मुंबई, (ईएमएस)। जल जीवन मिशन योजना के एक युवा ठेकेदार हर्षल पाटिल ने महाराष्ट्र सरकार से बकाया पैसा न मिलने पर आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा लिया। हर्षल की मौत के बाद राज्य भर के ठेकेदारों की समस्याएँ सामने आई हैं। ठेकेदार वर्ग में गहरी नाराजगी है क्योंकि राज्य सरकार की ओर से राज्य भर के ठेकेदारों का 90,000 करोड़ रुपये का भुगतान लंबित है। राज्य सरकार द्वारा समय पर काम के बिलों का भुगतान न किए जाने के कारण ठेकेदारों को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। ठेकेदार वर्ग यह अपेक्षा व्यक्त कर रहा है कि राज्य सरकार ठेकेदारों के लंबित भुगतानों पर गंभीरता से विचार करे, धनराशि का समुचित उपयोग करे और समय पर काम के बिलों का भुगतान करके उनकी माँगों को पूरा करे। नाम न छापने की शर्त पर एक ठेकेदार ने बताया कि सरकार उन्हें समय पर भुगतान नहीं करती, लेकिन जब प्राकृतिक आपदाएँ या अन्य संकट आते हैं, तो ठेकेदारों का बकाया पैसा तुरंत वहाँ भेज दिया जाता है। इसके कारण, ठेकेदारों को मिलने वाले भुगतान में और देरी हो रही है। ठेकेदार ने गंभीर आरोप लगाया है कि हाल ही में शुरू हुई लड़की बहन जैसी योजनाओं के कारण ठेकेदारों का बकाया पैसा वहाँ लगाया जा रहा है। परिणामस्वरूप, बिना धन के भी काम चल रहा है और काम पूरा होने के बाद भी, ठेकेदारों को उनके काम का भुगतान नहीं मिल रहा है। - ब्याज सहित पैसे की माँग ठेकेदारों की मुख्य माँग यह है कि यदि सरकार निर्धारित अवधि के भीतर उनका बकाया भुगतान नहीं करती है, तो सरकारी नियमों के अनुसार, उन्हें ब्याज सहित भुगतान किया जाए। इससे ठेकेदारों को हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई होगी और उन्हें समय पर धन मिलेगा। - मराठी ठेकेदारों के साथ अन्याय? मराठी का मुद्दा इस समय मुंबई और राज्य में ज्वलंत है। मुंबई जैसी आर्थिक राजधानी में, मराठी ठेकेदारों की संख्या अमराठी ठेकेदारों से कम है। इस कारण, अमराठी ठेकेदारों को अक्सर पक्षपातपूर्ण रेटिंग दी जाती है और मराठी ठेकेदारों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है, ठेकेदार ने यह भी गंभीर आरोप लगाया। इससे पता चलता है कि स्थानीय मराठी उद्यमियों को व्यापार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले भी, आर्थिक तंगी और बकाया कर्ज के चलते दो ठेकेदारों द्वारा आत्महत्या करने की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ हुई थीं। उस समय भी चर्चा थी कि बिना धन का प्रावधान किए टेंडर जारी किए जा रहे थे। मौजूदा ठेकेदारों की पीड़ा से साफ़ है कि यह स्थिति आज भी बनी हुई है। स्वेता/संतोष झा- २५ जुलाई/२०२५/ईएमएस