- राजधानी में डेंगू के केस दोगुने, चिकनगुनिया 8 गुना बढ़ा भोपाल (ईएमएस)। भोपाल में इस बार बारिश से पहले ही डेंगू और चिकनगुनिया जैसे मच्छर जनित रोगों का खतरा तेजी से बढ़ गया है। मई में ही डेंगू के केस 44 पार कर गए हैं, जबकि चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या 8 गुना बढक़र 56 पहुंच चुकी है। बीते साल मई तक ये आंकड़ा महज 7 था। सबसे चिंताजनक बात यह है कि रोग रोकथाम की जिम्मेदारी संभालने वाला मलेरिया विभाग इस बार पूरी तरह नाकाम नजर आ रहा है। न तो कोई जागरूकता कैंप आयोजित किया गया, न ही एक भी कार्यशाला हुई है। विभाग के पास स्टाफ की भारी कमी है, छिडक़ाव और फॉगिंग भी सिर्फ दिखावे तक सीमित है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि बुखार, बदन दर्द या उल्टी जैसे लक्षण नजर आएं तो बिना देर किए एलाइजा टेस्ट कराएं, जो शहर के चुनिंदा अस्पतालों में मुफ्त उपलब्ध है। वहीं साल 2024 में मई माह तक चिकनगुनिया के 7 केस सामने आए थे। जबकि इस साल यह आंकड़ा 56 पहुंच गया है। इसी तरह डेंगू की बात करें तो बीते साल मई तक 28 तो इस साल 44 से अधिक सामने आ चुके हैं। यह आंकड़े चिंताजनक हैं। इसकी वजह भी है। दरअसल, जब बीते साल मानसून से पहले तक चिकन गुनिया के सिर्फ 9 केस थे तो यह सीजन में बढक़र 300 के पार पहुंच गए और पूरे साल में कुल 340 केस दर्ज हुए। वहीं, डेंगू के साथ भी यही स्थिति बनी, बीते साल डेंगू के कुल 697 केस दर्ज हुए। बुखार आए तो कराएं एलाइजा टेस्ट जेपी अस्पताल के मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. योगेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि यदि लगातार बुखार आ रहा है। मांसपेशियों और आंखों के पीछे दर्द हो रहा है तो उन्हें डेंगू की जांच कराना चाहिए। भोपाल में जय प्रकाश अस्पताल, हमीदिया, बीएमएचआरसी, एम्स अस्पताल में मुफ्त एलाइजा टेस्ट की सुविधा है। मरीजों को ध्यान रखना चाहिए कि एलाइजा टेस्ट से ही डेंगू कंफर्म माना जाता है। कार्ड टेस्ट या रैपिड टेस्ट के गलत रिपोर्ट दिखाने की संभावना काफी अधिक होती है। रोकथाम के लिए नहीं पर्याप्त स्टाफ डेंगू की रोकथाम के लिए जिम्मेदार मलेरिया विभाग के लगभग आधे पद खाली पड़े हैं। यही कारण की हर साल सबसे ज्यादा डेंगू के मामलों में प्रदेश में भोपाल का नाम शामिल रहता है। राजधानी में वर्तमान में 25 लाख की आबादी है। वहीं इस पूरी आबादी को डेंगू व अन्य मच्छरों से होने वाली बीमारी से बचाने के लिए मलेरिया विभाग के पास सौ से भी कम कर्मचारी मौजूद हैं। यह अमला भी करीब 35 साल पहले स्वीकृत हुआ था। जब शहर की आबादी कुल 4 लाख थी। उसमें से भी 60 फीसदी पद खाली हैं। जिसमें निरीक्षक के लगभग सारे पद खाली हैं। वहीं फील्ड स्टाफ के 40 पद खाली पड़े हैं। अब स्थिति यह है कि फील्ड पर तैनात हुए कर्मचारी अधिकारियों की जगह नौकरी कर रहे हैं। दवा के आदि हो चुके हैं मच्छर विशेषज्ञों का कहना है कि छिडक़ाव और फॉगिंग के दवा के सही इस्तेमाल का तरीका कोई नहीं जानता। दवा और पानी के मिश्रण को सही अनुपात में होना जरूरी है। कर्मचारी कभी ज्यादा तो कभी दवा मिला देते हैं। इस तरह के उपयोग से दवा का असर कम होता है और मच्छर दवा के आदि हो जाते हैं। कई बार शिकायत मिलती है कि जहां दवा का छिडक़ाव किया जाता है, थोड़ी देर बाद वहां मच्छर बैठ जाते हैं। सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर तिवारी का कहना है कि साल 2025 में मई माह तक जल भराव वाले स्थान चिह्नित कर लगभग 14 हजार गंबुसिया मछली डाली गईं हैं। 1 लाख 83 हजार 522 कंटेनरों का सर्वे कर 3 हजार 581 में लार्वा नष्ट किया गया। विभाग लगातार मॉनिटरिंग कर रहा है। 21 जोन में 44 टीमें काम कर रहीं हैं। विनोद / 18 मई 25