राष्ट्रीय
28-Jun-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत के केरल राज्य की कासवु साड़ी एक अनोखी और खूबसूरत साड़ी है, जिसे उसकी सफेदी और गोल्ड बॉर्डर के कारण पहचाना जाता है। इसके पीछे न केवल सांस्कृतिक महत्व है, बल्कि इतिहास और शिल्प की एक समृद्ध परंपरा भी छिपी है। यह साड़ी विशेष रूप से त्योहारों, धार्मिक अवसरों और शादियों में केरल की महिलाओं द्वारा पहनी जाती है। कासवु शब्द का अर्थ होता है “जरी” यानी साड़ी के किनारों पर बारीकी से बुने गए सोने के धागे। यही गोल्ड बॉर्डर इस साड़ी की खास पहचान है। कासवु साड़ी का इतिहास महाराजा बलराम वर्मा के काल से जुड़ा है, जब बलरामपुरम में तमिलनाडु के कुशल बुनकरों को बुलाकर इसकी बुनाई शुरू करवाई गई। आज भी बलरामपुरम कासवु साड़ियों का एक प्रमुख केंद्र है और इसे बनाना पारंपरिक कारीगरों के लिए सम्मान की बात मानी जाती है। कासवु साड़ी की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सादगी में छिपी भव्यता है। सफेद रंग जहां शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, वहीं गोल्ड बॉर्डर धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य का संकेत देता है। इसी वजह से यह साड़ी खास मौकों पर पहनने के लिए आदर्श मानी जाती है। पहले ये साड़ियां शुद्ध सोने के धागों से बनाई जाती थीं, जिससे इनकी कीमत लाखों तक होती थी। हालांकि अब सिंथेटिक या कॉपर जरी का भी इस्तेमाल होने लगा है, जिससे ये साड़ियां आम लोगों की पहुंच में आ गई हैं। इस साड़ी को तैयार करने में लगने वाला समय उसके डिज़ाइन की जटिलता पर निर्भर करता है। साधारण कासवु साड़ी 3 से 5 दिनों में तैयार हो सकती है, जबकि बारीक काम और भारी बॉर्डर वाली साड़ियों को बनाने में कई महीने भी लग जाते हैं। इसकी बनावट और बुनाई में कारीगरों की मेहनत साफ झलकती है। आज यह साड़ी फैशन की दुनिया में भी अपनी जगह बना चुकी है। कई फिल्मी सितारे भी इसे खास मौकों पर पहनते हैं, जिससे इसकी लोकप्रियता और भी बढ़ी है। सफेद और गोल्ड का कॉम्बिनेशन इसे शाही और क्लासी लुक देता है। इस साड़ी ने परंपरा को आधुनिकता से जोड़ते हुए महिलाओं के वॉर्डरोब में एक खास स्थान बना लिया है। बता दें कि भारत में हर राज्य की अपनी एक पारंपरिक साड़ी होती है, जो उस क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है। सुदामा/ईएमएस 28 जून 2025