नई दिल्ली(ईएमएस)। भारतीय वायुसेना को लड़ाकू विमान मिग-21 को लोग उड़ता ताबूत कहने लगे थे। वजह ये थे कि इससे 400 हादसे हुए और करीब 200 पायलटों की मौत हो गई। अब तारीख और दिन तय हो चुका है...जब भारतीय वायुसेना अपने पुराने और ऐतिहासिक मिग-21 लड़ाकू विमान की तीसरी ‘नंबर 23 स्क्वाड्रन (पैंथर्स)’ को अंतिम विदाई देगी। इस बाबत 19 सितंबर 2025 को राजधानी दिल्ली से सटे बल के चंडीगढ़ एयरबेस पर एक भव्य समारोह आयोजित किया जाएगा। रक्षा अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। वायुसेना ने मौजूदा साल के अंत तक उसके जंगी बेड़े में शामिल मिग-21 विमानों की चार स्क्वाड्रन (कुल करीब 72 लड़ाकू विमान शामिल) को सेवानिवृत्त करने का निर्णय लिया था। पूर्व में इसकी दो स्क्वाड्रन (नंबर-4 उरियल्स और नंबर 51 स्वार्ड ऑर्म्स) वायुसेना की सेवा से बाहर की जा चुकी हैं। 23 स्क्वाड्रन वर्तमान में सूरतगढ़ में तैनात है। इसके अलावा मिग-21 की एक अन्य स्क्वाड्रन नंबर 3 कोब्रास राजस्थान के नाल एयरबेस पर तैनात है। मौजूदा साल में मिग-21 लड़ाकू विमानों की चारों स्क्वाड्रन के सेवा से बाहर होने के बाद वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की कुल स्क्वाड्रन की संख्या 29 रह जाएगी। जो 1965 के युद्ध से भी कम है। जानकारों की राय में चीन और पाकिस्तान की सीमा से दो मोर्चों पर मिल युद्ध की चुनौती के बीच वायुसेना को कुल करीब 42 स्क्वाड्रन होनी चाहिए। भारत ने मिग-21 लड़ाकू विमान को चीन के साथ 1962 में हुई लड़ाई के ठीक अगले साल 1963 में तत्कालीन सोवियत संघ (वर्तमान में रूस) से खरीदकर वायुसेना में शामिल किया था। जिसके बाद करीब छह दशक से लंबे अपने सेवाकाल में यह लड़ाकू विमान 1965, 1971 और 1999 के युद्ध और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक और 2025 की ऑपरेशन सिंदूर की कार्रवाई में प्रमुखता से शामिल रहा है। साथ ही ये वायुसेना का एकलौता लड़ाकू विमान है, जिसने 62 वर्षों तक सेवा दी है। जो विमानन क्षेत्र का एक अविश्वसनीय रिकॉर्ड बन गया है। बालाकोट एयर स्ट्राइक में तत्कालीन विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान ने इसी मिग-21 विमान से पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान को मार गिराया था। वहीं, 1967 से इस विमान का भारत में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा लाइसेंस के आधार पर उत्पादन जारी था। मिग-21 बायसन के रूप में इसका उन्नत संस्करण भी तैयार किया गया था। भारत ने 650 मिग-21 विमानों का प्रयोग किया है। जिसमें 600 का उत्पादन एचएएल ने किया है। शुरुआती दौर में मिग-21 की ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा। लेकिन बीते कुछ दशकों में एक के बाद एक हुए हादसों की वजह से इसे उड़ता ताबूत यानी फ्लाइंग कॉफिन तक कहा जाने लगा। 62 वर्षों के दौरान करीब 400 मिग-21 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए, 200 से ज्यादा पायलट और 50 नागरिक मारे गए। 2010 के बाद भी मिग-21 लड़ाकू विमानों की 10 दुर्घटनाएं सामने आई थीं। बताते चलें कि वायुसेना की योजना मिग-21 लड़ाकू विमानों को स्वदेशी तेजस मार्क1ए विमान से बदलने की थी। लेकिन एचएएल द्वारा तेजस विमानों की डिलीवरी में हो रही देरी की वजह से बल को लंबे वक्त तक मिग-21 का प्रयोग करना पड़ा। वीरेंद्र/ईएमएस/23जुलाई2025 ---------------------------------