सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे की आधी अधूरी जांच पुलिस की भूमिका कटघरे में, भोपाल में लिखी गई खात्मे की पटकथा भोपाल/जबलपुर (ईएमएस) । एमपी अजब है सबसे गजब है, पर्यटन से जुड़े एक विज्ञापन का स्लोगन इन दिनों प्रदेश के आबकारी और पुलिस विभाग बीच अचानक बने सौहाद्र के भाव को देख बिल्कुल सटीक बैठ रहा हैं। दरअसल मामला हालहीं में जबलपुर में वायरल हुए एक वीडियों के बाद शराब ठेकेदार द्वारा की गई शिकायत, शिकायत पर जबलपुर पुलिस की चुप्पी, मामले में आबकारी विभाग द्वारा की गई आधी अधूरी जांच और पूरे मामले में अंतत: लीपापोती का प्रयास करने भोपाल में लिखी गई खात्मे की पटकथा का हैं जिसे लेकर आबकारी, पुलिस, जिला प्रशासन और शराब कारोबार से जुड़े प्रदेश के तमाम ठेकेदारों के जहन में उठ रहे सवालों का है जिससे आबकारी और पुलिस विभाग में सवालों का मानसून सा आया हुआ हैं। विभागीय सूत्रों मुताबिक पूरा मामला आबकारी विभाग में जबलपुर के शीर्ष पद पर बैठे अधिकारी द्वारा ठेकेदारों से एमआरपी के एवज में पहले नजराने, फिर शुकराने और वर्तमान में जबराने से जुड़ा हुआ हैं जिसकी मलाई संस्कारधानी के पुलिस, प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों लेकर राजधानी तक बंट रहीं है। सूत्रों के अनुसार इसमें विराम लगने के बाद नौबत हाथापाई तक आ गई। जब एक ठेकेदार ने शिकायत पुलिस और आबकारी विभाग के अधिकारियों के साथ प्रदेश शासन तक पहुंचाया तो विभागों से लेकर ठेकदारों तक सभी दो पक्षों में बंट गए। जबलपुर के विवादों से घिरे सहायक आयुक्त आबकारी की पत्नी जबलपुर से हालहीं में भोपाल स्थानांतरित महिला आईपीएस अधिकारी की भूमिका इसमें अहम बताई जा रही हैं। जिसके चलते अब तक ठेकेदार द्वारा शिकायत के बावजूद न तो संबंधित बरेला थाना पुलिस विवेचना कर पाई न हीं एफआईआर दर्ज होने के दूर-दूर तक कोई संकेत दिखाई दे रहे हैं। आलम ये हैं कि हालहीं में विवादित सहायक आयुक्त आबकारी के भोपाल दौरे में मामले के खात्मे की पटकथा वजनदार पद पर बैठे व्यक्ति के आबकारी ठेकों में खासा दखल रखने वाले दो रसूखदार भाईयों ने लिख दी हैं। बताया जा रहा हैं कि यह तय हुआ हैं कि मामले में एफआईआर किसी भी कीमत पर दर्ज नहीं की जाएगी, मामले की जांच में भी महज रस्म अदायगी होगी और धीरे से सहायक आयुक्त आबकारी को अन्य जिले में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। शुरु में आबकारी और पुलिस विभाग के दूसरे खेमे के अधिकारी भी इस बात को नहीं स्वीकार कर पा रहे थे लेकिन जिस तरह से मामले की जांच में मुख्य शिकायतकर्ता और गवाह के बयान की अनदेखी कर आधी-अधूरी जांच की गई उससे अब उनका संदेह भी पुख्ता हो गया हैं कि भोपाल में लिखी गई पटकथा शब्दश: सत्य होती जा रही हैं। तीसरी बार विवादों में घिरे संजीव दुबे जबलपुर के बरेला में सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे की कथित गुंडागर्दी का वीडियो वायरल होने के बाद ठेकेदार द्वारा की गई शिकायत से सुर्खियों में आए दुबे पहली बार विवादों में नहीं घिरे हैं। बताया जा रहा हैं कि विवादों से उनका पुराना नाता रहा हैं। इस बार संजीव दुबे पर अवैध वसूली नहीं देने पर दुकान पर घुसकर कर्मचारियों के साथ मारपीट करने का आरोप लगा है लेकिन इससे पूर्व सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे लगभग अपनी हर पोस्टिंग में विवादों से घिरे रहे है। इंदौर में 41 करोड़ के ट्रैजरी चालान में घोटाले की इनपर ईडी की जांच चल रही है। जबकि धार जिले में भी ठेकेदार से अवैध वसूली करने का इनका ऑडियो वायरल हुआ था। जिसके चलते इन्हे धार से हटा दिया गया। अब जबलपुर में एक बार फिर सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे विवादों में आ गए है। यह बताई जा रही नजराने, शुकराने और जबराने की कहानी ठेकेदारों द्वारा बताया जा रहा हैं कि दुबे ने पहले ठेकेदारों से कथित तौर पर 2 करोड़ 80 लाख रुपए का नजराना तय किया। बड़ी मशक्कत के बाद किसी तरह इस राशि पर ठेकेदारों ने सहमति दर्ज कराई। राशि के आबकारी, प्रशासन और पुलिस के शीर्ष पदों पर संस्कारधानी से राजधानी तक पहुंचाने का दावा कर ठेकेदारों को एमआरपी से हटके मनमाने दामों पर शराब बेचने की छूट दे दी गई। ठेकेदार नजराना दे ही रहे थे कि अचानक ठेकेदारों पर कार्रवाई की गाज गिर गई जो कुछ दिन चलने के बाद जब थमी तो पुन: श्री दुबे नजराने की जगह उक्त राशि शुकराने पर देने की बात कहने लगे। प्रशासन की कार्रवाई थमी ही थी कि मामला हाईकोर्ट पहुंच गया, जिसके बाद ठेकेदारों ने मनमाने रेट पर शराब बेचने से तौबा कर एमआरपी पर शराब बेचने के साथ कोई नजराना, शुकराना न देने का निर्णय ले लिया जिससे ठेकेदारों और श्री दुबे के बीच ठन गई। अभी तक नजराना फिर शुकराना मांग रहे दुबे फिर जबराने पर अड़ गए जिसके चलते बरेला जैसी घटना सामने आ गई। ठेकेदार दावा कर रहे हैं कि इस मामले में जिस तरह प्रशासन और पुलिस चुप्पी साधे हुए हैं और मामले में एफआईआर तो दूर की बात विवेचना तक नहीं हो रही हैं वह इस बात की बानगी दे रहा हैं कि वितरण सबका साथ सबका विकास की तर्ज पर हो रहा था। इसलिए दो खेमों में बंटे विभाग, ठेकेदार इस मामले में ठेकेदारों के बंटने की वजह विभाग का बदस्तूर जारी नजराने, शुकराने और जबराने की परंपरा बताई जा रही हैं। ठेकेदारों का एक खेमा अब भी सुविधा शुल्क देने तैयार हैं बल्कि दूसरा खेमा इस प्रथा को बंद करने के पक्ष में हैं वहीं प्रशासन, पुलिस और आबकारी विभाग के दो खेमों में बंटने की वजह यह बताई जा रही हैं कि एक धड़ा जहां मामले में निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की बात कर रहा हैं वहीं दूसरा धड़ा मामले में बिना किसी कार्रवाई के पटाक्षेप के पक्ष में हैं।