क्षेत्रीय
15-May-2025


अनदेखी: अस्पताल के उन्नयन को ६ साल बीतने के बाद भी नहीं हुए ठोस प्रयास छिंदवाड़ा (ईएमएस)। करीब करीब 6 साल पहले 2019 में अस्पताल की पांच मंजिला नई बिल्डिंग मेडिकल कॉलेज के निर्माण के साथ 177 करोड़ रुपए में जेपी इंफ्रा कंपनी ने तैयार की थी। कमलनाथ सरकार के समय बिल्डिंग तैयार करते समय ही इसका औपचारिक उद्घाटन कर दिया गया था। करीब ६ साल पहले जिला अस्पताल का उन्नयन कर यहां करोड़ों रूपए की लागत से मेडिकल कॉलेज से संबद्ध जिला अस्पताल की बिल्डिंग का निर्माण तो कर दिया गया, लेकिन जिले का सबसे बड़ा रेफरल अस्पताल होने के बावजूद मेडिकल अस्पताल में अब तक बर्न यूनिट स्थापित नहीं की गई। वहीं सरकारी और निजी अस्पतालों में बर्न के मरीजों के इलाज के मामले में एक जैसे हालात हैं। हालांकि यूनिट नहीं होने से अस्पतालों में मरीजों के लिए पुराने ट्रामा वार्ड में 11 बिस्तरों का वार्ड बनाया गया है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। यहां भर्ती मरीजों को बहुत कष्टपूर्ण हालात में उपचार कराना पड़ता है। खास तौर पर गरमी के मौसम में आग से जले मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। गरीब मरीज, जिनके पास इलाज के पैसे नहीं होते, वे मजबूरी में अस्पताल के इस बर्न वार्ड में रहने को मजबूर होते हंै। यहां भर्ती मरीजों की माने तो चिकित्सक यहां तीन से चार दिन में एक बार ही बुलाने के बाद ही आते हैं, जबकि इन मरीजों की देखरेख के लिए केवल एक महिला स्वीपर और इंचार्ज सिस्टर को जिम्मेदारी दी गई है। यही दोनों महिलाएं आग से जले मरीजों की देखरेख करती हैं। ऐसे में यहां भर्ती मरीज भगवान भरोसे हैं। झुलसने वाली गर्मी में पंखे-कूपर के सहारे मरीज पुराने ट्रामा वार्ड स्थित बन वार्ड में भर्ती मरीज झुलसने वाली तपिस और गर्म हवाओं से परेशान है। यहां भर्ती मरीजों की पीड़ा असहनीय हो गई है। यहां भर्ती मरीजों को एसी की ठंडक की जगह पंखा और कूलर की हवाओं के भरोसे छोड़ दिया गया है। वर्तमान में जिला अस्पताल के बर्न वार्ड में तीन मरीज भर्ती हैं। जो पीड़ा कराह रहे हैं। इन मरीजों के जख्मों को एसी की जरूरत होती है, लेकिन यहां लगा एसी प्रबंधन ने निकलवाकर कहीं और लगवा दिया। ये सेटअप जरूरी बर्न यूनिट को इस तरह से तैयार किया जाता है जिससे की यूनिट में भर्ती मरीज को किसी प्रकार का संक्रमण न हो। मरीज के झुलसने के बाद उसके शरीर से त्वचा की परत उतर जाने से सारे कीटाणु सीधे उसके शरीर में प्रवेश करते हैं। इसलिए अगर थोड़ी भी धूल मिटटी उसके झुलसे हिस्से पर पड़ती है तो उसके जीवन को खतरा बन जाता है। ऐसे में वार्ड इस तरह बनाए जाते हैं कि उनमें संक्रमण का खतरा नहीं रहे। वार्ड में ऐसी मशीनें लगाई जाती हैं जो यूनिट में मौजूद जीवाणु, विषाणु और फंगस को नष्ट कर देती हैं। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ठोस प्रयास हों तो यहां भी स्पेशलाइज्ड बर्न यूनिट स्थापित की जा सकती है। लंबा चलता है इलाज डॉक्टरों के अनुसार बर्न केसेज में मरीज का इलाज लंबा चलता है। ऐसे में बर्न यूनिट को क्रिटिकल केयर यूनिट के रूप में विकसित किया जाता है। जिसमें वेंटीलेटर, स्किन ग्राफ्टिंग के लिए उपकरण, ड्रेसर, ओटी, आईसीयू, एसी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा अलग-अलग विधाओं के 5-6 चिकित्सकों की टीम होती है। इनमें प्लास्टिक सर्जन से लेकर मेडिसिन विशेषज्ञ और न्यूट्रीशियन होते हैं। मरीज को ठीक होने में लंबा समय लगता है। ईएमएस/मोहने/ 15 मई 2025