अलीगढ़,(ईएमएस)। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) की पहली महिला कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति को लेकर चल रहा विवाद अब थम गया है। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि उनकी नियुक्ति वैध है और इसमें किसी तरह की प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं की गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कुलपति चयन की प्रक्रिया पूरी तरह से एएमयू एक्ट, स्टैच्यूट और रेगुलेशन्स के अनुसार हुई है। कोर्ट ने यह भी माना कि इस नियुक्ति में किसी भी स्तर पर पक्षपात या दुर्भावना के कोई संकेत नहीं मिले हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति न केवल वैध है, बल्कि यह लैंगिक प्रतिनिधित्व और संवैधानिक मूल्यों की दिशा में एक ऐतिहासिक और प्रगतिशील कदम भी है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि शैक्षणिक नेतृत्व में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना समय की आवश्यकता है, और प्रोफेसर खातून की नियुक्ति उसी दिशा में एक सकारात्मक पहल है। पति की भूमिका को लेकर भी स्पष्टता कुछ याचिकाओं में यह आरोप लगाया गया था कि प्रो. खातून के पति, जो पूर्व में एएमयू के कुलपति रह चुके हैं, उन्होंने नियुक्ति प्रक्रिया को प्रभावित किया। कोर्ट ने इस पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल इतना कि किसी उम्मीदवार के पति ने कुछ बैठकों की अध्यक्षता की, यह नियुक्ति रद्द करने का आधार नहीं बन सकता। अंततः नियुक्ति की संस्तुति विश्वविद्यालय कोर्ट और कार्यकारी परिषद द्वारा की गई थी, और अंतिम फैसला भारत के राष्ट्रपति (एएमयू के विजिटर) द्वारा लिया गया, जिन पर किसी भी प्रकार के पक्षपात का आरोप साबित नहीं हुआ। नियुक्ति को लेकर कानूनी लड़ाई खत्म एएमयू और केंद्र सरकार की ओर से पेश वकीलों की दलीलों को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि प्रोफेसर खातून की योग्यता में कोई कमी नहीं पाई गई है। इससे पहले, 9 अप्रैल को अदालत ने इस मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब सुनाया गया। अब यह साफ हो गया है कि प्रोफेसर नईमा खातून ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की कुलपति बनी रहेंगी। हिदायत/ईएमएस 18मई25