तेल कंपनियों ने मिलकर पेट्रोल एवं डीजल के दाम 2 रूपये प्रति लीटर कम किए थे। उसके बाद से पेट्रोलियम कंपनियों ने डीजल और पेट्रोल के रेट नहीं घटाए हैं। भारत सरकार की नीतियों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कमी और वृद्धि होने पर तेल की कीमत घटाने और बढ़ाने की नीति है। इसके बाद भी पेट्रोलियम कंपनियां, भारतीय उपभोक्ताओं से खुले आम पेट्रोल डीजल में मुनाफाखोरी और दिनदहाड़े लूट रही हैं। भारत सरकार भी आंख बंद करके बैठी हुई है। भारतीय उपभोक्ता भी इस लूट पर चुपचाप मूकदर्शक बनकर लुट रहा है। इस तरह की लूट शायद भारत में ही संभव है। अन्य देशों में जनता सड़कों पर उतरकर आ जाती है। अभी जम्मू कश्मीर और हरियाणा में चुनाव होने वाले हैं। इसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव होने हैं। इस साल के अंत तक या अगले साल के प्रारंभ में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। पिछले 3 सालों से पेट्रोलियम कंपनियों की लगातार लूट चल रही है। अरबो रुपए पेट्रोलियम कंपनियां हर माह भारतीय उपभोक्ताओं के साथ मुनाफाखोरी करके कमा रही हैं। पेट्रोल और डीजल की इस लूट के कारण भारत में महंगाई निरंतर बढ़ रही है। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार इंडियन बास्केट में कच्चे तेल के दाम में 20.61 फ़ीसदी की गिरावट आई है। इसके हिसाब से पेट्रोल और डीजल के रेट में 22 से 25 रूपये प्रति लीटर की कमी होनी चाहिए थी। पिछले ढाई साल में पेट्रोलियम कंपनियों ने केवल दो बार ही पेट्रोल डीजल के दाम घटाए हैं। पेट्रोलियम कंपनियों को रिफाइनरी में भी बड़ा फायदा हो रहा है। भारत में लगभग 27 करोड़ टू व्हीलर चलाने वाले उपभोक्ता है। यह गरीब और मध्यम परिवार के उपभोक्ता हैं। दो पहिया वाहन चालक 12000 से 20000 रूपये प्रतिमाह कमाते हैं। इन्हें अपनी नौकरी और मजदूरी के लिए जाने मे वाहन का इस्तेमाल करना पड़ता है। हल्के और भारी वाहनों को जोड़ लिया जाए, तो करीब 33.50 करोड़ उपभोक्ता नियमित रूप से पेट्रोल और डीजल खरीदतें हैं। पेट्रोल और डीजल के दाम कम होंगे, तो मालभाड़ा भी कम होगा। उपभोक्ता वस्तुओं के दाम घटेंगे। इस तरह की मुनाफाखोरी और लूट पर सरकार की चुप्पी सभी को हैरान कर रही है। अप्रैल 2024 में कच्चे तेल के दाम 89.44 डॉलर प्रति बैरलअंतरराष्ट्रीय बाजार में थे। सितंबर माह में यह घटकर 71 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं। सरकार सब कुछ देख और जान रही है। इसके बाद भी सरकार ने चुप्पी साध रखी है। जनता जानना चाहती है, पेट्रोलियम कंपनियों और सरकार के बीच किस तरह का रिश्ता है। विपक्ष ने पेट्रोलियम कंपनियों की मुनाफाखोरी और लूट पर मौन साध रखा है। रोजाना 33 करोड़ उपभोक्ताओं के साथ खुलेआम लूट हो रही है। पिछले तीन सालों मे सरकार की मिली भगत से पेट्रोलियम कंपनियों ने अरबों-खरबों रुपए की लूट खुलेआम की है। सरकार, पेट्रोलियम कंपनियों पर क्यों मेहरबान है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर आम जनता में गुस्सा है। लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के बीच महंगाई प्रमुख मुद्दा था। सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। जिसके कारण भाजपा को 240 सीटों पर आकर रुक जाना पड़ा। अगले 6 महीने में कई राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। आम जनता के बीच में महंगाई अभी भी सबसे बड़ा मुद्दा है। इसके बाद भी सरकार की चुप्पी सभी को आश्चर्य में डाल रही है। सरकार यह मानकर चलती है। यदि जनता को कोई तकलीफ है। तो वह सड़कों पर आकर विरोध दर्ज करायेगी है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों और मुनाफाखोरी को लेकर कोई विरोध नहीं हो रहा है। इसलिए सरकार इसे कोई मुद्दा नहीं मानती है। जनता को लूट और मुनाफाखोरी से बचना है। ऐसी स्थिति में उसे अपना विरोध दर्ज कराने के लिए आगे आना ही होगा। अन्यथा इसी तरह की लूट आगे भी चलती रहेगी। ईएमएस / 13 सितम्बर 24