ज़रा हटके
17-Jun-2025
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वाशिंगटन (ईएमएस)। बचपन में झेले गए तनावपूर्ण अनुभव और मानसिक आघात व्यक्ति के मस्तिष्क पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ सकते हैं, जो भविष्य में मानसिक विकारों की नींव बन सकते हैं। यह खुलासा हुआ है एक ताजा अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में। ताजा अध्ययन के अनुसार, बचपन की प्रतिकूल परिस्थितियां मस्तिष्क की संरचना और रोग प्रतिरोधक क्षमता में स्थायी बदलाव लाती हैं, जिससे व्यक्ति में डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर और अन्य मानसिक बीमारियों का खतरा कहीं अधिक बढ़ जाता है। इटली के मिलान स्थित आईआरसीसीएस ओस्पेडाले सैन रैफेल की वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. सारा पोलेटी ने इस शोध के निष्कर्ष साझा करते हुए बताया कि इंसानी प्रतिरक्षा प्रणाली केवल शारीरिक संक्रमणों से रक्षा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य को भी आकार देने में गहरी भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा कि बचपन का तनाव प्रतिरक्षा प्रणाली की क्रियाशीलता को इस हद तक बदल सकता है कि उसका असर दशकों बाद गंभीर मानसिक बीमारियों के रूप में सामने आता है। शोध में ऐसे विशेष सूजन संकेतकों (इन्फ्लेमेटरी मार्कर्स) की पहचान की गई है, जो बचपन में हुए तनाव से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े पाए गए हैं। ये संकेतक मानसिक विकारों की जड़ों तक पहुंचने और उनके प्रभावी उपचार के लिए महत्वपूर्ण सुराग प्रदान कर सकते हैं। अध्ययन में मूड डिसऑर्डर, विशेषकर अवसाद और बाइपोलर जैसी बीमारियों के इलाज में इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट जैसे इंटरल्यूकिन-2 के संभावित उपयोग पर भी शोध किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मूड डिसऑर्डर वैश्विक स्तर पर गंभीर अक्षमता, बीमारी और मृत्यु का प्रमुख कारण हैं। रिपोर्ट बताती है कि आने वाले वर्षों में अवसाद से ग्रस्त रहने की दर लगभग 12 प्रतिशत और बाइपोलर डिसऑर्डर की दर 2 प्रतिशत तक हो सकती है। शोध में इस बात पर जोर दिया गया है कि इन विकारों में प्रतिरक्षा प्रणाली, खासकर सूजन प्रक्रिया, एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है। सूजन से जुड़े बायोमार्कर्स भविष्य में मानसिक बीमारियों के नए और अधिक प्रभावशाली इलाज विकसित करने में मदद कर सकते हैं। सुदामा/ईएमएस 17 जून 2025