भारत के ग्रामीण क्षेत्र से लगाकर बड़े से बड़े नगर में श्री हनुमानजी के मंदिर में दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। आज की इस विषम परिस्थिति में मनुष्य मात्र के लिए विशेष रूप से युवकों एवं बालक-बालिकाओं के लिये हनुमानजी की आराधना-साधना-उपासना नितान्त आवश्यक है। हनुमानजी सद्बुद्धि-बल-वीर्य प्रदान करके सदा अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करते हैं। भूत-प्रेत-पिशाच, यक्ष, राक्षस आदि तो इनके मात्र नामोच्चारण से ही भाग जाते हैं। इनके नाम स्मरण से ही अनेक रोगों की पीड़ा से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। मानसिक-शारीरिक दुर्बलता के कारण हुए संघर्ष में इनकी कृपा से शीघ्र विजय प्राप्त हो जाती है। आज कई अल्पायु बालक-बालिकाएँ एवं युवक-युवतियाँ जीवन में भटक जाने पर दुनिया में भय से आत्महत्या भी कर लेते हैं। यदि प्रभु हनुमानजी की शरण को प्राप्त कर लेते तब इससे बच सकते हैं। हनुमानजी की भक्ति और कृपा से उनमें आत्मविश्वास ईश्वर में श्रद्धा-विश्वास उत्पन्न हो जाएगा तथा निराशा को समाप्त कर एक नया जीवन जी सकते हैं। हनुमानजी की भक्ति के कारण वे माता-पिता-परिवार और देश की सेवा कर श्रेष्ठ नागरिक बन सकते हैं। हनुमानजी बल-बुद्धि-विवेक और शक्ति के देवता हैं। भारतीय पुराणों एवं रामायण में हनमानजी को वायुपुत्र-पवनपुत्र वातात्मज कहा गया है। वाल्मीकीय रामायण के बालकाण्ड में यह वर्णन प्राप्त होता है कि ब्रह्माजी ने देवताओं को आदेश दिया कि भगवान विष्णुजी आपकी प्रार्थना से मनुष्य रूप धारण कर अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र होकर रावण का वध करेंगे। अत: अब देवतागण उनकी सहायता के लिए पृथ्वी पर अपने-अपने अंश से वानर ऋक्ष आदि योनियों में अवतार लें। ते तथोक्ता भगवता तत् प्रतिश्रुत्य शासनम्। जनयामासुखें ते पुत्रान् वानररूपिण:।। वा.रा. बालकाण्ड सर्ग-८ केसरी वानर की स्त्री अञ्जना के गर्भ से वायु द्वारा हनुमानजी की उत्पत्ति बताई गई है। भविष्योत्तर एवं स्कन्द पुराणों में हनुमानजी के जन्म की कथा प्राप्त होती है। उसमें बताया गया है कि केसरी की पत्नी अञ्जना पुत्र न होने के दु:ख से दु:खी होकर मतंग ऋषि के पास जाकर रोते हुए कहा- मुने! मेरे पुत्र नहीं है आप पुत्र प्राप्त करने का कोई उपाय बतलाइये। यह सुनकर मतंग ऋषि ने कहा कि- पम्पा सरोवर से पूर्व दिशा में पचास योजन पर नरसिंहाश्रम है। उसके दक्षिण में नारायणा गिरि पर स्वामितीर्थ है। इसके पास ही उत्तर में आकाशगंगा तीर्थ है। वहां जाकर उसमें स्नान करके बारह वर्ष तक तप करने से तुम्हें एक गुणवान् पुत्र उत्पन्न होगा। मतंग ऋषि के कहे अनुसार वह नारायणाद्रि पर गयी, स्वामिपुष्करिणी में स्नान किया और अश्वत्थ की प्रदक्षिणा कर एवं वराह भगवान को प्रणाम करके आकाशगंगा तीर्थ में रहने वाले मुनियों एवं पति की आज्ञा लेकर उपवास करती हुई बाहरी भोग त्याग कर तप करने लगी। इस प्रकार बारह वर्ष तप उपरान्त वायु (पवन) देवता ने प्रसन्न होकर अञ्जना को पुत्र होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त होने से उसने एक पुत्र को जन्म दिया। कालान्तर में उसी का नाम हनुमान रखा गया। ब्रह्माण्ड पुराण में हनुमानजी के जन्म का प्रसंग इस प्रकार है कि त्रेतायुग में एक केसरी नामक असुर उत्पन्न हुआ। उसने पुत्र प्राप्ति हेतु शिवजी के पंचाक्षर महामंत्र का जप निराहार एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण करके किया। शिवजी ने प्रसन्न होकर उससे कहा कि तुम अपनी इच्छानुसार वर माँग लो। केसरी ने कहा- हे प्रभु यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे एक पुत्र का वरदान दीजिए जो कि बलवान, रणक्षेत्र में सदा विजयी, धैर्यवान एवं अत्यन्त ही बुद्धिमान भी हो। यह सुनकर शिवजी बोले- मैं तुम्हें पुत्र तो नहीं दे सकता हूँ क्योंकि विधाता ने तुम्हारे भाग्य में पुत्र सुख नहीं लिखा है फिर