यह तो सभी मानेंगे ही कि किसी को बड़ा अपराधी बनाने में किसी न किसी बड़ व्यक्ति या संगठन का हाथ होता है, ठीक वैसे ही जैसे कि आतंकवार को पालने और पोसने में पाकिस्तान का बहुत बड़ा हाथ सदा से रहा है। इस बात को खुद पाकिस्तान के नेताओं ने समय-समय पर माना है, लेकिन इसका हल निकाल पाने में सभी नाकाम साबित हुए हैं। खासतौर पर तब जबकि पाकिस्तानी आवाम खुद भी इस आतंकवाद से परेशान है, सरकार और सेना मिलकर कोई हल क्यों नहीं निकाल पा रही हैं, बड़ा सवाल है। पाकिस्तान के लिए भी ये आस्तीन के सांप ही साबित होते आए हैं, बावजूद इसके एक सियासी जमात इन्हें पालने और बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत झोंकती आई है। इसका खामियाजा पड़ोसी मुल्कों को भी उठाना पड़ता है। इसी के चलते बीते माह 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश ही नहीं दुनियां को झकझोर कर रख दिया। आतंकियों के इस कायराना हमले में दो दर्जन से ज्यादा निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई और कई अन्य घायल हो गए। शुरुआती जांच में ही इस आतंकी घटना के तार पाकिस्तान और लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटा संगठन द रसिस्टेन्स फ्रंट (टीआरएफ) से जुड़ते दिखे। पहले टीआरएफ ने इस हमले की जिम्मेदारी सीना ठोंक कर ले भी ली थी। जब अंतर्राष्ट्रीय दबाव पड़ा और पाकिस्तान को भारतीय जवाब की सूझ आई तो टीआरएफ ने बयान बदल दिया और जिम्मेदारी लेने से साफ इंकार कर दिया। अब भारत ने इस आतंकी हमले से संबंधित पुख्ता सबूत संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में पेश कर दिए हैं, जिससे टीआरएफ और इसके संरक्षक पाकिस्तान की साजिश बेनकाब होती दिखी है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद रोधी कार्यालय और काउंटर टेररिज्म कमेटी एग्जीक्यूटिव डायरेक्टोरेट (सीटीईडी) के समक्ष विस्तार से जानकारी पेश की है। भारत का साफ कहना है कि पहलगाम में जो आतंकी हमला हुआ, वह टीआरएफ द्वारा लश्कर-ए-तैयबा के निर्देश पर किया गया, और इसके पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की रणनीति थी। भारतीय अधिकारियों ने यूएन की 1267 प्रतिबंध समिति की निगरानी टीम को भी टीआरएफ की गतिविधियों से अवगत कराया और टीआरएफ को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित करने की मांग रखी है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि टीआरएफ का बयान और फिर उससे पलटना पाकिस्तान के दबाव में किया गया ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक सरकार की छवि को नुकसान न पहुंचे। टीआरएफ, लश्कर-ए-तैयबा का ही नया चेहरा है, जिसे एफएटीएफ और अन्य अंतरराष्ट्रीय निगरान एजेंसियों की निगाह से बचाने के लिए एक ‘लो-प्रोफाइल’ आतंकी ब्रांड के रूप में पेश किया गया है। लेकिन भारत ने इन दो संगठनों की कड़ी साठगांठ के सबूत यूएन के सामने रखे हैं। इसी बीच भारत ने यह भी रेखांकित किया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक एकजुटता आवश्यक है। यदि टीआरएफ जैसे आतंकी संगठनों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध सूची में शामिल नहीं किया जाता है तो आतंकवादियों को बल मिलता रहेगा और निर्दोष लोगों की जान यूं ही जाती रहेगी। भारत का यह कदम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन जुटाने की दिशा में एक निर्णायक प्रयास है। भारत द्वारा दिए गए डिजिटल, कॉल रिकॉर्ड, फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन और इंटेलिजेंस इनपुट्स के आधार पर माना जा रहा है कि यूएन टीआरएफ को प्रतिबंधित आतंकी संगठन घोषित करने की प्रक्रिया जल्द शुरू कर सकता है। अगर ऐसा होता है, तो टीआरएफ से जुड़े फंड, हथियार आपूर्ति और सीमा पार नेटवर्क पर करारा प्रहार हो सकेगा। भारत लंबे समय से यह प्रयास कर रहा है कि पाकिस्तान की छद्म युद्ध नीति, जो वह लश्कर और जैश जैसे संगठनों के जरिए चलाता है, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर हो। पहलगाम हमले के बाद भारत की ओर से की गई यह कूटनीतिक कार्रवाई इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस घटनाक्रम से यह भी स्पष्ट होता है कि अब भारत आतंकी हमलों के प्रति केवल सीमित जवाब देने की नीति से आगे बढ़ चुका है। अब कूटनीतिक, अंतरराष्ट्रीय मंचों और आर्थिक प्रतिबंधों के माध्यम से भारत पाकिस्तान और उसके पाले हुए आतंकी संगठनों को घेरने की रणनीति पर चल रहा है। यदि संयुक्त राष्ट्र टीआरएफ को आतंकी संगठन घोषित करता है, तो यह न केवल भारत के लिए एक बड़ी जीत होगी, बल्कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ भी साबित होगी। ईएमएस / 15 मई 25