मुझे अभी तक विश्वास नही हो रहा है कि देवभूमि उत्तराखंड के महान संस्कृतविद डॉ महावीर अग्रवाल अब हमारे बीच नही है।मात्र 74 वर्ष की आयु में उनका महाप्रयाण हमे झकझोर गया।गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य , कुलसचिव उपकुलपति ,उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति व पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति के रूप में उनकी ख्याति जहां शिक्षा जगत में शीर्ष पर रही वही वैदिक ज्ञान,श्रीमद्भागवत गीता के प्रखर वक्ता के रूप में उनकी देश विदेश में भागीदारी उनकी परम् विद्वता का परिचायक थी। पिछले कुछ समय से अस्वस्थता के चलते प्रो0 महावीर अग्रवाल का उपचार बैंगलोर स्थित एक चिकित्सालय में चल रहा था।गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर हेमलता व कुलसचिव सुनील कुमार ने डॉ महावीर अग्रवाल के निधन को गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के लिए अपूर्णीय क्षति बताते हुए उनके द्वारा शिक्षा जगत व आर्य जगत में किए गए कार्यों को अविस्मरणीय व बहुमूल्य बताया। डॉ महावीर अग्रवाल द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों के लिए हमेशा याद किए जायेंगे। शिक्षा के क्षेत्र में किए गए बहुमूल्य योगदान के लिए डॉ महावीर अग्रवाल को राष्ट्रपति द्वारा भी सम्मानित किया गया था,वहीं वह विभिन्न विश्वविद्यालयों की समितियों के सदस्य रहे। वह उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी के सचिव भी रहे।डॉ. अग्रवाल को पिछले 47 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में दिए योगदान के लिए जाना जाता रहा है। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्म लेकर अपनी योग्यता, कर्तव्यनिष्ठा से डॉ महावीर अग्रवाल को काशी की विद्वतपरिषद ने महामहोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया था । डॉ महावीर अग्रवाल को डी.लिट उपाधि से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। डॉ. अग्रवाल ने अमेरिका, थाईलैंड, इंग्लैंड और नेपाल आदि देशों मे भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत का गौरव बढ़ाया। दूरदर्शन के अलावा आस्था और संस्कार चैनल मे प्रसारित होने वाला उनका उपनिषद-सुधा कार्यक्रम अत्यन्त ही लोकप्रिय रहा। संस्कृत के सबसे बड़े आयोजन अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन के अध्यक्ष रह चुके डॉ. महावीर अग्रवाल भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष भी रहे।डॉ महावीर अग्रवाल से आत्मिक रिश्ते के कारण कई बार मुझे उनके घर जाने , तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत से उनकी मुलाकात कराने व ब्रह्माकुमारीज के गीता सम्मेलनों में उन्हें स्पीकर के रूप में ले जाने का सौभाग्य मिला।आर्य समाज के प्रचारक होते हुए भी वे ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय सेवा व ब्रह्माकुमारीज द्वारा विश्व व्यापी स्तर पर चलाये जा रहे चरित्र निर्माण अभियान के कायल थे।वे अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी, दो पुत्र ,एक पुत्री तथा अपने असंख्य चाहने वालो को छोड़ गए है।उन्हें मेरा शत शत नमन। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) ईएमएस / 18 मार्च 25
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