भी मैं तुम्हें एक अत्यन्त ही सुन्दर कन्या दूँगा, जिससे तुम्हारी अभिलाषानुसार उसे एक बलवान पुत्र उत्पन्न होगा। शिवजी इतना कहकर अन्तर्धान हो गए तथा असुर भी इच्छानुसार वरदान प्राप्त होने से प्रसन्न हो गया। कुछ वर्षों के बाद उसके यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम उस असुर ने अञ्जना रखा। वह उसे पुत्रवत प्रेम करने लगा। समय बीतता गया तथा एक केसरी नामक वानर ने जो बड़ा वानरों में श्रेष्ठ, बहुत पराक्रमी था, उसने उस कन्या की याचना की तब दैत्यराज ने अत्यन्त ही प्रसन्न होकर कन्या उसे दे दी। केसरी इच्छानुसार रूप धारण करने वाली अञ्जना के साथ रहने लगा। कई वर्ष व्यतीत हो गए अञ्जना को कोई पुत्र नहीं हुआ। एक समय की बात है कि धर्म देवता वन्य की नीच, स्त्री का रूप धारण कर वहाँ आये। उनके एक हाथ में बेंत थी तथा दूसरे हाथ में एक सुतली थी। वही स्त्री जोर-जोर से आवाज कर रही थी कि किसी को अपने भविष्य में क्या लिखा है, वह मैं बता सकती हूँ। वह हाथ की रेखाओं को देखकर भविष्यफल बताती हुई एकाएक अञ्जना के पास पहुँच गई। अञ्जना ने पूछा कि मेरे भाग्य में पुत्र का सुख है अथवा नहीं? यदि मुझे एक शक्तिशाली पुत्र हो जाएगा तो मैं तुम्हें तुम्हारी इच्छानुसार सब कूछ दूँगी। तब वह स्त्री बोली (पुल्कसी) तुम्हें बलवान पुत्र अवश्य प्राप्त होगा, यह मैं धर्म की शपथ लेकर कहती हूँ तू चिन्ता मत कर। किन्तु मैं तुझे जैसा बताऊँ उसी प्रकार तुम दृढ़ निश्चयपूर्वक तप करना। वंकटाचल पर्वत पर सात हजार वर्ष तक तप करने पर तुम्हें मन वांछित पुत्ररत्न की प्राप्ति हो जाएगी। इतना कहकर वह स्त्री चली गई। अञ्जना उसके कहे अनुसार वेंकटाचल पर्वत पर केवल वायु देवता का ध्यान करते हुए दारूण तप करने लगी। कुछ समय बाद आकाशगंगा से आकाशवाणी हुई कि बेटी! तू चिन्ता मत कर, तेरा भाग्य खुल गया। रावण नामक राक्षस बड़ा ही दुष्ट होकर सब लोगों को कष्ट देगा, वह सबकी सुन्दर-सुन्दर स्त्रियों को हरण करके ले जाएगा। तब उसका नाश करने के लिए भगवान विष्णु रघुकुल में श्रीराम के रूप में अवतरित होंगे। उस समय उनकी सहायता करने के लिए शक्तिशाली-पराक्रमी, धैर्यवान जितेन्द्रिय और अप्रमेय गुणोंवाला एक तुम्हारा ऐसा पुत्र होगा। यह आकाशवाणी सुनकर अञ्जना प्रसन्न हुई। उसने जाकर यह सब केसरी को बताया। वह भी यह सब सुनकर अति प्रसन्न हुआ तथा पुत्र की प्रतीक्षा करने लगा। दस मास पूर्ण होने पर श्रावण मास की एकादशी के दिन श्रवण नक्षत्र में अंजना ने सूर्योदय के समय कानों में कुण्डल और यज्ञोपवीत धारण किए हुए, कौपीन पहने जिनका रूप, मुख, पूँछ और सुवर्ण के समान रंगवाले एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। हनुमानजी के जन्म की कथाएँ पुराणों में विभिन्न प्रकार से प्राप्त होती है। कल्पभेद से सभी सत्य है। हमें तो मात्र हनुमानजी की भक्तिपूर्वक आराधना करनी चाहिए। वायुपुराण में भी हनुमानजी के जन्म के विषय में स्पष्ट रूप से वर्णन है- आश्विनस्यासिते पक्षे स्वात्यां भौमे च मारूति:। मेषलग्नेऽञ्जानार्भात स्वयं जातो हर:शिव:।। अर्थात् आश्विन (चन्द्रमास कार्तिक) के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में माता अञ्जना के गर्भ से स्वयं भगवान शंकर प्रकट हुए। वैदिक पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष चैत्र माह की पूर्णिमा की तिथि पर हनुमानजीकी जयन्ती मनाने की परम्परा उत्तर भारत में आज भी है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हनुमानजी के जन्मोत्सव के रूप में कार्तिक माह में ही विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में दक्षिण भारत में मनाने की प्रथा पाई जाती है। अन्त में यही सत्य है कि- हनुमान सम नहिं बड़ भागी। नहि कोउ रामचरन अनुरागी।। श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड-५० (मानसश्रीÓ, मानस शिरोमणि, विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 25 जून /2025