लेख
11-Jan-2025
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विश्व के अनेक देशों में अपनी ही सरकारों से जनता असंतुष्ट नजर आ रही है। ऐसे में हालात बद से बदतर हो रहे हैं और स्थिति गृहयुद्ध तक पहुंचती नजर आ रही है। इसके उदाहरण खोजने के लिए ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि भारत के पड़ोसी मुल्कों पर ही एक नजर दौड़ा ली जाए तो मालूम चल जाएगा कि सरकारों की साख किस कदर गिर चुकी है कि आवाम किसी बड़े युद्ध का आगाज करने से भी गुरेज नहीं कर रही है। मौजूदा स्थिति में बांग्लादेश और म्यांमार में गृहयुद्ध वाली स्थिति बनी हुई है। म्यांमार में तो शासन-प्रशासन अपने ही लोगों पर हवाई हमले करने को मजबूर है। म्यांमार में आन सान सू की सरकार के तख्तापलट के बाद से ही गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। ताजा घटनाक्रम में म्यांमार के रखाइन प्रांत में सैन्य सरकार की तरफ से किए गए हवाई हमले में 40 नागरिकों की मौत हुई है। इसकी जानकारी संयुक्त राष्ट्र ने भी दी और कहा कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देश का यह गृह युद्ध अपने चौथे साल के करीब पहुंच गया है। इसी तरह पाकिस्तान में भी स्थिति अनकंट्रोल जैसी बनी हुई है। सरकार के खिलाफ पाकिस्तान में भी लगातार धरने-प्रदर्शन के साथ सेना व पुलिस पर हमले हो रहे हैं। जहां तक बांग्लादेश की बात है तो प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से ही स्थिति असामान्य बनी हुई है। अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले हो रहे हैं और मौजूदा मोहम्मद यूनुस वाली सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ता ही चला जा रहा है। शासन-प्रशासन के खिलाफ जनता का खुला विरोध यह दिखाता है कि केवल सत्ता में बने रहना ही पर्याप्त नहीं होता है। सरकार की नीतियों से असंतोष पनप रहा है, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमता ने देश की स्थिति को गंभीर बना दिया है। यहां तक कि सत्ता से अलग होने के बाद भी हालात सामान्य नहीं हो पा रहे हैं। यह दर्शाता है कि लोकतंत्र और सुशासन के बिना जनता का विश्वास वापस पाना मुश्किल है। एक प्रकार से विश्व के कई देशों में सरकारों की गिरती साख और प्रशासन के प्रति जनता का गहराता अविश्वास एक गंभीर चुनौती के तौर पर उभरा है। म्यांमार, पाकिस्तान, और बांग्लादेश जैसे देशों में वर्तमान परिस्थितियां इस समस्या का जीवंत उदाहरण हैं। जहां एक ओर जनता सरकारों के खिलाफ आवाज उठा रही है, वहीं दूसरी ओर सरकारें इन विरोधों को दबाने के लिए कठोर कदम उठा रही हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि सरकारों की इस गिरती साख का असली जिम्मेदार कौन है? म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध ने प्रशासनिक ढांचे को तहस-नहस कर दिया है। सैन्य शासन द्वारा जनता के खिलाफ हवाई हमले और कठोर दमनकारी नीतियों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। जनता और प्रशासन के बीच संवादहीनता, लोकतंत्र की कमी, और मानवाधिकारों के उल्लंघन ने इस समस्या को और गहराया है। जब सरकारें अपने ही नागरिकों को दुश्मन के रूप में देखने लगती हैं, तो स्थिति विस्फोटक होना तय है। इसी तरह से पाकिस्तान में भी सरकार और सेना के खिलाफ जनता का गुस्सा चरम पर है। आर्थिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, और राजनीतिक अनिश्चितता ने लोगों के धैर्य की सीमा लांघ दी है। वहां की सरकारें न केवल जनता की समस्याओं को हल करने में असफल रही हैं, बल्कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और सेना के साथ संघर्ष ने हालात को बदतर बना दिया है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में हैं, लेकिन मौजूदा शहवाज शरीफ सरकार की मुश्किलें कम नहीं हो पा रही हैं। टीटीपी ने सरकार और सुरक्षाबलों की नाक में दम कर रखा है। बैठे-बिठाए अफगानिस्तान से पंगा ले लिया सो अलग। वैसे भी जब नागरिक अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन करते हैं और उन्हें पुलिस या सेना के बल से दबाने की कोशिश की जाती है, तो सरकारों की साख स्वाभाविक रूप से गिरती ही है। इसके अलावा देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता आवाम का विश्वास खोने के लिए काफी होता है। इसके साथ ही जनता की बुनियादी जरूरतें पूरी न होना और बढ़ती आर्थिक असमानता सरकारों के प्रति गुस्से को बढ़ाती है। एक तरफ अमीर और अमीर होता चला जाता है, जबकि गरीब और गरीब होता चला जाता है। अमीर और गरीब के बीच चौड़ी होती यह खाई सरकार के लिए मुसीबतें खड़ी कर देती है। इसके बाद शुरु होता है मानवाधिकारों का उल्लंघन और हनन। इसमें दमनकारी नीतियां और बल प्रयोग जनता और सरकार के बीच जहर घोलने का काम करती हैं। सरकार और नागरिकों के बीच संवाद का अभाव भी अविश्वास को जन्म देता है। सरकारें अस्थिर होने लगती हैं और जब सरकारें स्थिर नहीं होतीं, तो वे जनता के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हो जाती हैं। ऐसी सरकारों के पास खुद का किया हुआ बताने को कुछ होता नहीं और पू्र्व की सरकारों पर अपनी गलतियों का ठीकरा फोड़ना इनकी आदत बन जाती है। यह स्थिति बहुत दिनों तक नहीं चल पाती और जनता में सरकार के प्रति अविश्वास पनपने लग जाता है। अब ऐसी स्थिति में सरकारों को अपनी साख बचाने के लिए बेहतर कदम उठाने की दिशा में विचार करना होता है। सरकारों को अपने कार्यों में पारदर्शिता लानी होती है। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाने होते हैं। जनता की बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता देकर आर्थिक असमानता को कम करना होता है। सरकार को जनता के साथ संवाद बनाए रखना, जिससे उनकी समस्याओं को सही ढंग से समझा जा सके। शक्ति का विकेंद्रीकरण के साथ ही लोकतंत्र को मजबूत करने और सत्ता में आमजन की भागीदारी को सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। अंतत: सैन्य ताकत का प्रयोग करने के बजाय समस्या के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करना सरकार की साख को बचा सकता है। ईएमएस / 11 जनवरी 25