नई दिल्ली(ईएमएस)। बांग्लादेश में जब तक शेख हसीना की सरकार रही है तब तक भारत से रिश्तों की मिठास बनी रही। यहां तक की हसीना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मीठे बांग्लादेशी आम भेजा करती थीं। इस ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ को भारत-बांग्लादेश संबंधों की सबसे मीठी परंपरा माना जाता था, लेकिन अब वही नई दिल्ली से बीजिंग की ओर मुड़ती दिख रही है। बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद यूनुस ने हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को देश के दो सबसे मशहूर आम ‘फजली’ और ‘हरिभंगा’ भेजे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है। यह सिर्फ फल नहीं, बल्कि कूटनीतिक संदेश है…अब हमारे फल चीन की प्लेट में हैं। ग्लादेश के आमों की यह पहली आधिकारिक खेप है जो चीन पहुंची है। ‘फजली’ और ‘हरिभंगा’ जैसे जीआई टैग वाले आम, जिनका भारत की पूर्वी सीमाओं से गहरा भावनात्मक और भौगोलिक रिश्ता है, अब सीधे चीन के शाही दस्तरख्वान तक पहुंचाए गए हैं। ये ऐसे वक्त में हुआ है जब भारत-बांग्लादेश संबंधों में तल्खी साफ देखी जा रही है। न केवल कूटनीतिक बातचीत बंद है, बल्कि एक ऐसी दरार है, जो गहराती जा रही है। यूनुस सरकार ने चीन से रिश्ते और व्यापारिक साझेदारी को प्राथमिकता दी, और भारत के साथ गर्मजोशी की जगह नपा-तुला व्यवहार अपनाया। ऐसे में बांग्लादेश के सबसे प्रतिष्ठित फल का चीन जाना और वो भी पहली बार, एक राजनीतिक और रणनीतिक सिग्नल है। एक वक्त था जब आम बांग्लादेश से दिल्ली तक आते थे और मीठे संवाद की शुरुआत करते थे। अब वही आम बीजिंग तक जा पहुंचे हैं। बांग्लादेश की नई सरकार ने ने साफ कर दिया है कि उसकी प्राथमिकताएं अब बदल रही हैं। जहां कभी आम्रपाली और हिम्मामुद्दीन आम के जरिए भारत से दोस्ती दिखाई जाती थी, अब वही परंपरा चीन के साथ अपनाई जा रही है। चीन ने बांग्लादेशी आमों का खुले दिल से स्वागत किया। साथ में व्यापार और निवेश के कई प्रस्तावों के संकेत भी दिए। यह पूरा घटनाक्रम भारत के लिए राजनयिक चेतावनी की तरह देखा जा रहा है। एक एक टन भेजे थे आम 2022-23 में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक-एक टन आम उपहार स्वरूप भेजे थे। यह एक भावनात्मक परंपरा बन चुकी थी, जो राजनीतिक संदेशों को नरम शब्दों में पहुंचाने का जरिया थी। लेकिन 2025 में राष्ट्रपति यूनुस का यह कदम इस परंपरा से बिलकुल उलट है। साफ है, अब आम से केवल रिश्ते नहीं निभाए जा रहे, अब आम से ‘पक्ष’ तय हो रहा है। न ने 6 साल की बातचीत के बाद 2024 में बांग्लादेशी आमों के लिए अपने दरवाजे खोले। लेकिन ये दरवाजे उसी साल खुले जब बांग्लादेश की सत्ता बदली, और भारत के साथ साइलेंस डिप्लोमेसी ने दूरी लेना शुरू कर दी। वीरेंद्र/ईएमएस 31 मई 2025