अंतर्राष्ट्रीय
09-Jun-2025


मॉस्को (ईएमएस)। 5 जून की रात यूक्रेन के लिए बेचैनी भरी रही क्योंकि ये वहीं समय था, जब कज़ाकिस्तान के आसमान में चमकता हुआ कहर दिखाई दिया। रुसी मीडिया ने कहा कि ये कुछ और नहीं बल्कि वहीं ओरेश्निक मिसाइल है, जिसकी तबाही यूक्रेन साल 2024 में भी देख चुका है। मीडियम रेंज की इस बैलिस्टिक मिसाइल को जब पहली बार रूस ने यूक्रेन के खिलाफ इस्तेमाल किया था, तब पश्चिमी देश भी थर्रा उठे थे। रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध उस मोड़ पर आ चुका है कि अब रूस अपने तरकश में मौजूद खतरनाक से खतरनाक हथियार निकालने से पीछे नहीं हट रहा है। इसी कड़ी में अब अगला नाम उस ओरेश्निक मिसाइल का है, इस रूसी ‘ब्रह्मोस’ कहा जाता है। ओरेश्निक रूस की आरएस-26 रूबेज़ मिसाइल का ही मॉडिफाइड वर्ज़न है, इसकी तुलना विशेषज्ञ भारत की किलर मिसाइल ब्रह्मोस से करते हैं। ये वहीं ब्रह्मोस है, जिसके सपने पाकिस्तान को ऑपरेशन सिंदूर के बाद आज भी आते हैं। यूं इसका नाम ही यू्क्रेन और पश्चिमी देशों को घबरा देने के लिए काफी है, लेकिन ये जानना जरुरी हैं कि ये रूस की सबसे उन्नत हाइपरसोनिक मिसाइल है। ये तेज़ गति से एक साथ कई निशाने मारने में सक्षम है, इसकारण इसकी तुलना भारत और रूस के ज्वाइंट वेंचर ‘ब्रह्मोस’ से की जाती है। ओरेश्निक को रूसी भाषा में ‘हेज़ल ट्री’ कहा जाता है, जो हाइपरसोनिक इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल है। मॉस्को इंस्टीट्यूट फॉर थर्मल टेक्नोल़जी और सोज़वेदज़दी ने मिलकर बनाया है। पहली बार ओरेश्निक का इस्तेमाल रूस ने 21 नवंबर, 2024 को यूक्रेन के ड्निप्रो शहर में मौजूद एक डिफेंस फैक्ट्री को तबाह करने के लिए किया था। तब ये मिसाइल नॉन न्यूक्लियर वॉरहेड लेकर गई थी। रूस का दावा है कि ये मिसाइल वेस्टर्न डिफेंस सिस्टम को धता बताकर मैक 11 यानि 12,300 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ सकती है। तब व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी हथियारों के खिलाफ अपना हाईटेक जवाब बताया था। रूसी राष्ट्रपति इस मिसाइल के बड़े पैमाने पर उत्पादन की घोषणा साल 2024 में ही कर चुके हैं। इसकी लागत सीधे तौर पर नहीं बताई गई है लेकिन मान जाता है कि ये रूस की इस्कंदर-1000 से भी महंगी मिसाइल है। यूक्रेन का दावा है कि वहां ओरेश्निक का मुकाबला करने के लिए स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम बना रहा है लेकिन रूस की इस मिसाइल को लेकर कहा जाता है कि ये अमेरिका के थाडा और पैट्रियट जैसे पारंपरिक एयर डिफेंस सिस्टम को भी चकमा दे सकती है। इसकी वजह इसका हाई आर्क ट्रैजेक्टरी में उड़ना और वॉरहेड मैन्युवरेबल होना है, यानि ये बीच रास्ते में दिशा बदल सकती है। ओरेश्निक की रेंज 5000 से 5500 किलोमीटर है और ये मोबाइल लॉन्चर से दागी जाती है, जो इसकी ट्रैकिंग को लगभग असंभव बना देती है। इसकी तुलना ब्रह्मोस से की जाती है लेकिन दोनों की तकनीक में कुछ बुनियादी फर्क हैं। ब्रह्मोस जहां सुपरसोनिक क्रूज़ है वहीं ओरेश्निक हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल। आशीष दुबे / 09 जून 2025