व्यापार
11-May-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। जो लग्जरी कार अमेरिका या दुबई में औसत कमाई वाले लोग भी खरीद सकते हैं, वही कार भारत में करोड़ों रुपये की कैसे बन जाती है। इसका जवाब टैरिफ और टैक्स की जटिल व्यवस्था में छिपा है। उदाहरण के तौर पर, दुबई में महज 30 लाख रुपये में मिलने वाली एसयूवी भारत में पहुंचते-पहुंचते करीब 2 करोड़ रुपये की हो जाती है। ऐसा ही अंतर बीएमडब्ल्यू एक्स5 और रेंज रोवर जैसी कारों में भी देखने को मिलता है। इनवेस्टमेंट बैंकर सार्थक आहुजा के मुताबिक, रेंज रोवर जो अमेरिका में सिर्फ 80 लाख रुपये में मिलती है, वह भारत में 2 करोड़ रुपये में बिकती है। इसी तरह, फार्च्यूनर जो भारत में करीब 50 लाख की है, वह दुबई में केवल 35 लाख रुपये में मिल जाती है। इस भारी अंतर की सबसे बड़ी वजह है भारत में लागू टैरिफ यानी आयात शुल्क। सरकार लग्जरी गाड़ियों पर 60 से 100 फीसदी तक का इंपोर्ट ड्यूटी वसूलती है। इसके अलावा 28 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाया जाता है और उस पर भी अलग से सेस जोड़ा जाता है। यही नहीं, इन सभी टैक्स के अलावा रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन फीस जैसे राज्य-स्तरीय शुल्क भी उपभोक्ता को चुकाने होते हैं। कुल मिलाकर, किसी इम्पोर्टेड कार की मूल कीमत का लगभग 45 से 50 फीसदी केवल टैक्स और शुल्क में चला जाता है। इसके उलट, दुबई जैसे देशों में इंपोर्ट ड्यूटी और टैक्स काफी कम होते हैं, जिससे वही कार वहां बहुत सस्ती मिल जाती है। इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि भारत में बनी टाटा, मारुति और महिंद्रा जैसी कंपनियों की गाड़ियां अपेक्षाकृत सस्ती होती हैं क्योंकि इनका निर्माण यहीं होता है और इन पर आयात शुल्क लागू नहीं होता। यही कारण है कि स्थानीय निर्माण से ग्राहकों को कम कीमत का लाभ मिल जाता है। लेकिन जैसे ही ये गाड़ियां विदेश जाती हैं, वहीं की टैक्स व्यवस्था इन्हें महंगी बना देती है। सुदामा/ईएमएस 11 मई 2025