रूस-अमेरिका के बीच बढ़ते टकराव और परमाणु हथियार की होड ने बढ़ाई चिंता, 80 साल बाद फिर वल्र्ड वॉर के आसार नई दिल्ली/न्यूयार्क(ईएमएस)। दुनिया के कई देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. एक तरफ रूस, यूक्रेन से कई सालों से जंग लड़ रहा है. वहीं, इजरायल और तुर्की के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. इसके अलावा एशिया में पाकिस्तान और भारत के बीच तनातनी है. दुनिया के शक्तिशाली देशों के बढ़ते टकराव के बाद तीसरे विश्व युद्ध को लेकर चर्चा होने लगी है। दुनिया के सामने एक सैन्य संकट खड़ा होता नजर आ रहा है। दूसरे विश्व युद्ध (1939-45) की समाप्ति को 80 साल बीत चुके हैं, लेकिन वैश्विक शांति की नींव फिर से डगमगाने लगी है। यूगोव के ताजा सर्वे के अनुसार, अमेरिका और यूरोप के लोग पांच से दस साल में तीसरे विश्व युद्ध की आशंका जता रहे हैं। रूस के साथ बढ़ता तनाव, अमेरिका की विदेश नीति और परमाणु हथियारों का खतरा इस डर की सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है। सर्वे में शामिल 55 प्रतिशत लोगों ने माना कि एक और वैश्विक युद्ध संभव है। वहीं, 76 प्रतिशत का मानना है कि वल्र्ड वॉर में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होगा। लोगों को यह भी डर है कि यह दूसरे विश्व युद्ध के मुकाबले कहीं अधिक विनाशकारी होगा। यूरोप और अमेरिका में लोग अपने देशों को इस युद्ध में शामिल होने की आशंका जता रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध की यादें आज भी लोगों के मन में ताजा हैं। सर्वे में शामिल 90 प्रतिशत लोग मानते हैं कि इस युद्ध को स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। फ्रांस (72 प्रतिशत), जर्मनी (70 प्रतिशत) और ब्रिटेन (66 प्रतिशत) में लोग इस युद्ध के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं, जबकि स्पेन में यह आंकड़ा केवल 40 प्रतिशत है। 77 प्रतिशत फ्रांसीसी और 60 प्रतिशत जर्मन कहते हैं कि उन्हें स्कूल में इस युद्ध के बारे में विस्तार से पढ़ाया गया। 52 प्रतिशत लोगों को लगता है कि दुनियाभर में नाजी शासन जैसे अत्याचार आज भी संभव हैं। 60 प्रतिशत का मानना है कि अमेरिका या अन्य यूरोपीय देशों में भी यह खतरा मौजूद है। इस्लामिक आतंकवाद भी बड़ा खतरा सर्वे में पश्चिमी यूरोप के 82 प्रतिशत और अमेरिका के 69 प्रतिशत लोगों ने रूस के साथ तनाव को सबसे बड़ा खतरा बताया। लोग मानते हैं कि रूस की सैन्य गतिविधियां और उसकी परमाणु क्षमता वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा हैं। रूस के अलावा, इस्लामिक आतंकवाद को भी बड़ा खतरा माना गया है। लोगों का मानना है कि इस पर जल्द काबू पाना जरूरी है। यह डर वैश्विक कूटनीति में बढ़ती दरारों का संकेत है। शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र अहम 66 प्रतिशत लोगों ने नाटो को युद्ध के बाद शांति बनाए रखने में सबसे बड़ा योगदानकर्ता माना। 60 प्रतिशत ने संयुक्त राष्ट्र को भी इस दिशा में महत्वपूर्ण माना। यूरोपीय संघ को भी 56 प्रतिशत लोगों ने शांति का एक प्रमुख स्तंभ बताया। सर्वे में यह भी सामने आया कि जर्मनी में 47 प्रतिशत मानते हैं कि पहले की सरकारें नाजी अतीत को लेकर अति-सचेत रही हैं। लेकिन वर्तमान सरकार हाल के संकटों में मजबूत कदम उठाने में नाकाम रही है। अभी कहां-कहां हो रहे हैं युद्ध रूस और यूक्रेन युद्ध के अलावा इजरायल और हमास की जंग में गाजा पट्टी के लोग तबाह हो चुके हैं। अक्टूबर 2023 में हमास ने इजरायल पर हमला किया था, जिसके जवाब में इजरायल ने भी सैन्य एक्शन लिया। अब पश्चिम एशिया का पूरा इलाका इस आग की चपेट में आ रहा है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर सीधे युद्ध तो नहीं, लेकिन कन्फ्लिक्ट चल रहा है। ईरान और इजरायल के बीच भी चला आ रहा है। अफ्रीका के कई हिस्से भी गृहयुद्ध की आग में झुलस रहे हैं। सूडान में साल 2023 से दो सैन्य गुटों के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है जिसने देश को बर्बाद कर दिया है। वहीं माली, बुर्किना फासो, हैती और नाइजर जैसे देश चरमपंथी हिंसा के जाल में फंसे हुए हैं। मध्य पूर्व दो दशकों से शायद ही कभी शांत रहा हो। इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूह अब भी कहीं न कहीं एक्टिव हैं। चीन और ताइवान के रिश्ते लगातार कड़वे होते जा रहे हैं। अभी सीधी लड़ाई नहीं लेकिन दबाव बढ़े तो ताइवान भी आक्रामक हो सकता है, ऐसे संकेत वो दे रहा है। तीसरे विश्व युद्ध में क्या स्थिति होगी वैसे रूस के राष्ट्रपति पुतिन इस वक्त यूक्रेन में नाटो देशों के दखल बेहद खफा हैं। पुतिन ने पहले कहा है कि नाटो का हस्तक्षेप सभ्यता के विनाश का कारण बन सकता है। मई 2024 में, दिमित्री मेदवेदेव ने परमाणु युद्ध की चेतावनी दी थी। अगर रूस इस हमले को नाटो की चुनौती मानता है तो पुतिन अनकहा, अनदेखा और अनचाहा भी कर सकते हैं। इस आशंका को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और वहां के खड़े रणनीतिकार भी कह चुके हैं। ट्रम्प ने चेतावनी दी है कि यह संघर्ष तीसरे विश्व युद्ध में बदल सकता है। तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति अभी तक काल्पनिक है और ये कैसा होगा भू-राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक कारणों पर निर्भर करेगा। अगर मौजूदा हालात के हिसाब से देखें तो कई समूहों में दुनिया के शक्तिशाली देश बंट सकते हैं। विनोद उपाध्याय / 02 जून, 2025