अमेरिका में हाल मे हुए घटनाक्रम ने विश्व को हिलाकर रख दिया है। डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में लागू की गई नई नीतियाँ और कार्रवाइयाँ न केवल अमानवीय हैं। एक सभ्य समाज के नैतिक मूल्यों को चुनौती देने वाली हैं। ट्रम्प सरकार द्वारा की जा रही कार्यवाही अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार कानून का घोर उल्लंघन है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा, ट्रंप की नीतियों ने रामायण के रावण और महाभारत के कंस जैसे पौराणिक अत्याचारियों और अंहकारियों को पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका में पिछले कुछ महीनो में जिस तरह से प्रवासियों के ऊपर अत्याचार किए जा रहे हैं। घरों से निकालकर सड़कों पर घसीटकर मारा-पीटा जा रहा है। मां-बाप से बच्चों को दूर किया जा रहा है। अमेरिका में प्रवासियों, विशेषकर बच्चों और उनके परिवारों के साथ पशुओं से भी गया बीता व्यवहार किया जा रहा है। वह मानवता के लिए एक काला अध्याय बन गया है। ट्रंप प्रशासन द्वारा शुरू की गई डिपोर्टेशन नीति, जिसमें रोज़ाना 3000 लोगों को देश से बाहर निकालने का लक्ष्य राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा दिया गया है। उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवीय एवं सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है। बच्चों को उनके माता-पिता से अलग करना, देर रात और सुबह घरों में घुसकर परिवार के सदस्यों को घसीटना, मारपीट करना, चर्च व स्कूल जैसे स्थानों पर छापेमारी कर अमानवी व्यवहार करते हुए लोगों को गिरफ्तार करना, यह सब अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देश की छवि को सारी दुनिया में धूमिल कर रहा है। अमेरिका में जो हो रहा है, वह किसी युद्धग्रस्त क्षेत्र की याद दिलाता है। विश्व के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र मैं यह कृत्य होगें, इसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। एक बच्ची का सड़क पर रोते हुए अपनी माँ से कहना, “मुझे मत ले जाने दो,” दिल दहला देने वाला दृश्य सारी दुनिया ने देखा है। यह दृश्य न केवल अमेरिका के संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों के नियम और कानूनो का घोर उल्लंघन है। ट्रंप का यह कदम न केवल प्रवासियों, बल्कि अमेरिका के अपने नागरिकों, छात्रों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, और सामान्य लोगों को भी ट्रंप सरकार के नियमों के विरोध में सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर रहा है। ब्लैक लाइव्स मैटर, डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट्स ऑफ अमेरिका जैसे संगठन और स्थानीय गवर्नर राष्ट्रपति ट्रंप की इस नीति के खिलाफ एकजुट होकर विरोध कर रहे हैं। लासएंजेलिस में पिछले चार दिनों से फैला यह विद्रोह कोई हुड़दंग नहीं है, बल्कि बेहतर और मानवीय समाज के संवैधानिक अधिकारों की मांग का आंदोलन है। भारत के संदर्भ में देखें तो हमारी संस्कृति और ग्रंथ हमें सहानुभूति, करुणा और न्याय का पाठ पढ़ाते हैं। रामायण में रावण के अत्याचार और महाभारत में कंस के अत्याचार से सभी भारतीय भली-भांति परिचित हैं। ट्रंप की नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार कानून के विपरीत हैं। अमेरिकी संविधान के खिलाफ हैं। दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प में जिस तरह का अहंकार और तानाशाही देखने को मिल रही है। वह दुनिया के देशों को यह सोचने पर मजबूर करता है। सत्ता का दुरुपयोग किस तरह से अमेरिका जैसे विकसित लोकतांत्रिक राष्ट्र राष्ट्र में हो सकता है। विश्व समुदाय को, ट्रंप द्वारा किए जा रहे अत्याचार और असंवैधानिक कार्यों के खिलाफ एकजुट होकर विरोध करने आगे आना होगा। अमेरिका में जिस तरह से भारतीय प्रवासी और छात्रों के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया जा रहा है। इसका विरोध करने के लिए भारत सरकार को कडा विरोध करने की जरूरत है। सबसे आश्चर्य की बात है, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। अमेरिका में रह रहे भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा करने मैं भारत सरकार और अमेरिका स्थित भारतीय दूतावास की लापरवाही, अनदेखी और गैर जिम्मेदारी से भारतीय समुदाय आश्चर्य चकित हैं। अमेरिका के लास्एंजेलिस में अमेरिका के नागरिक प्रवासियों का साथ दे रहे हैं। प्रवासियों की लड़ाई लड़ने अमेरिका मूल के नागरिक सड़कों पर उतारकर ट्रंप का विरोध कर रहे हैं। अमेरिका के कई राज्यों के गवर्नर ट्रंप की इस कार्रवाई और असंवैधानिक का विरोध कर रहे हैं। ऐसे समय में मोदी सरकार की चुप्पी से सभी को आश्चर्य हो रहा है। भारत सरकार को समय रहते हुए अमेरिका में रह रहे भारतीयों के हितों को सुरक्षित एवं बेहतर बनाने के लिए त्वरित हर संभव प्रयास करने होंगे। ईएमएस / 10 जून 25