अहमदाबाद में हुई दुर्घटना में एयर इंडिया विमान के टेकआफ के चंद लम्हों बाद ही रिहायशी इलाके में गिरने से अभी तक 241 यात्रियों और क्रू मेंबर समेत 270 लोगों की जानें जा चुकी हैं। कितने ही घायल गंभीर हैं और मृत्यु का आंकड़ा और बढ़ सकता है। तकनीकी कारणों से डीएनए सैंपल जीवित परिवारजनों से मिलाने के काम में विलंब हो रहा है। कितने ही पीड़ित परिवार अंतिम संस्कार के लिए प्रियजनों के शव मिलने का त्रासद इंतज़ार झेल रहे हैं। देश इस घटना के दंश से उबर भी नहीं पाया कि आपदा को अवसर मानकर व्यूज, लाइक्स और फालोवर्स की तलाश में निर्ममता की हदें पार करने वाले सोशल मीडिया वीर सक्रिय हो गए हैं। दुर्घटना में कोमी व्यास उनके पति प्रतीक जोशी, जुड़वां बेटे प्रद्युत और नकुल, और बेटी मिराया भी दिवंगत हुए हैं। कोमी के भाई कुलदीप भट्ट ने बताया है कि सोशल मीडिया पर उनके दिवंगत परिवारजनों की छेड़छाड़ की गई तस्वीरें और फर्जी वीडियो अपलोड हो रहे हैं। कोमी की फ्लाइट में ली गई सेल्फी को एआई के उपयोग से नकली वीडियो में बदल कर वायरल किया गया है। उसके नाम और तस्वीरों का गलत इस्तेमाल कर फर्जी अकाउंट बनाए गए हैं। अभी तक डीएनए सैंपल का मिलान नहीं हुआ है मगर लोग एडिटेड वीडियो से बच्चों का अंतिम संस्कार होने का दावा कर रहे हैं। एक अन्य वीडियो में दिखाए जा रहे बच्चों के शव किसी अन्य दुर्घटना से संबंधित हैं। कुलदीप ने विनती की है कि सिर्फ व्यूज, लाइक्स और फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए झूठी खबरें और वीडियो फैलाकर उनके दुःखी परिवार को और अधिक मानसिक आघात न दें। इससे सोशल मीडिया पर चल रहे उस पागलपन का घिनौना चेहरा फिर उजागर हो गया है जहां व्यूज, लाइक्स और फालोवर्स की लालच ने मानवीय संवेदनाओं का गला घोंट रखा है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के मौद्रीकरण के बाद नंबरों का यह खेल पैसा कमाने का साधन बन गया है। ये प्लेटफॉर्म अपलोडेड कंटेंट के बीच विज्ञापन दिखाकर भारी कमाई करते हैं जिसका एक छोटा हिस्सा अपलोड करने वाले को मिलता है। जितने अधिक व्यूज, लाइक्स, शेयर और फालोवर्स उतने अधिक पैसे। सस्ती इंटरनेट ने इस व्यवसाय को पंख लगा दिए हैं। जिसे देखो सुबह से फ्री डेली डाटा लिमिट का खून करने को उतारू दिखता है। माध्यम का उपयोग झूठी जानकारी फैलाने के लिए हो रहा है। आभासी दुनिया से यह लगाव वास्तविकता से दूर कर रहा है जिसके संभावित दुष्परिणाम सोच कर ही झुरझुरी छूटती है। इस अंधी दौड़ का अंत निकट भविष्य में तो दूर तक दिखाई नहीं देता। तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद सोशल मीडिया की बादशाहत वाली गूगल , मेटा जैसी कंपनियां अपने डाटा सेंटर भारत लाने को तैयार नहीं हैं। पहले फ्री कंटेंट परोसने वाली इन कंपनियों को विज्ञापनों के बाजार से पैसा पीटने का खजाना मिल गया है। इनके हाथों में खेल रहे सोशल मीडिया वीर यह नहीं जानते कि उन्हें मुनाफे का छोटा सा हिस्सा देकर उनसे वह सब कराया जा रहा है जो अपराध और अनैतिकता की श्रेणी में आता है और जिसकी सारी जिम्मेदारी प्लेटफार्म नहीं बल्कि उनकी है। दिवंगत कोमी व्यास उनके पति और बच्चों की तस्वीरों के साथ की जा रही छेड़छाड़ इसकी ताजा बानगी है। भारतीय न्याय संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत इन माध्यमों के दुरुपयोग रोकने संबंधी प्रावधान हैं। सोशल मीडिया पोस्ट से किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाले अपमानजनक या झूठे बयान देने पर 499, 500, धमकी पर 506 , निजी जानकारी के खुलासे पर 66ई और अश्लील सामग्री प्रकाशित करने पर 67 जैसी धाराएं लागू होती हैं। आपत्तिजनक पोस्ट के आधार पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर 295ए और समुदायों के बीच नफरत फैलाने पर 153ए जैसी अन्य धाराएं भी हैं। मगर इनमें उपलब्ध लूपहोल बच निकलने का रास्ता देते हैं। सरकारें इन प्रावधानों का उपयोग राजनीतिक गुणा भाग के आधार पर प्रचार और विरोध की आवाज दबाने के लिए करने पर ज्यादा तत्पर दिखाई देती हैं। हर माध्यम के अपने गुण दोष हैं। पृकृति में भी शायद ही ऐसा कुछ है जिससे सदुपयोग और दुरुपयोग की संभावनाएं न जुड़ी हों। सांप का जहरीला विष दवा बनाने में भी प्रयुक्त होता है। सोशल मीडिया संवाद और संचार का बेहद उपयोगी माध्यम है। सनसनी फैलाने वाला कंटेंट पहले भी था मगर दिवंगत कोमी व्यास दंपति और उनके बच्चों की तस्वीरों से छेड़छाड़ कर परोसा गया झूठ बताता है कि मौद्रीकरण के बाद पैसे कमाने के लिए व्यूज लाइक्स शेयर सब्सक्राइब की अंधी दौड़ ने इसे अमानवीयता का कितना घिनौना चेहरा पहना दिया है। सरकारों द्वारा प्रचार और राजनीतिक फायदे के लिए सोशल मीडिया की ताकत पर निर्भरता किसी से छिपी नहीं है। कानून कड़ाई से लागू करने की राह में और भी कई तकनीकी समस्याएं हैं। इसलिए सरकारी स्तर पर कोई सख्त कार्रवाई मृगतृष्णा साबित हो सकती है। सहज और सरल उपाय यही है कि लोग अपने स्तर पर ही ऐसे दुष्प्रचार और गलतबयानी पर लगाम लगाएं। सनसनीखेज पोस्ट के प्रचार-प्रसार में सहयोगी न बनें। इसी मीडिया पर फैक्ट चैक के विकल्प उपलब्ध हैं उनका प्रयोग करें। याद रखें, किसी झूठी पोस्ट पर आपकी एक क्लिक गहन मानसिक अवसाद से गुजर रहे व्यक्ति या परिवार की पीड़ा और बढ़ा सकती है। ईएमएस / 20 जून 25