ज़रा हटके
09-May-2025
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लंदन,(ईएमएस)। कोहिनूर हीरे को लेकर फिर से चर्चा तेज हो गई है। ब्रिटेन की संस्कृति मामलों की सचिव, लिसा नैंडी ने भारत और ब्रिटेन के बीच चल रही बातचीत का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि दोनों देश पुराने सांस्कृतिक विरासतों और ऐतिहासिक चीजों को लेकर मिलकर काम कर रहे हैं। इसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल है, जो भारत के इतिहास और ब्रिटिश शासन से गहराई से जुड़ा हुआ है। नैंडी ने बताया कि चर्चा इस पर हो रही है कि कैसे दोनों देश मिलकर अपने नागरिकों को इन सांस्कृतिक धरोहरों तक पहुंच दिला सकते हैं। ब्रिटेन में भारतीय मूल की मंत्री लिसा नैंडी ने बताया कि “हम भारत और ब्रिटेन के बीच लंबे समय से बातचीत कर रहे हैं, ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि दोनों देशों के लोग इन सांस्कृतिक चीजों से जुड़ सकें, जो एक अलग दौर से आई है। मैंने अपने भारतीय समकक्ष से भी इस बारे में बात की है। उनके बयान से फिर उम्मीद जागी है कि कोहिनूर भारत वापस आ सकता है। कोहिनूर दुनिया के सबसे बड़े कटे हुए हीरों में से एक है, जिसका वजन करीब 105 कैरेट है। हीरे की शुरुआत को लेकर मतभेद हैं, लेकिन माना जाता है कि यह गोलकोंडा की खदानों से निकला था। इस 13वीं सदी में वर्तमान आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के कोल्लूर खान से निकाला गया था। इसके बाद यह कई राजवंशों के हाथों से गुजरते हुए पहले मुगलों के पास, फिर ईरानी और अफगानी शासकों के पास रहा। साल 1813 में पंजाब के सिख महाराजा रणजीत सिंह के पास यह हीरा पहुंचा। लेकिन जब अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा किया, तब सिंह के बेटे दलीप सिंह को मजबूर किया गया कि वह यह हीरा अंग्रेजों को “तोहफे” के रूप में दे दें। इसके बाद लॉर्ड डलहौज़ी के निर्देश पर यह हीरा ब्रिटेन भेजा गया और क्वीन विक्टोरिया के गहनों का हिस्सा बना। रानी विक्टोरिया ने कोहिनूर को एक ब्रोच के तौर पर पहना और बाद में कोहीनूर को ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स में शामिल कर लिया गया। तब से लेकर आज तक यह हीरा ब्रिटेन में ही है। लेकिन भारत में समय-समय पर कोहिनूर को वापस लाने की मांग उठती रही है। साल 2022 में भारत ने फिर कोहिनूर को वापस लाने की इच्छा जाहिर की थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि भारत सरकार इस मुद्दे को समय-समय पर ब्रिटेन के सामने उठाती रही है और भविष्य में कोहिनूर को वापस लाने के रास्ते खोजेगी। कोहिनूर सिर्फ एक बेशकीमती हीरा नहीं है, बल्कि भारत के औपनिवेशिक अतीत की एक बड़ी पहचान भी है। आशीष/ईएमएस 09 मई 2025