लेख
04-Jun-2025
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भारत में एक बार फिर कोरोना संक्रमण की रफ्तार तेज़ हो गई है। केवल 13 दिनों में संक्रमण के मामले 257 से बढ़कर 4026 तक पहुंच गए हैं। इसमे सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है, सरकार की ओर से इस बार कोई ठोस गाइडलाइन या रणनीति सामने नहीं आई है। अस्पतालों में कोविड वार्ड नदारद हैं। ऑक्सीजन सिलेंडरों की किल्लत फिर हो सकती है। पहले से ही जर्जर स्वास्थ्य ढांचा चरमराने की कगार पर है। पीएम केयर फंड के माध्यम से जो अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगवाए गए थे, वे बंद पड़े हुए हैं। सरकार की ओर से अभी तक कोरोना के वायरस और इलाज को लेकर कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई है, जिसके कारण आम लोगों में डर और भय का वातावरण देखने को मिल रहा है। कोरोना की तीसरी लहर के विनाशकारी अनुभव के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें इस बार पूरी तरह बेपरवाह नज़र आ रही हैं। न तो अस्पतालों में कोविड बेड आरक्षित किये गये हैं, ना ही कोरोना वायरस की टेस्टिंग को लेकर कोई दिशा निर्देश अथवा सख्ती शुरू की गई है। कई जिलों में आरटी-पीसीआर जांच सीमित हैं। ऐसे में असल संक्रमण की स्थिति का अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो रहा है। सबसे गंभीर चिंता यह है, इस बार कोविड के नए वैरिएंट्स—जैसे जेएन-1, एक्सबीबी1.16 और बीए.2.86—तेजी से फैल रहे हैं। इन पर पहले की वैक्सीन कारगर नहीं है। इसका दावा खुद स्वास्थ्य विभाग कर रहा है। इलाज का कोई निष्कर्ष अभी तक सामने नहीं आया है। सरकार इस पर कोई संज्ञान लेते नहीं दिख रही है। सरकारी अस्पतालों की हालत ऐसी है, कि वहां सामान्य मरीजों को भी ठीक से इलाज नहीं मिल पा रहा है। यदि संक्रमण और फैला तो सरकारी एवं निजी अस्पतालों मे कोरोना बीमारी के इलाज के नाम पर मनमानी एक बार फिर आम जनता की जेब पर भारी पड़ेगी। इससे निपटने के लिए कोई स्पष्ट नीति या तैयारी को लेकर केंद्र सरकार की चुप्पी लोगों को आश्चर्य में डाल रही है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में महामारी से निपटने के लिए पूर्व योजना, संसाधनों का भंडारण, पारदर्शी रिपोर्टिंग एवं केंद्र-राज्यों के बीच समन्वय अत्यंत आवश्यक हैं। दुर्भाग्यवश, यह सब समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक ही सीमित है। अगर अब भी सरकार नहीं जागी, तो देश एक बार फिर उसी अराजकता और भय के दौर में लौट सकता है, जो दूसरी लहर के समय देखा गया था। कोविड-19 में दूसरी और तीसरी लहर में सबसे ज्यादा मौतें हुईं थीं। सरकार ने 4.60 लाख मौत होना स्वीकार की थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा 30.7 लाख मौत भारत में होने की पुष्टि की थी। बीबीसी, टेलीग्राफ और कनाडा के टोरंटो विश्वविद्यालय द्वारा कोरोना महामारी में बीमारियों के जो आंकड़े प्रस्तुत किए थे उसमें भारत में कम से कम 30.7 मौतें होना बताया गया था। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अनुसार भारत की जनसंख्या के हिसाब से कोरोना में मरने वालों की संख्या 0.3 फ़ीसदी थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे 0.6 माना गया था। 2021 में इस महामारी के कारण जो विनाश हुआ था, उसको देखते हुए भारत से दुनिया के देशों को कोरोना के नए वायरस को लेकर काफी सजग होने की जरूरत है। वह भी तब जब इसकी कोई वैक्सीन नहीं है। अभी तक विश्व स्तर पर इसके इलाज के बारे में कोई गाइडलाइन जारी नहीं हुई है। ऐसे में चिंता और भी बढ़ जाती है। सरकार को तुरंत कोरोना बीमारी के उपचार के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। नए वैरिएंट्स पर वैज्ञानिक समीक्षा, उपचार, कोविड मरीज के लिए अस्पतालों में बेड आरक्षित करना, मुफ्त जांच, दवाओं की उपलब्धता और जनजागरूकता अभियान चलाना जल्दी से जल्दी शुरू करना होगा। यह समय आश्वासनों का नहीं, त्वरित कार्रवाई का है। महामारी को लेकर की गई लापरवाही की कीमत देश पहले ही भोग चुका है। केंद्र एवं राज्य सरकारों को कोरोना के इस नए वायरस को गंभीरता से लेना होगा। इसका इलाज किस तरह से हो जिसका लाभ मरीजों को मिले तथा कोरोना की बीमारी के जो विभिन्न किस्म के वायरस बार-बार नए-नए रूपों में जन्म ले रहे हैं। उसके लिए टीका विकसित करने जैसी स्थितियों पर विचार करना होगा। आशा की जाती है कि भारत सरकार और राज्य सरकारें त्वरित कार्यवाही करें। देश भर के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में कोरोना वायरस से निपटने के लिए नई गाइडलाइन जारी करें। वायरस से किस तरीके से निपटा जा सकता है। इसका उपचार कैसे होगा इसकी जानकारी निचले स्तर तक भेजने में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस दिशा में गंभीरता के साथ युद्ध स्तर पर कार्रवाई की जानी चाहिए, यही समय की मांग है। ईएमएस / 04 जून 25