लेख
12-May-2025
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भारत के परमाणु परीक्षण के पुरोधा डॉ आर चिदंबरम 11मई 25 को याद किए गए पोखरण -2 परमाणु परीक्षण नेशनल टेक्नोलॉजी दिवस पर 11मई25, को डॉ चिदंबरम की याद में वैज्ञानिक जनवरी -मार्च 25 का अंक का पुनः याद किया गया का डॉ आर चिदंबरम का 4 जनवरी 2025 में 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया, था वे भारत के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख वास्तुकारों में से एक थे.निश्चित रूप से परिषद के लिए उनका योगदान अहम व प्रेरणास्रोत हिंदी विज्ञान में एक नई क्रांति मुंबई के वैज्ञानिकों ने 1968 में हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद की नींव रखी और 2साल बाद वैज्ञानिक पत्रिका का सतत प्रकाशन हुआ जो आज भी ऑनलाइन माध्यम से चल रही है औऱ हाल ही में महान वैज्ञानिक डॉ आर चिदंबरम के निधन पर वैज्ञानिक का जनवरी -मार्च 25 का अंक डॉ चिदंबरम स्मृति विशेषाँक निकाल कर श्रद्धांजलि अर्पित की व 11मई 25 पोखरण दिवस पर उनको यह अंक समर्पित किया गया क्योंकि वो पूर्व में हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद के अध्यक्ष थे इस अंक में प्रमुख रूप से उनके विज्ञान पर मुख्य संस्थान में दिए गए भाषण व छात्रों का प्रेरणादायक पलों व गणमान्य विज्ञान लेखकों द्वारा सजाया गया है जिसमें मुख्य लेखकों में डॉ दया शंकर त्रिपाठी, डॉ मनीष मोहन गोरे, डॉ सरोज शुक्ला, डॉ संजय कुमार, बीएचयू,श्री सत्य प्रभात प्रभाकर, श्री राजेश कुमार मिश्र, श्री उत्तम सिँह गहरवार, डॉ अंकिता मिश्रा, डॉ दीपक कोहली, डॉ हेमलता पंत, डॉ मनोज सिंह, श्री बी एन मिश्र, श्री प्रकाश कश्यप आदि प्रमुख हैं साथ ही हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद के कार्यक्रम में मुख्य अथिति में डॉ चिदंबरम से सम्मान लेने वाले विद्वतजन में वैज्ञानिक के पूर्व संपादक,डॉ गोविन्द प्रसाद कोठियाल, डॉ जय प्रकाश त्रिपाठी, पूर्व सचिव, हिवीसाप,समारोह में शामिल पूर्व अध्यक्ष, डॉ एच मिश्रा, डॉ कोठियाल जी, व श्री आर के मिश्रा जी आदि गणमान्य हिंदी विज्ञान संचारकों की याद ताज़ा हुई डॉ चिदंबरम सर जब परिषद के अध्यक्ष थे तो पटना में हुई नाभिकीय पदार्थ पर जनवरी 1992 में एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया था जो निश्चित रूप से विज्ञान के प्रति नवयुवको शिक्षाविदों, वैज्ञानिक व शोधार्थी को नाभिकीय विज्ञान के प्रति गहरी रूचि को दर्शाता है जो निश्चित रूप से आज के युवाओ के लिए प्रेरणादायक है ऐ सब हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद के मंच की शोभा को बढ़ाते हैं इस अंक में विज्ञान और टेक्नोलॉजी विभाग के सचिव का भी संदेश उनके प्रति आदर व सम्मान को बढ़ाता है अतः राष्ट्रीय अस्तर पर हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद ही एक मात्र ऐसी संस्था बची है जो इन उद्देश्यों क़ो पूर्ण कर सकती है नई कार्यकारिणी का गठन हेतु 18 मई 25 को अनुशक्तिनगर में विशेष आम सभा बुलाई गई है आम सभा से पहले चुनाव अधिकारी श्री बलवंत सिंह ने नई कार्यकारिणी 25-27 हेतु सभी चयनित उम्मीदवार के परिणाम प्रस्तुत किए हैं जो निम्न है अध्यक्ष - कृष्णा कुमार वर्मा - -उपाध्यक्ष - ब्रजेश कुमार सिन्हा,सचिव,शेर सिंह मीणा, संजय गोस्वामी -सयुंक्त सचिव,राज कुमार डाबरा -कोषाध्यक्ष बी.