-पिछले 50 सालों में अमेजन का करीब 20 फीसदी हिस्सा हो चुका नष्ट नई दिल्ली,(ईएमएस)। वर्षावन, जिन्हें पृथ्वी का ‘फेफड़ा’ कहा जाता है, अब खुद अपने जीवन के लिए गुहार लगा रहे हैं। वे न केवल ऑक्सीजन के सबसे बड़े उत्पादक हैं, बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड का भंडारण कर पृथ्वी के जलवायु संतुलन को बनाए रखते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी की सतह का मात्र 6 फीसदी क्षेत्र ही वर्षावनों से आच्छादित है, लेकिन यहां दुनिया की ज्ञात जैव विविधता का 50 फीसदी से ज्यादा निवास करता है। यहां पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं, कीट-पतंगों, सूक्ष्मजीवों और मानव समुदायों के बीच सह-अस्तित्व की अद्भुत प्रयोगशाला है। इसके बावजूद वर्षावनों का विनाश अत्यंत तेज गति से हो रहा है। वर्षावनों की महत्ता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि ये विश्व के करीब 33 मिलियन लोगों की आजीविका का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आधार हैं। साथ ही वर्षावन आधारित पारिस्थितिक सेवाएं वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष 1.5 ट्रिलियन डॉलर का योगदान देती हैं। फिर भी आज ये अद्वितीय प्राकृतिक धरोहरें तेजी से विनष्ट हो रही हैं। दक्षिण अमेरिका में स्थित ‘अमेजन’ वर्षावन, पृथ्वी का सबसे विशाल वर्षावन है, जो ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, वेनेजुएला, इक्वाडोर, बोलिविया, गुयाना और सूरीनाम जैसे आठ देशों में फैला है। यह अकेले विश्व की 10 फीसदी जैव विविधता का घर है और प्रतिवर्ष 2 अरब टन कार्बन को अवशोषित करता है। इसका क्षेत्रफल करीब 5.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर है लेकिन पिछले 50 सालों में अमेजन का करीब 20 फीसदी हिस्सा नष्ट हो चुका है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि यह नुकसान 25 फीसदी तक पहुंचता है तो अमेजन ‘टिपिंग प्वाइंट’ को पार कर जाएगा और वह एक सूखे, गर्म और बंजर सवाना में बदल सकता है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक अमेजन में प्रतिदिन औसतन 144,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल यानी हर मिनट करीब 10 फुटबॉल मैदान जितना जंगल साफ किया जा रहा है। यह दर अब तक की सबसे तेज और विनाशकारी है। इसका प्रमुख कारण अवैध वनों की कटाई, चरागाह विस्तार, खनन, सड़क और बांध परियोजनाएं तथा आगजनी की घटनाएं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 के पहले चार महीनों में ही अमेजन का 4.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र साफ किया जा चुका था। ब्राजील, जहां अमेजन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है, वहां 2001 से 2023 के बीच 68.9 मिलियन हेक्टेयर वृक्ष आवरण खत्त हो गया, जो वैश्विक वनों की कुल क्षति का लगभग 43 फीसदी है। म्यांमार, भारत और थाईलैंड जैसे देशों के वर्षावनों में भी भयावह क्षरण देखा जा रहा है। भारत में पूर्वोत्तर राज्यों, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह, पश्चिमी घाट और सुंदरबन जैसे इलाके वर्षावन संरचना के लिए प्रसिद्ध हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश के प्राकृतिक वन क्षेत्रों में गिरावट का रुझान चिंताजनक है। देश का कुल वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग किमी है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 21.71 फीसदी है, लेकिन इसमें प्राकृतिक वर्षावनों की हिस्सेदारी लगातार घट जा रही है। वर्ष 2023 में देश के 11 राज्यों में कुल मिलाकर 54,000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र का नुकसान हुआ। वर्षावनों का विनाश केवल हरियाली की क्षति नहीं बल्कि मानव सभ्यता के लिए एक त्रिस्तरीय संकट है। वर्षावन प्रतिवर्ष लगभग 2 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं और कटाई के दौरान यह गैस वातावरण में लौट आती है और ग्लोबल वॉर्मिंग को तीव्र कर देती है। एफएओ का अनुमान है कि यदि यही रुझान जारी रहा तो 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन में 15 फीसदी तक गिरावट संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोविड-19, इबोला, एचआईवी, निपाह, आदि 75 फीसदी उभरती संक्रामक बीमारियां वन्यजीवों से मनुष्यों में आई हैं। जब वर्षावन कटते हैं तो मनुष्य और वन्यजीवों के बीच संपर्क बढ़ता है, जिससे जूनोटिक बीमारियों का प्रसार होता है। सिराज/ईएमएस 24 जून 2025