24-Jun-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। जब सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान पर हमला किया और ससैनियन साम्राज्य का पतन हुआ, तो पारसियों को धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। इस्लामिक शासन में पारसियों पर जजिया कर लगाया गया और धार्मिक स्वतंत्रता छिन ली गई। ऐसे हालातों में बहुत से पारसियों ने इस्लाम कबूल किया, जबकि कई लोग अपने धर्म पर टिके रहे। उत्पीड़न से बचने के लिए कुछ पारसी फारस से पलायन कर भारत आए। कहा जाता है कि 936 ईस्वी में पारसियों का पहला जत्था गुजरात के संजान में पहुंचा। भारत में पारसियों के आगमन से जुड़ी एक दिलचस्प लोककथा प्रचलित है। जब पारसी शरणार्थियों का जहाज संजान पहुंचा, तो उन्होंने वहां के स्थानीय राजा से शरण मांगी। भाषा की बाधा के कारण राजा ने दूध से भरा गिलास उन्हें यह संकेत देने के लिए भेजा कि राज्य में अब और किसी के लिए स्थान नहीं है। पारसियों ने उस दूध में चीनी घोलकर लौटा दिया, यह दर्शाते हुए कि वे इस समाज में घुल-मिल जाएंगे। राजा उनकी इस विनम्रता से प्रभावित हुआ और कुछ शर्तों के साथ उन्हें बसने की अनुमति दे दी। भारत में पारसियों ने अपने धर्म और परंपराओं को जीवित रखा और अग्नि मंदिरों की स्थापना की। ब्रिटिश शासन के दौरान पारसी समुदाय ने तेजी से तरक्की की और शिक्षा, व्यापार और समाज सेवा में अपनी विशेष पहचान बनाई। 19वीं सदी की शुरुआत में मुंबई में पारसियों की संख्या भले ही कम थी, लेकिन उनका प्रभाव काफी अधिक था। उन्होंने शिक्षा पर खास ध्यान दिया, विशेषकर लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित किया। दूसरी ओर, ईरान में बचे पारसियों को शासकों के अत्याचार झेलने पड़े। उन्हें घोड़े पर सवारी, छाता या चश्मा इस्तेमाल करने और पूजा स्थल बनाने जैसे सामान्य अधिकारों से भी वंचित रखा गया। काजर राजवंश के समय यह दमन चरम पर था। फिर भी उन्होंने अपने धर्म को जीवित रखा। आजादी के बाद भारत और ईरान के पारसी समुदाय वैश्विक स्तर पर फैलने लगे। कई पारसी बेहतर अवसरों की तलाश में ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य देशों में बस गए। बावजूद इसके, भारत विशेषकर मुंबई और गुजरात, आज भी पारसी समुदाय का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। पारसियों ने भारत की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जमशेदजी टाटा, दादाभाई नौरोजी, होमी भाभा, रतन टाटा और साइरस पूनावाला जैसी हस्तियों ने उद्योग, विज्ञान, राजनीति, न्याय और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान दिया है। उनकी मेहनत, ईमानदारी और सामाजिक प्रतिबद्धता ने उन्हें भारत के सबसे सम्मानित समुदायों में स्थान दिलाया है। कहा जाता है कि पारसी धर्म विश्व के प्राचीनतम एकेश्वरवादी धर्मों में से एक है, जिसकी स्थापना छठी शताब्दी ईसा पूर्व में पैगंबर जरथुस्त्र ने प्राचीन फारस, आज के ईरान में की थी। सुदामा/ईएमएस 24 जून 2025