नई दिल्ली (ईएमएस)। आयुर्वेद के अनुसार अगर गलत समय पर पानी पिया जाए, तो वह दवा नहीं, बल्कि जहर के समान असर करता है। चाणक्य नीति में भी कहा गया है कि अपच की स्थिति में पानी औषधि की तरह काम करता है, भोजन के समय थोड़ा-थोड़ा पीया गया पानी अमृत के समान होता है, लेकिन भोजन के तुरंत बाद पीया गया पानी विष के समान होता है। हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में जीवन के हर पहलू को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इन्हीं में एक अहम पहलू है, पानी पीने का समय। आयुर्वेदिक ग्रंथों में यह स्पष्ट बताया गया है कि जब हम भोजन करते हैं तो वह पेट के अंदर ‘जठर’ या आमाशय में जाता है। यह शरीर के बीच में, नाभि के पास बाईं ओर स्थित होता है। इस आमाशय में एक प्राकृतिक अग्नि होती है, जिसे जठराग्नि कहा गया है। यही अग्नि भोजन को पचाने में सहायक होती है। जब हमें भूख लगती है, तो यह उसी अग्नि का संकेत होता है कि शरीर को ऊर्जा की जरूरत है। यदि हम भोजन करने के तुरंत बाद बहुत अधिक मात्रा में पानी पी लेते हैं, विशेष रूप से ठंडा पानी, तो यह पाचन अग्नि को ठंडा कर देता है। इसका परिणाम यह होता है कि खाना ठीक से नहीं पचता और अपच, गैस, एसिडिटी जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, भोजन के बाद कम से कम एक घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए ताकि जठराग्नि बिना किसी व्यवधान के अपना कार्य कर सके और भोजन को पूरी तरह पचा सके। यदि पाचन प्रक्रिया बाधित होती है, तो भोजन पेट में लंबे समय तक पड़ा रहता है और धीरे-धीरे सड़ने लगता है, जिससे डकार, भारीपन और अन्य पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। विज्ञान भी इस सिद्धांत को सही ठहराता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, भोजन के बाद शरीर में पाचन एंजाइम और एसिड सक्रिय हो जाते हैं, जो भोजन को पचाने में मदद करते हैं। लेकिन तुरंत पानी पीने से ये रस पतले हो जाते हैं और पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है। सुदामा/ईएमएस 20 जून 2025