केंद्र और राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती चली जा रही है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए लग रहा है, एक बार फिर हम 2000 की स्थिति में लौट रहे हैं। हिमाचल, पंजाब, केरल जैसे राज्य अपने बजट का 70 फ़ीसदी वेतन, ब्याज और पेंशन में खर्च कर रहे हैं। यह खर्च दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। पीआरएस लेजिस्लेटिव संस्था ने सभी राज्यों के बजट का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के बाद यह तथ्य उजागर हुआ है। पेंशन वेतन और ब्याज के रूप में राज्यों में सबसे ज्यादा 79 फ़ीसदी ख़र्च हिमाचल कर रहा है। उसके बाद पंजाब 76 फ़ीसदी, केरल 71 फ़ीसदी, नागालैंड 68 फ़ीसदी, तमिलनाडु 64 फ़ीसदी, हरियाणा 60 फ़ीसदी, कर्नाटक 58 फ़ीसदी, पश्चिम बंगाल 58 फ़ीसदी, उत्तराखंड 57 फ़ीसदी, राजस्थान 55 फीसदी, महाराष्ट्र 55 फ़ीसदी, उत्तर प्रदेश 53 फ़ीसदी, मध्य प्रदेश 45 फ़ीसदी, गुजरात 45 फ़ीसदी, बिहार 41 फ़ीसदी, छत्तीसगढ़ 41 फ़ीसदी। सबसे कम झारखंड 30 फ़ीसदी और उड़ीसा 28 फीसदी राशि, पेंशन ब्याज और वेतन पर खर्च कर रहे हैं। सबसे चिंताजनक स्थिति यह है, पिछले एक दशक से राज्यों ने अपने खाली पदों को नहीं भरा है। संविदा और दैनिकभोगी के रूप में युवाओं की नियुक्तियां की जा रही हैं। इन युवाओं को प्रतिमाह मात्र 12 से 18000 रुपए का वेतन दिया जा रहा है। पिछले कई वर्षों से उनका पारिश्रमिक भी नहीं बढ़ाया गया है। नौकरी के साथ उन्हें जो बेनिफिट मिलने थे, वह भी राज्य सरकारों द्वारा उन्हें नहीं दिए जा रहे हैं। कई वर्षों की नौकरी के बाद भी उन्हें नियमित नहीं किया गया है। जिसके कारण राज्यों की बेरोजगारी चरम सीमा पर पहुंच गई है। शिक्षकों के और पुलिस के लाखों पद विभिन्न राज्यों में कई वर्षों से खाली पड़े हुए हैं। राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा के बजट मे भी लगातार कटौती की जा रही है। विकास कार्यों के बजट पर कटौती हो रही है। चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी राज्य सरकारों के पास खर्च करने के लिए राशि नहीं है। स्वास्थ्य पर बिहार अपने बजट का 5.7 फ़ीसदी, गुजरात 6.5 फ़ीसदी, हिमाचल 6.4 फ़ीसदी, झारखंड 6.02 फ़ीसदी, महाराष्ट्र 4.6 फ़ीसदी, मध्य प्रदेश 6.7 फ़ीसदी, पंजाब 4.6 फ़ीसदी, राजस्थान 8.3 फ़ीसदी, छत्तीसगढ़ 7.1 फ़ीसदी तथा उत्तर प्रदेश 6.02 फीसदी खर्च कर रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में राज्यों को जो राशि खर्च करनी चाहिए, वह नहीं कर पा रहे हैं। गुजरात में आश्चर्यजनक रूप से शिक्षा पर मात्र 5.1 फ़ीसदी खर्च किया जा रहा है। जो भारत के सभी राज्यों में सबसे कम और ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। राज्यों के ऊपर जिस तरीके से पेंशन ब्याज और वेतन का बोझ बढ़ता चला जा रहा है, उसकी भरपाई के लिए राज्यों ने पिछले कई वर्षों में बड़े पैमाने पर कर्ज उठाया है। अधिकांश राज्यों पर लाखों करोड़ रुपए का ऋण है। जिसके ब्याज के तौर पर राज्य के राजस्व का 20 से 25 फ़ीसदी राशि खर्च की जा रही है। यदि यही स्थिति रही, तो 24 साल पहले राज्यों की जिस तरह की आर्थिक हालत थी, वही स्थिति कुछ ही महीनो में देखने को मिल सकती है। राज्यों द्वारा जिस तरह से फ्री बिजली, फ्री राशन तथा तरह-तरह से लोक लुभावन योजनाओं को संचालित किया जा रहा है, उसके कारण राज्यों की आर्थिक स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है। जिसके कारण राज्यों की विकास योजनाओं का काम लगभग ठप्प हो गया है। चुनाव जीतने के लिए जिस तरह से रेवड़ी बांटी जा रही है, उसमें केंद्र सरकार से सभी राज्य शामिल हो गए हैं, जिसके कारण स्थिति और भयावह होती जा रही है। केंद्र सरकार ने पिछले 10 वर्षों में अपने खर्चों को बहुत बढ़ाया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योजनाओं को संचालित करने के लिए बड़े पैमाने पर केंद्र सरकार द्वारा कर्ज लिया गया है। धीरे-धीरे केंद्र सरकार की भी स्थिति ऐसी नहीं रही, कि वह राज्यों की मदद कर सके। 24 साल पहले जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी। उस समय भी केंद्र एवं राज्यों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए सरकार को खर्चों में कटौती करनी पड़ी थी। 30 फ़ीसदी पद खत्म करने के निर्देश केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने सभी राज्यों को जारी किए थे। दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को भी हटाने का निर्णय लिया गया था। लगभग वही स्थिति 24 साल बाद एक बार फिर बनती हुई दिख रही है। पिछले 10 वर्षों में केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा बेतहाशा टैक्स एवं तरह-तरह के शुल्क बढ़ाए गए हैं, जिसके कारण महंगाई बढ़ी है। गरीब से गरीब आदमी को जीएसटी के रूप में 12 से 28 फ़ीसदी तक का टैक्स देना पड़ रहा है। जिसके कारण गरीबों की आर्थिक स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही है। गरीब एवं मध्यम वर्ग पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है। महंगाई बढ़ रही है, लेकिन उसकी आमदनी नहीं बढ़ रही है। एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार हो रही है। सरकारी स्कूलों को बड़ी तेजी के साथ बंद किया जा रहा है। जिसके कारण गरीब और मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यदि यही स्थिति कुछ माह और रही, तो बड़ी आर्थिक अव्यवस्था देश में फैल सकती है। ईएमएस / 30 नवम्बर 24