कभी गुलजार रहता था सराज, बाढ़ की विभीषिका से वीरान हो गया आज । दर्दनाक मंजर है लोगों की आँखों में खौफ है क्यूंकि खौफनाक त्रासदी ने जो ज़ख्म दिए हैं ताउम्र रिसते रहेंगे । बहुत ही मार्मिक और रूह को हिलाने वाला दृश्य चारों तरफ नजर आता है पहाड़ जमीन पर उत्तर गए हैं । असहनीय दर्द है हर आँख आंसू बहा रही हैं क्यूंकि अपनों को खोने का दर्द अपने ही समझ सकते हैं । बाढ़ ने आशियानो का वजूद ही मिटा दिया है सब कुछ तबाह कर दिया है । ऊँचे पहाडों में रहने वाले भोले भाले लोगों पर दुखों का पहाड़ टूट पडा है पहाड़ जैसा हौसला रखने वाले लोगों को तोड़ कर रख दिया है पहाड़ जैसे दुःख से उभरने में बहुत समय लगेगा । चंद मिनटों में बाढ़ सब कुछ बहाकर ले गईं सिर्फ तन पर जो कपड़े पहने थे वहीं बचे हैं नंगे पाँव मीलों का रास्ते तय करके जान बची है बरसात से पूरा सराज वीरान हो चूका है चारों तरफ मलवा ही मलवा और विशालकाय चट्टानों के ढेर नजर आ रहे हैं । चारों तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा है कीचड़ ही कीचड़ बिखरा हुआ है भयंकर बाढ़ का भयानक मंजर देखकर आत्मा सिहर उठती है । बाग बगीचे धराशयी हो गए आलीशान मकान ढह गए सपनों के महल टूट गए है । बाढ़ ने घरों को तिनका तिनका बिखेर दिया हैं इंटे पत्थर बिखरे हुए हैं घर का सारा सामान बाढ़ की भेंट चढ़ गया सोने चांदी के आभूषण बह गए नकद पैसा बह गया उम्र भर की जमा पूंजी बाढ़ बहा कर ले गईं है । बाढ़ ने सेकड़ों लोगों को पल भर में लील लिया । हर घर गांव में चीखो पुकार मची हुई है क्यूंकि बाढ़ में किसी ने अपना बेटा,किसी ने माँ बाप तो किसी ने बहन खोई है । सैकड़ो बच्चे अनाथ हो गए माता बहनों की मांग का सिंदूर मिट गया । सराज प्रकृति का स्वर्ग था कुदरत के कहर ने नरक बना दिया । सराज कभी खुशियों से गुलजार था बच्चों की किलकारियां गूंजती थी लेकिन अब सुनसान व वीरान हो चूका है और मलबे मे तब्दील हो चूका है अब श्मशान बन चूका है। दबे पाँव आई बाढ़ सब बहा कर ले गईं है छोटे छोटे बच्चे बिछड़ चुके हैं एक नौ महीने की नवजात निकिता जिन्दा बची है उसके परिवार के लोग बाढ़ की चपेट में आने से बेमौत मारे गए हैं ।सराज का हर गाँव की गलियों का नामोनिशान मिट चूका है मकान जमीदोज हो चुके हैं चारों तरफ मलबा बिखरा हुआ है चारों तरफ चीत्कार मचा हुआ है लोग बदहवास हैं प्रत्येक गाँव गमगीन है हर आँख नम है,अपनों का गम है अपनों को खो चुके लोगों की आँखे पथरा गई हैं सराज के लोग 30 जून 2025 की डरावनी व स्याह रात कभी नहीं भूल पाएंगे ऐसी रात सदियों तक याद रहेगी बच्चे छीन लिए माँ बाप छीन लिए बेकसूर लोगों को चंद सेकेण्ड में सुला दिया ताउम्र अपनों की याद आती रहेगी भयानक बाढ़ से पूरी कायनात कांप उठी है गाँव के सैकड़ो लोगों का एक साथ काल का ग्रास बन जाना बहुत बड़ी त्रासदी है रोंगटे खड़े हो जाते है कैसे यह प्रलय हुआ होगा आसूंओं का सैलाब निर्बाध बह रहा है असहनीय व दर्दनाक पीड़ा से जूझ रहे हैं,राहत शिविरों में रातें काटने को मजबूर हैं एक एक रात काटना दुशवार हो गया है, आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं भूखे प्यासे लोग अपनों को ढूंढ रहे हैं रो -रो कर आँखो का पानी सूख चूका है आँखों में सूजन हो गई है दिन रात एक आशा है की क़ब उनके अपने मिल जाएँ जो मलबे में दफन हो चुके हैं मीलों दूर बह चुके हैं एक एक दिन युग लग रहा है। तबाही का ऐसा मंजर लाशों का अंबार लगा गया सैलाब में बह चुके लोगों के शव नहीं मिल रहे हैं जो मलवे में फंसे है या कहीं बह कर क्षत विक्षत हो चुके होंगे । जून में प्रकृति ने तबाही की ऐसी इबारत लिखी है की सब कुछ तबाह हो गया तहस नहस हो गया जीवन पटरी से उत्तर गया है । कुदरत ने ऐसा मंजर दिखाया है की उबरने मे कई वर्ष लग जायेंगे पल भर मे आँखो के सामने सब कुछ बह गया । कुदरत ने जरा भी रहम नहीं किया बेरहम हो गई और गाँव का हर आँगन सूना कर दिया,गाँव की गलियों को वीरान कर दिया पूरे सराज को श्मशान बना दिया है किसी की नहीं बक्शा बच्चों से लेकर बुजुर्गो व महिलाओं को पल भर मे मौत की नींद सुला दिया । कुदरत ने ऐसी लीला रची है की आने वाली सात पीढ़ीयां भी नहीं भूल सकती । त्रासदी में घर के चिराग बुझ गए माताओं व बहनों के सुहाग उजड़ गए बहनों ने अपने भाई खो दिए हैं । कुदरत अब बहुत हीं तांडव कर रही है और लाशों का अंबार लगा रही है । सराज विधानसभा क्षेत्र के थुनाग,बगस्याड,देजी गांव,बाड़ा और सयाँज में तबाही का मंजर बहुत ही डरावना हो चूका है ।प्रशासन दिन रात सर्च ऑपरेशन कर रहा है । जान जोखिम में डाल कर सुरक्षा टीमें शवों को खोज रही हैं नौ लोगों बह गए थे जिनमे से चार लोगों के शव बरामद हो चुके है अभी पांच लोगों के शव नहीं मिल रहे हैं जब तक सराज के बाढ़ से क्षति से ग्रस्त गाँव के सभी लोग नहीं मिल जाते तब तक ऑपरेशन जारी रखना चाहिए हर आदमी अपनी भूमिका निभा रहा है सामाजिक संस्थाएं भी सहयोग कर रही हैं । शव मीलों दूर बह चुके हैं । कुदरत ने बहुत गहरे ज़ख्म दे दिए जिन्हे भरने में बहुत समय लगेगा । अपनों की याद ताउम्र सालती रहेगी । बरसात हर साल बेहरम होकर मौत बाँट रही है अगस्त के अंत तक पता नहीं कितने लोग काल का ग्रास बनेगें। कुदरत का कहर पता नहीं अभी कितनी जिंदगीयां लीलेगा । ईएमएस/13जुलाई2025