:: पट्टाचार्य महामहिम आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी का पहला आशीर्वचन :: इन्दौर (ईएमएस) पट्टाचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने लाखों की संख्या में पधारे समाज जन को अपनी मंगल देशना में संबोधित करते हुए कहा कि समाधिस्थ गुरुदेव विराग सागर ने मुझमें क्या देखा, यह मुझे नहीं पता। मैंने केवल गुरु सेवा और उनकी आज्ञा को देखा और उसी मार्ग पर बढ़ता गया। आज भी यह जिम्मेदारी गुरु आज्ञा से संभाल रहा हूं। मुझे याद है, मेरे गुरुदेव ने मेरे भीतर वैराग्य के बीज को पहचाना और एक झलक में ही वह प्रस्फुटित हो उठा। आगम कहता है कि एक बार जिसे गुरु मान लिया जाए, वह जीवन भर गुरु ही रहना चाहिए। दीक्षा के बाद मैंने एक दिन भी गुरु कक्ष छोड़ा नहीं। मैंने संकल्प लिया था कि गुरु के सामने कभी लेटूंगा नहीं, न ही खांसूंगा। एक रात 3 बजे गुरुदेव की पिच्छी मेरे सिर पर घूम रही थी, उन्होंने कहा — जाग जाओ, सोने की जरूरत नहीं है, जिनागम का रहस्य समझो। उस समय तो समझ नहीं आया, लेकिन आज समझ आ रहा है कि वे मुझे इस दायित्व के निर्वाहन के लिए तैयार कर रहे थे। यदि मुझसे कोई प्रश्न पूछे कि आप इस पद तक कैसे पहुंचे तो मेरा उत्तर होगा — विधि, अभ्यास और गुरु का आशीर्वाद कभी नहीं छोड़ना चाहिए। आज इस सिंहासन पर जो प्रतिष्ठा हुई है, वह अकेले मेरी नहीं है, सभी 12 आचार्यों को मिलकर इस पद के कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा। आनन्द पुरोहित/ 01 मई 2025