हर विद्यार्थी की यही इच्छा होती है कि उसे कम से कम पढ़ाई करना पड़े और अच्छे नंबर मिल जाएं । जो भी विद्यार्थी ये चाहते हैं उनके लिए जबलपुर की रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी सबसे ज्यादा मुफीद साबित होगी क्योंकि ये महान यूनिवर्सिटी है जो कम नंबर तो छोड़ो बिना परीक्षा आयोजित किए ही उसका रिजल्ट खोल देती है इतना ही नहीं छात्र-छात्राओं ने जिन विषयों की परीक्षा ही नहीं दी उनके अंक भी मार्कशीट में दे देती है। पता चला है कि साठ से अधिक छात्रों को वोकेशनल विषय के तहत ई-कॉमर्स की जगह ऑर्गेनिक फार्मिंग में अंक दे दिए गए जबकि उनके एडमिट कार्ड और उत्तर पुस्तिकाओं में स्पष्ट रूप से ई-कॉमर्स विषय दर्ज था, अब आप सोचो कि इससे ज्यादा विद्यार्थियों की चिंता कौन कर सकता है कि आप परीक्षा भी मत दो और परिणाम भी ले लो ऐसा कमाल सिर्फ रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में ही संभव है इसलिए अपनी तमाम छात्र छात्राओं से एक ही अपील है कि वे रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में एडमिशन ले ले और बिना परीक्षा दिए मार्कशीट और परिणाम लेकर निकल जाएं। एक कमाल और रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में हो रहा है विश्वविद्यालय के कुलगुरु के खिलाफ एक महिला ने आरोप लगाएं लेकिन उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा जांच पर जांच हो रही है लेकिन वे बाकायदा कुलगुरु बने हुए हैं, अब जब जांच का रिजल्ट आएगा तब पता लगेगा कि कुल गुरु वास्तव में दोषी है या नहीं लेकिन एक महिला द्वारा लगाए गए आरोपों के बावजूद अगर वे अपने पद पर काबिज है इससे आप अंदाजा लगा लो कि रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी में कुछ भी संभव है। किसी भी छात्र-छात्रा के लिए इससे ज्यादा बेहतर यूनिवर्सिटी भारत के किसी भी कोने में नहीं हो सकती जो बिना परीक्षा आयोजित किए ही उसका रिजल्ट खोल दे, अपने को तो समझ में नहीं आता की ऐसे कौन से जांच करता होंगे जिन्होंने बिना परीक्षा के रिजल्ट बना दिया और जारी भी कर दिया ,अब सफाई दी जा रही है की भाई कंप्यूटर के कारण ये सब लफड़ा हो गया है यानी सारा दोष बेजुबान कंप्यूटर के सिर पर डाल दो ,अरे भाई जब किसी जांच करता ने नंबर दिए होंगे वही नंबर तो कंप्यूटर में फीड हुए होंगे और उसी के आधार पर रिजल्ट बना होगा क्या कंप्यूटर खुद ब खुद छात्र-छात्राओं के अंक डालकर रिजल्ट घोषित कर सकता है और अगर ऐसा है तो ये वास्तव में शोध का विषय है और इस पर अगर कोई शोध करेगा तो उसे बड़े आराम से पीएचडी अवार्ड हो जाएगी । अपने को तो इस बात का बड़ा रंज है कि अपन ने कई बरस पहले क्यों परीक्षा दी, क्यों इतनी पढ़ाई करी और उसके बाद भी नंबर कम आए, आज की तारीख में यदि छात्र होते तो बेहतरीन बिना परीक्षा दिए मार्कशीट लेकर आज कहां से कहां पहुंच जाते लेकिन क्या करें अपनी अपनी किस्मत है ,अब जिनकी किस्मत में आज की तारीख में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय का छात्र-छात्रा होना लिखा होगा उनको ही ये फायदा मिलेगा । अपना तो मानना ये है कि बेवजह में काहे को परीक्षा आयोजित करते हो, विद्यार्थी भी परेशान होते हैं यूनिवर्सिटी को भी भारी व्यवस्था करना पड़ती है जब एक बार बिना परीक्षा आयोजित किए ही परिणाम घोषित कर दिए गए तो इसी को कंटिन्यू कर दो इसी में विद्यार्थियों का और यूनिवर्सिटी दोनों का ही फायदा है । बाबुओं का जलवा शायद ही ऐसा कोई आदमी होगा जो सरकारी दफ्तर में गया हो और बाबू ने उसका काम बड़ी आसानी से कर दिया होगा और अगर कोई ऐसा व्यक्ति होगा तो वो दुनिया का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति होगा क्योंकि जब प्रदेश के मुखिया डॉक्टर मोहन यादव ये कह सकते हैं