भारत क़े करीब-करीब हर राज्य क़े हर शहरी क्षेत्र क़े हर शहर व ग्रामीण क्षेत्र के हर गांव में अगर हम देखेंगे तो हमेंआवारा या लावारिस कुत्ते कहीं काम कहीं अधिक संख्या में जरूर दिखेंगे। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र, यह मानता हूं कि इससे शायद किसी नागरिक को कोई आक्षेप नहीं होगा। परंतु इन आवारा कुत्तों द्वारा जब नागरिकों की बस्ती में आतंक फैलाना, पैदल चलने वालों को काटना, गाड़ी वालों के पीछे दौड़कर काटने की कोशिश करना जैसी गतिविधियां होती है तो इससे रेबीज नामक बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है, वह भी अक्सर यह घटनाएं बच्चों में बुजुर्गों के साथ अधिक हो रही है, जो रेखांकित करने वाली बात है। यदि इस तरह की घटनाएं हो रही हो तो इसके लिए भारतीय कानून में इन पशुओ जानवरों की रक्षा वह नियंत्रण के अनेकों कानून बने हुए हैं जैसे पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम 2001, भारतीय न्याय संहिता (नया आईपीसी) की धारा 325,326, पशु कल्याण बोर्ड इत्यादि अनेक अधिनियम नियम व वैधानिक निकाय हैं परंतु विशेषकर कुत्तों पर नियंत्रण के लिए स्थानीय निकायों जैसे नगरपरिषद नगरपालिका नगरनिगम महानगरपालिका इत्यादि जवाबदार हैं, इन्हें अब जागना जरूरी है। इस विषय पर आज हम चर्चा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि सोमवार दिनांक 28 जुलाई 2025 को माननीय सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने भारत के पेपर टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक खबर जिसमें बताया गया था कि दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में 30 जून 2025 को एक 6 वर्ष की बेटी को रेबीज बीमारी से ग्रस्त कुत्ते द्वारा काटा गया, और इलाज के दौरान 26 जुलाई 2025 को उसकी मृत्यु हो गई इस खबर को पेपर में पड़कर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने इसपर स्वतः संज्ञान लेकर, एक याचिका दाखिल कर, मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने का आदेश जारी किया है, जिसकी चर्चा विस्तार से हम नीचे पैराग्राफ में करेंगे।इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, पूरे भारत की स्थानीय निकायों जैसे नगरपरिषद नगर पालिका नगरनिगम महानगर पालिका इत्यादि को पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम 2001 का सख़्ती से पालन करना समय की मांग है। साथियों बात अगर हम सुप्रीम कोर्ट के दो सदस्सीय बेंच द्वारा एक प्रसिद्ध न्यूज़पेपर में कुत्ते क़े काटने पर 6 वर्ष की बालिका की मृत्यु का स्वतःसंज्ञान के इस आदेश को विस्तार से जानने की करें तो, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अखबार में प्रकाशितसमाचार आवारा कुत्तों से त्रस्त शहर,बच्चे भुगत रहे कीमत पर स्वतःसंज्ञान लिया है। अदालत ने एक रिट याचिका दर्ज की है, जिसमें यह संज्ञान लिया गया है कि किस प्रकार नवजात शिशु, बच्चे और बुज़ुर्ग अवैक्सीनेटेड (टीकाकरण रहित) आवारा कुत्तों के काटने के कारण रेबीज जैसी घातकबीमारी का शिकार हो रहे हैं। बेंच ने खबर पर संज्ञान लेते हुए आदेश जारी करते हुए कहा कि सप्ताह की शुरुआत हो चुकी है और हमें सबसे पहले इस बेहद चिंताजनक और खतरनाक समाचार का स्वतः संज्ञान लेना चाहिए, जो आज के टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली संस्करण में ‘सिटी होउंडेड बाय स्ट्रास एंड किड्स पे प्राइस’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। समाचार में कुछ चौंकाने वाले और परेशान करने वाले आंकड़े और तथ्य शामिल हैं। हर दिन, शहरों और बाहरी इलाकों में सैकड़ों कुत्तों के काटने के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे रेबीज फैल रहा है और अंततः नवजात शिशु, बच्चे और बुज़ुर्ग इस भयानक बीमारी का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने कहा रजिस्ट्री इस याचिका को स्वतः प्रेरित याचिका के रूप में दर्ज करे। यह आदेश और समाचार रिपोर्ट माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उपयुक्त आदेशों के लिए प्रस्तुत की जाए। इस गंभीर स्थिति का सबसे ज्यादा असर छोटे बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ रहा है, जिनकी रेबीज से मौतें हो रही हैं। बेंच ने इन मौतों को डरावना और परेशान करने वाला बताया। मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रर को निर्देश दिया है कि इस पूरे मामले को एक स्वतःसंज्ञान याचिका के रूप में पंजीकृत किया जाए। साथ ही, संबंधित आदेश और समाचार रिपोर्ट को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है। साथियों बात अगर हम इस रेबीज नामक बीमारी की करें तो, बता दें कि रेबीज एक गंभीर वायरल बीमारी है, जो आमतौर पर संक्रमित जानवरों की लार से इंसानों में फैलती है। दुनियाँ भर में रेबीज के अधिकांश मानवीय मामलों के लिए संक्रमित कुत्ते जिम्मेदार हैं। इसके अलावा, चमगादड़, लोमड़ी, रैकून, कोयोट और स्कंक जैसे जंगली