08-Jul-2025
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कंस के अंत से रचा धर्म का नया युग – शैलेन्द्र कृष्ण महाराज महारास में केवल वही, जिसने प्रेम की पराकाष्ठा को पाया – भागवत कथा में हुआ दिव्य रासलीला वर्णन, बंसी की धुन पर नृत्य करने लगे श्रद्धालु मथुरा गमन प्रसंग पर अश्रुधारा, भक्त भावविभोर, कंस वध कर अधर्म का अंत, रुक्मिणी विवाह ने मोहा मन भोपाल(ईएमएस)। रसधाम गार्डन, करोंद में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतर्गत मंगलवार को कथा स्थल भक्तिरस में डूबा रहा। महाराज के निज सचिव राजेश राय ने बताया कि वृंदावन से पधारे सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय कथा वाचक धर्मपथिक पूज्य शैलेन्द्र कृष्ण महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य महारास लीला और मथुरा गमन का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया। महाराज जी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण फूल से भी अधिक कोमल हैं, परंतु जब समय आता है तो वह पत्थर से भी कठोर हो जाते हैं। उन्होंने महारास को ईश्वर और जीव के मिलन की अद्भुत लीला बताते हुए कहा कि इसमें वही सम्मिलित हो सकता है, जो प्रेम की पराकाष्ठा को प्राप्त कर चुका हो। गोपियां प्रेम की प्रतीक थीं, अतः उन्हें रास में स्थान मिला। जैसे ही भजन गोकुल में देखो, मथुरा में देखो बंशीबाजी रे... गूंजा, समूचा वातावरण भक्ति से भर गया और श्रद्धालु भावविभोर होकर झूमने लगे। जब कथा में मथुरा गमन का प्रसंग आया, तो श्रोताओं की आंखें नम हो गईं। शैलेन्द्र कृष्ण महाराज ने अत्यंत मार्मिकता से वर्णन किया कि जब अक्रूर भगवान श्रीकृष्ण को लेकर मथुरा जाने लगे, तो मैया यशोदा बेहोश हो गईं, गोपियां रथ रोकने लगीं, लेकिन श्रीकृष्ण नहीं रुके। यही लीला सिखाती है कि भगवान संयोग और वियोग दोनों में सम भाव रखते हैं। कंस वध और रुक्मिणी विवाह की झांकी कथा में आगे बताया गया कि मथुरा पहुंचकर श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर अधर्म का अंत किया। फिर द्वारका में राजकुमारी रुक्मिणी संग विवाह संपन्न हुआ। विवाह प्रसंग की झांकी देख श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए। विवाह की झांकी के दौरान भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के पात्रों ने विवाह की सभी रस्में भक्ति भाव से निभाईं। मंच पर रंग-बिरंगे परिधानों में प्रस्तुत यह दृश्य अत्यंत मनोहारी था। शरद पूर्णिमा की रात महारास आयोजन का वर्णन करते हुए महाराज जी ने कहा कि गोपियां जब यमुना तट पर पहुंचीं, तो भगवान ने प्रेम और त्याग की पराकाष्ठा पर पहुंचीं गोपियों के साथ अद्भुत रास रचाया। इस लीला में जितनी गोपियां थीं, उतने ही श्रीकृष्ण प्रकट हुए, और दिव्य रास नृत्य आरंभ हुआ। इस दौरान भजन-संगीत की प्रस्तुति ने कथा को और भी जीवंत बना दिया। हरि प्रसाद पाल / 08 जुलाई, 2025