बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाया गया विशेष मतदाता गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर पूरा हो चुका है। बिहार विधानसभा से लेकर संसद तक एसआईआर का विरोध जारी है। हालांकि विपक्ष के तीखे विरोध के बीच चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि एसआईआर बिहार तक ही सीमित नहीं रहेगा। अगले साल पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। सिर्फ असम में भाजपा सरकार है। शेष राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं। वे अभी से चौकन्नी हो गई हैं और एसआईआर को एक राष्ट्रीय मुद्दा बना देना चाहती हैं। वास्तव में विपक्ष रणनीति के तहत एसआईआर पर देशवासियों को गुमराह कर रहा है। सड़क से संसद तक वो एसआईआर का विरोध कर रहा है, और चुनाव आयोग पर अमर्यादित बयानबाजी से लेकर आरोप तक लगा रहा है। जबकि तस्वीर का दूसरा पक्ष यह है कि बिहार में एसआईआर का विरोध कर रही पार्टियों ने भी अपने बूथ लेवल एजेंट यानी बीएलए को बढ़-चढ़कर काम में लगाया था। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 23 जून को एसआईआर प्रक्रिया शुरू होने के पहले कांग्रेस ने केवल 8586 बीएलए लगाए थे। लेकिन 25 जुलाई को प्रक्रिया समापन के वक्त कांग्रेस के 17549 बीएलए नियुक्त रहे। कांग्रेस ने एसआईआर प्रक्रिया का विरोध करने के बावजूद इसके लिए 105 फीसदी बीएलए बढ़ाए। भाजपा के 53338 बीएलए प्रकिया का हिस्सा बने। राष्ट्रीय जनता दल के 47506 बीएलए प्रक्रिया में शामिल हुए। जनता दल यूनाइटेड के 36550 बीएलए शामिल हुए। लेफ्ट पार्टियों ने एसआईआर प्रक्रिया की शुरुआत में दिलचस्पी नहीं दिखाई लेकिन आखिर तक इन पार्टियों ने भी बीएलए की संख्या बढ़ाई। बिहार में 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के कुल 1 लाख 60 हजार 813 बीएलए गहन मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया का हिस्सा बने। किसी तरह की अनियमितता होने पर विपक्षी दलों के कार्यकर्ता तुरंत अपना विरोध कर सकते हैं, लेकिन अब तक एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया है जहां विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं ने इसकी शिकायत की हो। केवल विपक्ष के नेता ही इस तरह की बात कर सनसनी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्ष का असली चेहरा और चरित्र यही है। वो एक और देशवासियों को गुमराह करने और संवैधानिक संस्थाओं की साख को धूमिल करने का कुकृत्य करता है, तो वहीं दूसरी और कानून प्रक्रियाओं में बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लेता है। बिहार ही नहीं देशभर में फर्जी और अयोग्य मतदाताओं को हटाने के मांग राजनीतिक दल समय समय पर उठाते रहे हैं। बिहार के सीमांचल के इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला वर्षों से सामने आ रहा है। पिछले 30 वर्षों में पूरे सीमांचल का समीकरण बदल गया है। किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में अल्पसंख्यकों की आबादी 40 फीसदी से 70 फीसदी तक हो चुकी है। यही कारण है कि वर्षों से इस इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठियों की रोक की मांग उठती रही है। कई इलाकों से हिंदुओं के पलायन की भी खबर उठी थी। केंद्र सरकार ने जब पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात कही थी तो बिहार में इस इलाके से भी विरोध के सुर उठे थे। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बिहार के 99.8 फीसदी यानी 7.23 करोड़ मतदाता इस रिवीजन प्रक्रिया में कवर हो चुके हैं। दावा किया जा रहा है कि पुनरीक्षण में बिहार में कम से कम 61 लाख मतदाताओं के नाम कट सकते हैं। इसमें 21.6 लाख मतदाताओं का निधन हो चुका है। 