नई दिल्ली(ईएमएस)। अभी तो ठीक से गर्मी की शुरुआत भी नहीं हुई कि जल संकट की आहट आने लगी है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की रिपोर्ट के अनुसार, देश के ज्यादातर प्रमुख जलाशयों का जलस्तर उनकी कुल क्षमता का 45 फीसदी तक कम हो गया है। मौसम विज्ञान विभाग ने मार्च से मई के बीच झुलसा देने वाली गर्मी के दिनों की अवधि सामान्य से अधिक रहने की भविष्यवाणी की है। ऐसे में परेशानियां बढ़ने की आशंका है। इस समय उत्तरी क्षेत्र के जलाशयों का जल स्तर उनकी कुल क्षमता का सिर्फ 25 फीसदी रह गया है। इनमें पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के 11 जलाशय हैं। हिमाचल प्रदेश और पंजाब के जलाशयों में सामान्य से क्रमश: 36 और 45 फीसदी कम पानी है। इसी तरह पश्चिमी क्षेत्र के जलाशयों का जलस्तर उनकी क्षमता का 55प्रतिशत, मध्य क्षेत्र में 49 और पूर्वी क्षेत्र में 44 फीसदी है। देश की 20 नदी घाटियों में से 14 में मौजूदा जल भंडार उनकी क्षमता के मुकाबले आधे से भी कम है। इन नदी बेसिनों में से गंगा अपनी सक्रिय क्षमता के मुकाबले मात्र 50 फीसदी पर है, जबकि गोदावरी में 48, नर्मदा में 47 और कृष्णा में सिर्फ 34 फीसदी पानी ही शेष बचा है। ये जलाशय सिंचाई के साथ ग्रामीण और शहरी घरेलू जल आपूर्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक हैं। हालांकि, बढ़ते तापमान के साथ इन बहुमूल्य जल संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है। सीडब्ल्यूसी के अनुसार, देश के 155 प्रमुख जलाशयों में फिलहाल 8,070 करोड़ क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी बचा है, जबकि इनकी कुल क्षमता 18,080 करोड़ क्यूबिक मीटर है। पानी का सबसे अधिक उपयोग खेती में होता है, इसके बाद औद्योगिक क्षेत्र और घरेलू आवश्यकताओं के लिए होता है। देश के कई हिस्सों में पहले ही तापमान सामान्य से बहुत अधिक है और मानसून आने में अभी दो महीने से ज्यादा का समय है। ऐसे में जलाशयों का घटता जलस्तर रबी और खरीफ के बीच उगाई जाने वाली फसलों पर असर डाल सकता है। नदी प्रणालियां सिंचाई, पेयजल के साथ देश की बड़ी आबादी को रोजी-रोटी देने का काम करती हैं। घटता जल स्तर इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन, जीविका और कृषि पर गहरा असर डाल सकता है। वीरेंद्र/ईएमएस/27मार्च2025