कि सरकारी दफ्तर में बाबुओं के चक्कर लगा लगा के चप्पल घिस जाती है तो आप इससे अंदाजा लगा लो कि आम आदमी की क्या हालत होती होगी। वैसे डॉक्टर साहब ने कोई गलत बात तो कहीं नहीं किसी भी सरकारी दफ्तर में आप अपना काम करवाने चले जाओ । आवेदन दे दो और फिर बाबू के चक्कर लगाना शुरू कर दो आपकी अफसर से लाख पहचान हो वो भले ही आपका लंगोटिया यार हो लेकिन जब तक बाबू आपका आवेदन ऊपर तक नहीं पहुंचाएगा आपका सारा जुगाड़ फेल है । बाबू आज की तारीख में सबसे ज्यादा ताकतवर होता है प्रदेश के मुखिया ने कहा कि जब वे वकालत करते थे तब उन्हें बात का एहसास हुआ था कि सरकारी दफ्तर के बाबुओं के चक्कर में जो फंस गया उसकी लाई लुटने में देर नहीं लगती क्योंकि वो ऐसे ऐसे पेंच फंसाता है जिसका कोई अंत नहीं होता। एक ऑब्जेक्शन आप क्लियर करोगे तो वो दूसरा ऑब्जेक्शन लगा देगा आप दूसरा क्लियर करोगे तो तीसरी गलती निकाल देगा यानी उसके पास तो ऑब्जेक्शनों की गठरी रहती है आप कितने ही ऑब्जेक्शन क्लियर करते चलो लेकिन उसकी ऑब्जेक्शन की गठरी में से रक्तबीज की तरह ऑब्जेक्शन जन्म लेते ही रहेंगे इसलिए इंसान जब किसी सरकारी दफ्तर में जाता है तो सबसे पहले बाबू को दंडवत प्रणाम करता है क्योंकि उसको मालूम है कि उसका काम सिर्फ बाबू ही कर सकता है। जो होशियार होते हैं वो फालतू चप्पल घिसने में अपना समय बर्बाद नहीं करते वे सीधे-सीधे बाबू से दो टूक बात करते हैं सौदा तय करते हैं और फिर वो आवेदन सौ की स्पीड से दौड़ने लगता है और कुछ ज्यादा ही सेवा कर दो तो आपका काम घर बैठे बैठे हो जाता है आपको दफ्तर जाने की जरूरत भी नहीं होती इसलिए कहते हैं कि बाबू की महिमा अपरंपार होती है शायद यही कारण है कि लोग बाग चाहते हैं कि एक बार सरकारी नौकरी में घुस जाएं और बाबू बन जाए फिर जिंदगी बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगता अफसर हो या मंत्री यदि बाबू ने मामला अटका दिया तो फिर समझ लो उसका हल भगवान के पास भी नहीं होता मंत्री और अफसर लगते कहां हैं बाबू कहने को तो बाबू होता है लेकिन उसकी बखत क्या होती है ये वही जान सकता है जिसका किसी बाबू से पाला पड़ा हो । रसगुल्ले की चोरी जबलपुर के पास सिहोरा में एक बेकरी शॉप से किसी रसगुल्ला प्रेमी ने एक नामचीन कंपनी का रसगुल्ला का डिब्बा चुरा लिया बेचारे को रसगुल्ला बहुत पसंद था ,जीभ में पानी आ रहा था बार-बार रसगुल्ला खाने की इच्छा हो रही थी लेकिन जेब में पैसे नहीं थे लेकिन इच्छा को कब तक दबाता सो उसने रसगुल्ला का डिब्बा ही चुरा लिया बेकरी वाले ने पुलिस में शिकायत कर दी पुलिस ने तुरंत रिपोर्ट दर्ज कर ली लेकिन जब ये खबर अखबारों की सुर्खियां बनी तो रिपोर्ट दर्ज करने वाले टी आई साहब की वाट लग गई ,ऊपर से बत्ती आई कि पांच हजार से कम की चोरी की रिपोर्ट नहीं की जा सकती फिर रिपोर्ट कैसे दर्ज कर ली गई वैसे उस रसगुल्ला प्रेमी ने एक काम और किया था कि उसने एक गुटखा भी चुरा लिया था और वो इसलिए चुराया था कि रसगुल्ला खाने के बाद स्वाद बदलने के लिए गुटके की भी जरूरत थी चूंकि बेकरी में पान था नहीं इसलिए उसने गुटका ही चुरा कर अपनी इच्छा की पूर्ति कर ली। लेकिन इस चक्कर में बेचारे टी आई साहब को स्पष्टीकरण देना पड़ रहा कि उन्होंने कुल जमा 165 रुपए की चोरी की रिपोर्ट आखिर लिखी तो लिखी कैसे? टी आई साहब अब कैसे बताएं कि उन्होंने तो बहुत फुर्ती दिखाई थी अब वही फुर्ती उनके गले पड़ गई है देखना है साहेब जी अपने स्पष्टीकरण में क्या-क्या लिखते हैं। सुपरहिट ऑफ़ द वीक श्रीमान जी अपने ससुराल गए थे उनकी सास ने एक हफ्ते तक उन्हें पालक की सब्जी खिलाई और फिर आठवें दिन पूछा दामाद जी आप क्या खाओगे आप तो मुझे पालक का खेत दिखा दो मैं खुद चर कर आ जाऊंगा श्रीमान जी ने उत्तर दिया। ईएमएस / 09 मई 25