(बलिदान दिवस पर विशेष) थी वीरों की वीर निराली,वह रानी मतवाली थी। जिसका साहस,शौर्य प्रखर था,संग भवानी-काली थी।। उस झाँसी की सेनानी की,सारे ही जय बोलो। बंद पड़े जो इतिहासों में,उन पन्नों को खोलो।।(1) वीर बुँदेलों की माटी ने,बलिदानों को पोसा। बैरी का सिर काट दिया,यदि किंचित उसने कोसा।। बुन्देलों की थाती ने तो,जय का घोष निभाया। दुश्मन को चटवाई मिट्टी,जय-परचम फहराया।।(2) मोरोपंत की सुता छबीली,थी साहस-अवतार । पुण्य धरा गंगा-तट जन्मी,शौर्य भरी तलवार।। थी बचपन से शान की वाहक,गौरव की संरक्षक । नाना की थी परम सहेली,रिपु को विषधर तक्षक ।।(3) झाँसी का कुल जब अकुलाकर,गोरों से थर्राया। हर कुनबे ने उसके आगे,था निज माथ झुकाया।। गंगाधर की मौत हुई पर,मणि ने धैर्य दिखाया। लाज बचाने पुण्य धरा की,निज हक़ को जतलाया।।(4) झाँसी का था कर्ज़ चुकाया,बनी वीर सेनानी। मातु भवानी के आशीषों,से वह रोशन बलिदानी।। थर्रा उठे फिरंगी भय से,हर गोरा घबराया। घोड़े पर पर जब बैठ समर में,मनु ने बल दिखलाया।।(5) आज़ादी के महासमर की,ज्वाला बहुत प्रबल थी। दो सखियाँ और चोखी सेना,रानी का सम्बल थी।। नहीं झुका रानी का सिर वह, बनी महा रणचंडी। झाँसी का तो शौर्य देख,ह्रूरोज तो हुआ शिखंडी।।(6) मैं झाँसी ना दूँगी अपनी,स्वर चहुँदिशि गूँजा था। तब हर नर-नारी ने जी भरकर,रानी को पूजा था।। रानी झाँसी में साहस था,स्व-अभिमान जगा था। छोटी सेना,ताप प्रखर पर,सब कुछ प्रबल लगा था।।(7) घोड़े ने भी अतुल पराक्रम,उस क्षण दिखलाया था। पर वह निज कर्तव्य निभाकर,स्वर्गलोक धाया था।। किंचित भी तब मणीकर्णिका, पल भर ना घबराई। व्यापक सेना थी दुश्मन की ,पर वह गति से धाई।।(8) नगर ग्वालियर कहता देखो,ऐसा वीर न दूजा। जिसको हमने हर युग में ही,श्रद्धा से है पूजा।। शौर्य,तेज और बलिदानों की,जो है जीवित गाथा। आदर से मस्तक झुक जाता,जब भी विवरण आता।।(9) बुन्देले सैनिक सब चोखे,थे भारत की गरिमा। बुंदेली माटी कहती है,उसकी स्वर्णिम महिमा।। बुन्देलों की शान का परिचय,रानी से मिलता है। ऐसा वीर बहादुर योद्धा,हर दिल में रहता है।।(10) घोड़ा कूदा उच्च किले से,रानी को ले धाया। नगर काल्पी मील पार सौ,रानी को पहुँचाया।। पर गिरकर वह स्वर्ग सिधारा,बेहद साथ निभाया। मारकाट कर नगर ग्वालियर,पर अधिकार जमाया।।(11) पर नाले ने रोक लिया,रानी बढ़ नहीं पाई। रिपुदल के वारों के आगे,काया रक्त नहाई।। पर तन उसका छुएँ न पापी,यही भाव मन आया। मार कटारी बलिदानों का,चोखापन मन आया।।(12) अंग्रेज़ी इतिहास के पन्ने,रानी का यश कहते। गीतों,कविताओं में गौरव,सबके जज़्बे बहते।। सच में,कालजयी रानी थी,दिव्य तेज की स्वामी। त्याग,शौर्य लेकर गाथाओं,में हैं जो अभिरामी।।(13) सुख,वैभव का त्याग करो,पर आन कभी नहिं तजना। जिसने की गौरवगाथा के,नए मूल्य की सृजना।। उस रानी झाँसी की क़ुर्बानी,का मैं वंदन करता। मातृ-वंदना जो उसने की,श्रद्धा से मन भरता।।(14) ईएमएस/18/06/2025