अमेरिका के साथ अंतरिम व्यापार समझौते को लेकर फंस गया पेंच नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत और अमेरिका के बीच अंतरिम व्यापार समझौते को लेकर अमेरिका गई भारतीय टीम दिल्ली लौट चुकी है। इस टीम का नेतृत्व वाणिज्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी और मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल कर रहे थे। भारतीय दल ने 26 जून से 2 जुलाई तक वाशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों के साथ व्यापारिक बातचीत का एक और अहम दौर पूरा किया, लेकिन कुछ बड़े मुद्दों पर सहमति न बन पाने के कारण बातचीत को अभी जारी रखने पर सहमति बनी है। दरअसल सरकार के सूत्रों ने बताया कि वार्ता में कृषि (एग्रीकल्चर) और ऑटो सेक्टर को लेकर गंभीर मतभेद बने हुए हैं। भारत ने इन क्षेत्रों में टैरिफ रियायतें देने से साफ इंकार किया है। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, यह दोनों सेक्टर भारत के लिए रणनीतिक रूप से संवेदनशील हैं और यहां जल्दबाज़ी में कोई भी समझौता घरेलू उत्पादकों को संकट में डाल सकती है। भारत ने अमेरिकी मांगों को लेकर अपना रुख सख्त कर लिया है और डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन) को भी संदेश भेजा है कि अमेरिका द्वारा ऑटोमोबाइल पर 25 प्रतिशत टैरिफ बढ़ाने के खिलाफ वह जवाबी कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखता है। वहीं अमेरिका चाहता है कि भारत टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट्स, इलेक्ट्रिक वाहन, वाइन, पेट्रोकेमिकल उत्पाद, सेब, ट्री नट्स और जीएस फसलों और डेयरी उत्पादों पर शुल्क रियायतें दे। अमेरिकी प्रशासन इस व्यापार समझौते को “मार्केट ओपनिंग” के रूप में देख रहा है। वहीं भारत, अमेरिका के साथ प्रस्तावित समझौते के तहत अमेरिका से निम्नलिखित सेक्टरों में टैरिफ रियायतें चाहता है। भारत चाहता हैं कि कपड़ा, रत्न और आभूषण, चमड़ा उत्पाद, प्लास्टिक, रसायन, झींगा, तिलहन अंगूर और केला भारत का जोर निर्यात को बढ़ावा देने और घरेलू उद्योग को सुरक्षा देने पर है। यह चर्चा तब हो रही है, जब डोनाल्ड ट्रंप सरकार की टैरिफ डेडलाइन 9 जुलाई को समाप्त हो रही है। ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि भारत जल्दी ही बड़े पैमाने पर टैरिफ कटौती करेगा, जिससे अमेरिका को फायदा होगा। हालांकि भारत की सख्त प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि वह किसी दबाव में समझौता नहीं करेगा। अगर इन संवेदनशील मुद्दों पर सहमति नहीं बनती, तब मिनी ट्रेड डील की संभावना बन सकती है। इसमें विवादित क्षेत्रों को छोड़कर बाकी सेक्टरों पर आंशिक समझौता हो सकता है, ताकि बातचीत की प्रक्रिया पूरी तरह बाधित न हो। कारोबार विशेषज्ञों का मानना है कि इस डील का स्वरूप भले ही सीमित हो, लेकिन इससे दोनों देशों के बीच भरोसे और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती मिल सकती है। आशीष दुबे / 04 जुलाई 2025