31.5 लाख मतदाता स्थाई तौर पर दूसरे स्थानों-शहरों में बस गए हैं। हैं। लगभग सात लाख मतदाताओं के नाम दो स्थानों की मतदाता सूची में दर्ज हैं। बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं। विधानसभाओं में कुछ सौ मतदाताओं का अंतर ही जीत-हार पर असर डाल देता है। साल 2020 के विधानसभा चुनावों में करीब बीस प्रतिशत सीटों पर जीत और हार का अंतर महज ढाई फीसद तक ही था। इनमें से 17 सीटों पर जीत तो एक प्रतिशत के कम वोट से ही हुई थी। अगर गहन पुनरीक्षण में इन मतदातओं के नाम नहीं काटे गए तो उनके नाम पर चुनावी नतीजों को बदला जा सकता है। राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव चुनाव बहिष्कार की धमकी दे रहे हैं। हालांकि देश की राजनीति के लिए यह कोई पहली बार नहीं है जब किसी राजनीतिक दल ने चुनाव बहिष्कार की धमकी दी हो। इससे पहले भी जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में अनेक बार कुछ राजनीतिक दलों और अतिवादी संगठनों ने चुनाव के बहिष्कार की धमकी दी। आपातकाल के बाद भी प्रमुख विपक्षी दलों ने चुनाव के बहिष्कार करने की बात की थी। हालांकि इसके बावजूद वहां चुनाव हुए और उन सभी लोगों ने चुनाव में हिस्सा भी लिया और जीत हासिल की। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर का मुद्दा अपनी स्टाइल में उठा रहे हैं। वो केंद्र की बीजेपी सरकार पर वोटों की चोरी का आरोप लगा रहे हैं। वोटिंग में गड़बड़ी का इल्जाम तो राहुल गांधी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से ही लगाने लगे थे, लेकिन अब ज्यादा जोरदार तरीके से उसे उठा रहे हैं। राहुल गांधी महाराष्ट्र और कर्नाटक में वोटिंग में गड़बड़ी के आरोप लगा रहे हैं, लेकिन बाकी चुनावों के मामले चुप्पी साध लेते हैं। राहुल गांधी पिछले कई दिनों से चुनाव आयोग पर तल्ख, अमर्यादित और अनर्गल टिप्पणियां कर रहे हैं। आयोग पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं। असल में राहुल गांधी चुनाव आयोग और चुनाव मशीनरी को दबाव में लेना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुले मंच से यह घोषणा कर चुकी हैं कि वे बंगाल में एसआईआर नहीं होने देंगी। विपक्ष के कई दूसरे नेता भी एसआईआर का विरोध कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो लोकसभा चुनाव के दौरान मोहब्बत की दुकान, संविधान की रक्षा और संविधान की कॉपियां लेकर देशभर में घूमते थे। और भाजपा पर संविधान विरोधी होने और संविधान बदलने का आरोप लगाते थे। यही इनका मूल चरित्र है। 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने भाजपा के सत्ता में आने के बाद संविधान बदलने का खतरा होने का मुद्दा उठाया था। इससे कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली थी। उसी तरह विपक्ष लोगों के बीच वोट खोने का डर और चुनाव में गड़बड़ी का मुद्दा उठाकर बढ़त हासिल करना चाहता है। इससे वह सत्ता पक्ष पर दबाव बनाने के साथ-साथ जनता के बीच अपनी पकड़ भी मजबूत करना चाहता है। यदि जनता के एक प्रतिशत लोगों के मन में भी अपना वोट खोने का डर पैदा हो जाता है तो इससे पूरा चुनावी गणित बदल सकता है। कांग्रेस-राष्ट्रीय जनता दल पूरी तैयारी के साथ इसी रणनीति पर काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं। चुनाव आयोग ने केवल दूसरी जगह चले गए मतदाताओं, मृतकों और एक ही व्यक्ति के दो स्थानों पर मतदाता सूची में शामिल होने वाले मतदाताओं का नाम ही मतदाता सूची से हटाने की बात कही है, ऐसे में एसआईआर का विरोध पूरी तरह से अतार्किक है। चुनाव आयोग नियम कानून के तहत वोटर लिस्ट अपडेट कर रहा है। यह उसकी डयूटी का हिस्सा है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए स्वच्छ और स्पष्ट मतदाता सूची जरूरी है। वास्तव में, मतदाता सूची पर विपक्ष का हंगामा केवल राजनीतिक स्टंट कर जनता का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश है। विपक्ष चुनावों में अपनी हार को देखकर अभी से बहाने की तलाश कर रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन और चुनाव आयोग पर बयानबाजी उसी का नतीजा है। (स्वतंत्र पत्रकार) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 29 जुलाई /2025