लेख
05-May-2025
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भारतीय संविधान ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संविधान से संरक्षित किया है। प्रतीक नागरिक के जीवन की स्वतंत्रता उसकी संपत्ति और अभिव्यक्ति और धार्मिक स्वतंत्रता नागरिकों के मौलिक अधिकारों में शामिल है। पिछले कई वर्षों से नागरिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई है। पिछले कुछ वर्षों में भीड़ तंत्र जिस तरह का उत्पात मचा रहा है। उसमें नागरिकों की केवल स्वतंत्रता ही खत्म नहीं हो रही है। उनका जीवन भी खतरे में पड़ गया है। उसकी सुरक्षा करने की जो जिम्मेदारी पुलिस और न्यायपालिका की थी वह भी निष्क्रिय होकर तमाशा देख रही है, जिसके कारण अब लोगों को अपने जीवन के साथ संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्मादी भीड़ के सामने निरीह नागरिक ना तो अपनी संपत्ति की सुरक्षा कर पा रहा है ना ही अपनी जान को बचा पा रहा है। पुलिस खड़े होकर तमाशा देखती रहती है। जिला प्रशासन और न्यायपालिका ने भी चुप्पी साध कर रखी हुई है। पीड़ित व्यक्ति जब अपनी गुहार लगाने के लिए थाने और न्यायालय की शरण में जाता है। जब वहां पर भी उसे कोई राहत नहीं मिलती है। ऐसी स्थिति में लोग पलायन करके अपनी जान बचाते हुए यहां से वहां भागते हुए दिख रहे हैं। भारतीय संविधान ने नागरिकों के जो अधिकार सर्वोच्चता के साथ रखे थे कार्यपालिका और विधायिका को संविधान में पाबंद किया था कि वह नागरिक सर्वोच्चता को बनाए रखेगी ऐसा कोई भी कानून और नियम नहीं बन सकेगी जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करते हों संविधान ने न्यायपालिका को यह जिम्मेदारी दी थी। नागरिकों के मौलिक अधिकारों का यदि कहीं हनन होता है, तो उसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की है। लेकिन पिछले एक दशक से न्यायपालिका जिस तरह से सरकार के दबाव में काम करती हुई दिख रही है। उसके कारण स्थिति अब बहुत खराब हो गई है। भीड़ किसी भी सामान्य नागरिक की जान ले लेती है। उसका धंधा उजाड़ देती है। संगठित भीड़ किस तरह से हिंसा कर रही है। वह सभी को आश्चर्य में डाल रही है। इस हिंसा के कारण लोग विरोध करने के स्थान पर अपने आप को बचाने के लिए अपने ही स्तर पर जो कर सकते हैं, करने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग अपनी जान और धंधे पानी को बचा लेते हैं और कुछ सब कुछ गवाँ देते हैं पिछले एक दशक से भारत में यही देखने को मिल रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2019 में सांप्रदायिक दंगों के 2322 मामले दर्ज किए गए इसमें 1257 लोगों की मौत हो गई। 2000 से अधिक लोग घायल हुए 10000 से अधिक हिंसक सार्वजनिक घटनाएं हुई। जिसमें बड़े पैमाने पर आगजनी हमले और व्यवसायों को नष्ट किया गया। मणिपुर की घटना सबके सामने है 2020 के बाद से सांप्रदायिक अशांति बड़ी तेजी के साथ फैलती जा रही है। 2020 में नागरिक संशोधन अधिनियम को लेकर देशभर में भारी प्रदर्शन हुए देश की राजधानी दिल्ली में हुए दंगे में सेकंड लोग मारे गए सैकड़ो लोग घायल हुए। दक्षिण के राज्य कर्नाटक के बेंगलुरु में भी एक बड़ी भीड़ ने पुलिस स्टेशनों पर हमला कर दिया वाहनों में आग लगा दी। पश्चिम बंगाल में पिछले कई वर्षों से लगातार सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ाया जा रहा है। चुनाव के दौरान यह हिंसा अपने जन्म पर होती है। राज्य के चुनाव में कुछ बिहार नंदीग्राम और वीर भूमि में राजनीति से प्रेरित हिंसा में 47 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। हजारों लोगों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा आज भी वह विस्थापित के रूप में रह रहे हैं। यही हाल मणिपुर में है। 2 साल से वहां पर हिंसा हो रही है केंद्र सरकार राज्य सरकार और सुप्रीम कोर्ट मिलकर भी इस हिंसा में नागरिकों की सुरक्षा नहीं कर पा रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड के डेटा मैं पिछले वर्षों में 36 फ़ीसदी सांप्रदायिक झड़पें बढ़ गई हैं। राज्य सरकार केंद्र सरकार स्थानीय पुलिस और न्यायपालिका की चुप्पी इस तरह की हिंसा को बढ़ावा दे रही है। संविधान ने प्रत्येक भारतीय नागरिक को सम्मान के साथ जीवन की सुरक्षा का अधिकार दिया है। सामाजिक और धार्मिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है लेकिन यह संविधान की बंद किताबों में है। अब इसको लेकर ना तो न्यायपालिका जागरुक है और ना ही कार्यपालिका अपनी जवाब देही को पूरा कर रही है। हर जगह अराजकता की स्थिति देखने को मिल रही है। ऐसे समय में अब नागरिकों की जिम्मेदारी है कि वह संगठित होकर अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ें शासन और प्रशासन के भरोसे रहने से अब जो संवैधानिक अधिकार मिले हुए हैं। वह सुरक्षित रहने वाले नहीं हैं। नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए निडरता के साथ सड़कों पर आना होगा अपने अधिकार और कर्तव्यों की लड़ाई शांतिपूर्ण ढंग से लड़ते हुए अपने अधिकारों को यदि सुरक्षित बनाए रखने में सफल हुए तो ठीक है जब बच्चा रोता है, तभी मां उसे दूध पिलाती है लोकसभा में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली साहब कह चुके हैं यदि जनता को कोई तकलीफ है तो वह अपना विरोध सड़कों पर आकर प्रदर्शित करे यदि ऐसा नहीं करती है, तो सरकार को कैसे पता लगेगा की लोक सरकार के निर्णय से खुश हैं या नाखुश है यह बात उन्होंने नोटबंदी के मामले में विपक्ष को जवाब देते हुए कही थी भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को समानता न्याय और गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार दिया है इस अधिकार को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी नागरिकों की है। जब नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्य से विमुख होते हैं। तभी यह अधिकार उनसे छीन लिए जाते हैं यही वर्तमान में हो रहा है। ईएमएस / 05 मई 25