नई दिल्ली (ईएमएस)। प्लास्टिक में पाया जाने वाला एक खतरनाक रसायन डाय-2 एथाइलहेक्सिल थैलेट (डीईएचपी) दिल की बीमारियों का प्रमुख कारण बन रहा है। चिंता की बात यह है कि इस रसायन से संबंधित सबसे ज्यादा मौतें भारत में हो रही हैं। प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल को लेकर एक नया अध्ययन बेहद चौंकाने वाले तथ्य सामने लाया है। अमेरिका की न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी लैंगोन हेल्थ द्वारा किए गए इस अध्ययन में बताया गया है कि सिर्फ वर्ष 2018 में ही डीईएचपी के संपर्क से करीब 3.5 लाख लोगों की जान हृदय संबंधी बीमारियों के कारण गई। इनमें 1,03,587 मौतें अकेले भारत में हुईं, जो चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों से भी ज्यादा हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत प्लास्टिक से उत्पन्न स्वास्थ्य संकट की गंभीर चपेट में है। डीईएचपी का उपयोग आमतौर पर प्लास्टिक को लचीला और टिकाऊ बनाने के लिए किया जाता है। यह रसायन खासकर फूड पैकेजिंग, मेडिकल ट्यूब, ब्लड बैग्स, बोतलें और घरेलू प्लास्टिक कंटेनरों में पाया जाता है। जब ये वस्तुएं गर्म होती हैं या टूटती हैं, तो इनमें से सूक्ष्म प्लास्टिक कण डीईएचपी के साथ निकलकर शरीर में पहुंच जाते हैं। इससे दिल की धमनियों में सूजन, ब्लॉकेज, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, और साथ ही मोटापा, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. लियोनार्डो ट्रासांडे के अनुसार, डीईएचपी अकेला कारण नहीं है लेकिन इसका असर अन्य रसायनों के मुकाबले कहीं ज्यादा खतरनाक है। यह विश्लेषण 55 से 64 वर्ष की उम्र के लोगों के स्वास्थ्य डाटा पर आधारित है, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि असल मृत्यु संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि डीईएचपी से होने वाली मौतों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को साल 2018 में ही 510 अरब से लेकर 3.74 लाख करोड़ डॉलर तक का नुकसान हुआ। भारत, चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों में प्लास्टिक का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसके सुरक्षित प्रयोग और जागरूकता की भारी कमी है। सुदामा/ईएमएस 14 जुलाई 2025