एन मिश्रा -सयुंक्त कोषाध्यक्ष, सदस्य हेतु डॉ सुभाष दोन्दे,अश्विनी कुमार मिश्रा, संजू वर्मा, राजेश कुमार सचान - अनिल अहिरवार प्रकाश कश्यप - आलोक कुमार त्रिपाठी,कृष्णा कुमार वर्मा आदि निर्विरोध चुने गए हैं जो18 मई 25 को आम सभा में आवेदकों का नाम अनुमोदन हेतु प्रस्तुत करेंगे जिसके बाद में नई संपादक मंडल व व्यवस्थापन मंडल के सदस्य बनाए जायेंगे व नई कार्यकारिणी के सदस्यों को वर्तमान कार्यकारिणी के को अब परिषद के आगे के कार्यक्रम के बारे में बताया जायेगा जो सभा में उपस्थित सभी लोगों ने स्वीकार हो परिषद के सभी आजीवन सदस्यो से अपील है कि पुनः आम सभा में उपस्थित है क्योंकि वैज्ञानिक के वर्तमान अंक में डॉ आर चिदंबरम के विशेष अंक का सफल प्रकाशन से उन्हें याद किया गया महान परमाणु वैज्ञानिक का भारत में नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया औऱ पोखरण-1 व पोखरण 2 परमाणु परीक्षण में मुख्य भूमिका थी खासबात यह है कि वे बहुत पहले हिन्दी विज्ञान के अध्यक्ष भी थे और उनका आकस्मिक निधन मुंबई में परमाणु वैज्ञानिक डॉहै , हिंदी के कार्यकारिणी समिति के चुनाव हेतु सचिव ने अधिसूचना जारी कर दि है आवेदन पत्र भेज दे. हिन्दी विज्ञान की लोकप्रिय पत्रिका वैज्ञानिक से जुड़े सभी विज्ञान लेखकों पाठकों और सृजनशील व्यक्तियों के निरंतर सहयोग, स्नेह, विश्वास और वैज्ञानिक से लगाव है। इसके मुख्य संपादक श्री राजेश कुमार मिश्र हैं व संपादकीय बोर्ड के सदस्य सर्वश्री, राजेश कुमार, केके वर्मा, डॉ संजय कुमार पाठक व वैज्ञानिक के व्यवस्थापक ,सर्वश्री श्री नवीन त्रिपाठी, बी.एन. मिश्र,अनिल अहिरवार, प्रकाश कश्यप, बधाई के पात्र हैँ.विज्ञान साहित्य का ऐसा मिला-जुला ढंग उस साहित्य के सृजन में सहायक होता है जो पूर्णत: भौतिकवादी होता है तथा शुद्ध कला का निर्माण नहीं करता है.हिंदी विज्ञान की पत्रिका वैज्ञानिक का योगदान विज्ञान संचार हेतु जरुरी है ताकि इससे नवविज्ञान लेखकों क़ो एक वैज्ञानिक मंच मिल सके.हिंदी में विज्ञान संचार हेतु हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद का 55वर्षों से अधिक का लम्बा इतिहास रहा है राष्ट्रभाषा हिंदी आपसी सहयोग, साहचर्य एवं प्यार की भाषा है। इसे विश्वसमुदाय में स्थापित करना इन मूल्यों के संवर्द्धन हेतु अत्यंत लाभप्रद होगा।हिंदी को विश्वभाषा बनाने के मकसद से इस विश्वविद्यालय ने दो महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। विज्ञान संस्थाओं में हिंदी व हिंदी माध्यम से विभिन्न अध्ययन व अनुसंधान के लिए परिषद की पत्रिका वैज्ञानिक की भूमिका महत्वपूर्ण रही है तो देश के हिंदी पाठकों को विज्ञान से लेकर अब तक के अंक डॉ आर चिदंबरम स्मृति अंक वास्तव में ज्ञानवर्धक रहा है जिसके लिए भारत के विज्ञान औऱ टेक्नोलॉजी मंत्रालय के माननीय सचिव प्रो अभय करंदीकर सर का संदेश भी पत्रिका से जुड़े सदस्यों का नई ऊर्जा प्रदान की है देश में अन्य सभी भाषाओं में फैली हुई महत्वपूर्ण पाठय-सामग्री का अनुवाद भी परिषद के द्वारा किया गया है और शीघ्र ही वैज्ञानिक का अगला अंक भी विज्ञान अध्येताओं को जल्द उपलब्ध हो सकेगी।इस अंक में मुख्य रूप से जो सामग्री दि गई है वो उनके वैज्ञानिक कार्यों के बारे में बताया गया है. एईसी के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, पोखरण में मई 1998 में भारत में परमाणु परीक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब वे पीएसए थे, तब उनके शिष्यों ने इंटरनेट को बेहतर बनाने के लिए राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क बनाया, जिसमें कई नई शुरुआतें शामिल थीं। उनका एक और प्राथमिक ग्रामीण प्रौद्योगिकी क्रिया समूह (RuTAG) के माध्यम से गावों में शुद्ध पानी की प्रणाली शुरू हुआ था। एक्स-रे और न्यूट्रॉन का उपयोग करके रेडियोग्राफी के फील्ड में रिसर्च को आज भी दुनिया याद करती है । उन्होंने भारत में क्रिस्टलोग्राफी पर वार्षिक राष्ट्रीय पोर्टफोलियो में से किसी को भी बर्खास्त नहीं किया।हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद के पूर्व अध्यक्ष डॉ आर चिदंबरम को परिषद के लोग लम्बे समय से जानते हैं। उन्होंने परमाणुओं के बीच के पैमाने को समझने के लिए मॉड्यूल ने एससीएएम को प्लास्टिक के गुणों को दर्शाने के बारे में बताया था। भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर (आईएसओएससी) में भौतिकी में अध्ययन व डॉक्टर की डिग्री प्राप्त की थी। कई साल पहले आईएसआईएस के उसी विभाग से अल्ट्रासाउंड की थी। डॉ आर चिदंबरम का जन्म 1936 में चेन्नई (पूर्व में मद्रास) में हुआ था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चेन्नई में ही प्राप्त की थी। बाद में, उन्होंने आईसीओएससी, बैंगलोर से सिलिकॉन की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने एक बार एक दिलचस्प कहानी में बताया कि कैसे वह (इलाहाबाद) में एक बच्चे के रूप में खो गए थे और बाद में अपने परिवार से फिर मिले थे। 1962 में परमाणु ऊर्जा संस्थान ट्रॉम्बे (AEET) से अपना इंडिपेंडेंट प्रोफेशनल कैरियर शुरू किया, जिसे बाद में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), मुंबई नाम दिया गया। उन्होंने न्यूट्रॉन विवर्तन और उच्च दबाव मेट्रिक्स का उपयोग करके अपना काम शुरू किया और जल्द ही एक जीवंत समूह की स्थापना को साझा करने वाले की स्थापना की। उन्होंने एक्स-रे और न्यूट्रॉन दोनों का उपयोग करके क्रिस्टलो ग्राफिक विश्लेषण की कई लाइनें शुरू कीं। इन नमूनों का जटिल विश्लेषण करके, उन्होंने क्रिस्टल में पानी द्वारा ठोस बॉन्डिंग से संबंधित नमूनों को चित्रित करना शुरू किया और दिखाया कि, क्रिस्टलीय स्तर में, एच-ओ-एच कोण की ज्यामिति के व्यास पर बने हुए ठोस बॉन्ड को विभाजित किया गया है। उन्होंने जल्द ही अपना ध्यान क्रिस्टल हाई प्रेशर क्रिस्टल पर केंद्रित कर दिया और इसके लिए एक डायमंड एनविल सेल बनाई। यह अध्ययन भारत-इटली सहयोग के तहत निर्मित एक समान डायमंड एनविल सेल का उपयोग करके एलेट्रा सिंक्रोट्रॉन विकिरण स्रोत पर एक्सआरडी-2 बीम जारी किया गया है। वे 1990 में बी ए आर सी के निदेशक बने और उसके बाद 1993 में परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) के अध्यक्ष के रूप में नई दिल्ली चले गये। उन्हें 2002 में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) के रूप में नियुक्त किया गया था, जो लगभग 17 वर्षों तक पद पर रहे। उन्होंने 1994-1995 के दौरान अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और 1990-1999 के दौरान कार्यकारी समिति के सदस्य और बाद में आईयूसीआर के उपाध्यक्ष रहे। वे एक विशेष सज्जन व्यक्ति भी थे। अपने मिलनसार व्यक्तित्व के कारण, जब वे खुद को सबसे कठिन समय में समुद्र तट पर जाते थे, तब भी वे आसानी से अपने विचार को विज्ञान में समा लेते थे। उदाहरण के लिए, जब वे यूसीआर के उपाध्यक्ष थे, तो कुछ साल पहले परमाणु परीक्षण 1974 होने के कारण उन्हें यूसीआर में अमेरिकी इंजीनियर ने मना कर दिया था। हालाँकि, उन्होंने कोई उत्सव नहीं किया, बल्कि टूर्नामेंट मामले को दबा दिया।उनके जाने से क्रिस्टलोग्राफी की दुनिया ने एक महान समर्थक खो दिया है। दुनिया भर के क्रिस्टलोग्राफ़िक समुदाय को उनकी कमी और भी खिलेगी, लेकिन भारत के परमाणु वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई टीमों और क्रिस्टलोग्राफिक समुदाय और हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद को उनकी कमी और भी खिलेगी। ईएमएस/12/05/2025