जानवर भी रेबीज फैला सकते हैं। रेबीज के लक्षण आमतौर पर काटने के 2-3 महीने बाद दिखाई देते हैं, लेकिन यह 1 सप्ताह से 1 वर्ष या उससे भी अधिक समय तक भिन्न हो सकता है। शुरुआती लक्षण फ्लू जैसे हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं- बुखार, सिरदर्द दर्द। साथियों बातअगर हम स्वतःसंज्ञान के इस आदेश को गहराई से समझने की करें तो,आए दिन देश में आवारा कुत्तों के आतंक की खबरें देखने और सुनने को मिलती हैं। आवारा कुत्तों का सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग और बच्चे हो रहे हैं। कई लोगों की मौत भी हो चुकी है, बल्कि रेबीज जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। ऐसी घटनाओं को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने आवारा कुत्तों के आतंक को कम करने के लिए खाना स्कीम शुरु की है। अब आवारा कुत्तों के मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वतः संज्ञान लिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में आवारा कुत्तों के हमलों ने लोगों की नींद उड़ा दी है। एक रिपोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान खींचा। इस खबर में बताया गया कि शहरों और बाहरी इलाकों में हर दिन सैकड़ों लोग आवारा कुत्तों के शिकार हो रहे हैं। इन हमलों से रेबीज जैसी जानलेवा बीमारी फैल रही है, जिसका सबसे ज्यादा खतरा मासूम बच्चे और बुजुर्ग हो रहे हैं। इस मुद्दे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले को उठाया।बेंच ने इस खबर को ‘बेहद परेशान करने वाला‘ बताया। जस्टिस ने कहा कि यह खबर बहुत डरावनी है। हर दिन सैकड़ों लोग कुत्तों के काटने से पीड़ित हैं। रेबीज की वजह से छोटे बच्चे और बुजुर्ग अपनी जान गंवा रहे हैं। उन्होंने एक दुखद घटना का जिक्र किया, जिसमें दिल्ली के रोहिणी इलाके में 30 जून को एक 6 साल की बच्ची को एक रेबीज बीमारी से ग्रस्त कुत्ते ने काट लिया। इलाज के बावजूद बच्ची की 26 जुलाई को उसकी मृत्यु हो गई। डॉक्टरों ने शुरू में उसकी बिगड़ती हालत को सामान्य बुखार समझा, जिससे सही समय पर इलाज नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया। यह कदम तब उठाया गया, जब कोर्ट ने देखा कि नगर निगम और प्रशासन आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनके टीकाकरण में नाकाम रहे हैं।यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर ध्यान दिया है। बता दें 15 जुलाई 2025 की बेंच ने भी आवारा कुत्तों को खाना खिलाने की जगहों को लेकर चिंता जताई थी। कोर्ट का कहना है कि जानवरों के प्रति दया और लोगों की सुरक्षा में संतुलन जरूरी है। अब उम्मीद है कि इस मामले में जल्द सख्त कदम उठाए जाएंगे, ताकि मासूम बच्चों और बुजुर्गों की जान बचाई जा सके।भारतीय दंड संहिता की धारा 428 में 10 रूपए से कम मूल्य के पशु को मारना या अपंग करना शामिल था, जबकि धारा 429 में 50 रूपए या उससे अधिक मूल्य के पशु को मारना या अपंग करना शामिल था।भारतीय न्याय संहिता में, इन अपराधों को अब धारा 325 और 326 में शामिल किया गया है, जो पशुओं को नुकसान पहुंचाने से संबंधित हैं, लेकिन अब मूल्य सीमा का उल्लेख नहीं है, बल्कि सभी प्रकार के पशुओं को शामिल किया गया है। साथियों बात अगर हम 22 जुलाई 2025 को संसद में इससे संबंधित एक सवाल का जवाब देने की करें तो केंद्रीय मंत्री द्वारा 22 जुलाई को संसद में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष कुत्ते के काटने के कुल मामलों की संख्या 37,17,336 थी, जबकि संदेहास्पद मानव रेबीज मौतें 54 थीं।उन्होंने कहा कि आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी नगर पालिकाओं की है तथा वे उनकी आबादी को नियंत्रित करने के लिए पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम लागू कर रहे हैं।उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 को अधिसूचित किया है,जो आवारा कुत्तों के बधियाकरण और एंटी-रेबीज टीकाकरण पर केंद्रित कदमों के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके मंत्रालय ने नवंबर 2024 में राज्यों को एक परामर्श जारी किया था, जिसमें उनसे स्थानीय निकायों के माध्यम से एबीसी कार्यक्रम और संबंधित गतिविधियों को लागू करने के लिए कहा गया था, ताकि आवारा कुत्तों के हमलों से बच्चों, विशेष रूप से छोटे बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत में रेबीज बीमारी से ग्रस्त आवारा कुत्तों के काटने से बच्चे व बुजुर्ग शिकार हो रहे हैं-सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 2025 को स्वतःसंज्ञान लिया 6 वर्ष की बच्ची को रेबीज बीमारी ग्रस्त कुत्ते ने काटा- न्यूज़पेपर में खबर को पढ़कर सुप्रीम कोर्ट बेंच ने स्वतः संज्ञान लिया-याचिका दाखिल होगीपूरे भारत की स्थानीय निकायों (नगरपरिषद,नगरपालिका नगर निगम महानगर पालिका)को पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम 2001 का सख़्ती से पालन करना समय की मांग। .../ 31 जुलाई /2025