लेख
06-Jun-2025
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी की सबसे बड़ी कूटनीति मानी जाने वाला ‘‘ऑपरेशन सिंदूर’’एक दर्जन संसदीय प्रतिनिधि मंडलों को दो दर्जन से अधिक देशों में अरबों रूपए खर्च कर मशहूर किया गया, अब उस ‘आॅपरेशन सिंदूर’ को संसद से क्यों दूर रखा जा रहा है? प्रधानमंत्री जी से यह सवाल सोलह प्रतिपक्षी दलों ने बाकायदा लिखित में पूछा है और इसके जवाब में मोदी सरकार ने इस हेतु संसद का विशेष लघु सत्र बुलाने से साफ इंकार कर दिया है। सरकार का कहना है कि संसद का मानसून सत्र निकट है, उसी में मसले पर भी विस्तार से चर्चा हो सकती है, जबकि मानसून सत्र के विषयों की सूची अभी से बन चुकी है और उसमें यह विषय समाहित नही है। कुल मिलाकर मतलब यह है कि इस ‘आॅपरेशन सिंदूर’ पर दुनियां में एक जुटता परिलक्षित हो रही है जबकि हमारे ही देश में अब यह राजनीति का अंग बन गई है। इस मसले पर मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस ने कहा है कि दो दिन पहले सिंगापुर में सीडीएस अनिल चैहान के खुलासे के बाद यह सत्र और भी आवश्यक हो गया हे सीज़फायर के बारे में ट्रम्प के दावे व पहलगाम हमले के आरोपियों के गिरफ्त से दूर रहने जैसे सवालों के जवाब बहुत जरूरी है। जबकि सरकार का कहना है कि विपक्ष की यह मांग उचित नही है, जुलाई में संसद का मानसून सत्र प्रस्तावित है और उसमें विपक्ष को सवाल पूछने का पूरा मौका मिलेगा, जो भी सवाल होगें, सरकार जवाब देगी, ऐसे में मानसून सत्र से पहले विशेष सत्र की मांग उचित नही है, सरकार इस मांग पर विचार भी नही कर रही, सरकार का यह भी कहना है कि विशेष सत्र की परम्परा भी नही है, 1962 को छोड़कर संसद का विशेष सत्र कभी नही हुआ। इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिपक्ष जो सरकार से सवाल पूछना चाहता है उनमें अमेरिका द्वारा सीज़फायर का श्रेय लेने, आतंकवाद से निपटने की हमारी रणनीति तथा पाकिस्तान को दूनियां में कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने में सफलता को लेकर है और इन कथित अहम् सवालों का माकूल जवाब प्रतिपक्ष सरकार से संसद के विशेष सत्र के दौरान चाहता है। सोलह प्रतिपक्षी दल जिनमें मुख्य रूप से कांग्रेस, सपा, टीएमसी, डीएमके, शिवसेना, आरजेडी, नेशनल कांफ्रेंस, माकपा, मुस्लिम लीग, भाकपा, आरएसपी, झामुमो तथा भाकपा (एमएल) शामिल है, सभी ने एक संयुक्त पत्र अपनी इस मांग को लेकर प्रधानमंत्री को लिखा है, इन दलों का आरोप है कि आॅपरेशन के बारें में दुनियां को बताया जा रहा है तथा संसद को बताया जा रहा है, कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने युद्ध विराम से राष्ट्रीय सुरक्षा विदेश नीति के प्रभावित होने पर भी सवाल किया है, सरकार ने इस पर मौन साध रखा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एक ओर जहां इन दिनों ‘‘आॅपरेशन सिंदूर’’ काफी चर्चा में है, इसी बीच प्रमुख प्रतिपक्षी दल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को जी-7 में आमंत्रित नही किए जाने पर भी सवाल उठाए है और इसे भारत की कूटनीतिक विफलता बताया है। इस प्रकार कुल मिलाकर इन दिनों प्रतिपक्ष के पास सरकार को घेरने के कई मसले है, शायद इसी कारण सरकार से इंकार करना है, अब प्रतिपक्ष के अगले कदम की प्रतीक्षा है। ओमप्रकाश मेहता/ईएमएस/06जून2025