नई दिल्ली,(ईएमएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर रविवार को तीन दिवसीय दौरे पर चीन रवाना हो रहे हैं, जहां वे तियानजिन में आयोजित होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों की विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेंगे। यह यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब भारत और चीन के बीच 2020 की गलवान झड़प के बाद द्विपक्षीय संबंधों में तनाव बना हुआ है। यहां बताते चलें कि जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच इससे पहले कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुलाकात हो चुकी है, लेकिन गलवान के बाद यह पहली बार है जब वे चीन की जमीन पर आमने-सामने होंगे। यह यात्रा दोनों देशों के बीच संवाद बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। भारत-चीन संबंधों में गतिरोध को खत्म करने की कूटनीतिक कोशिशें पहले भी हो चुकी हैं। अक्टूबर 2024 में रूस के कजान में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पांच वर्षों बाद पहली द्विपक्षीय मुलाकात हुई थी। उस बैठक में पीएम मोदी ने स्पष्ट किया था कि भारत-चीन संबंधों की बुनियाद आपसी सम्मान, भरोसा और संवेदनशीलता पर टिकी होनी चाहिए। उसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी बीजिंग का दौरा कर कई जटिल मुद्दों पर चर्चा की। बीते महीने बीजिंग में हुई एससीओ की सुरक्षा परिषद सचिवों की बैठक में अजीत डोभाल ने आतंकवाद को लेकर दोहरे मापदंड पर सवाल उठाए और पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों – लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अल कायदा और आईएसआईएस – के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की थी। विदेश मंत्री जयशंकर की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह संकेत मिलता है कि भारत चीन के साथ संवाद का रास्ता खुला रखना चाहता है, लेकिन वह राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगा। इस यात्रा के दौरान यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोनों देश सीमाई गतिरोध को हल करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाते हैं या फिर स्थिति यथास्थिति बनी रहती है। हिदायत/ईएमएस 13जुलाई25