24 जुलाई 2025 को भारत एवं यूके के बीच द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं इंग्लैंड के प्रधानमंत्री श्री कीर स्टारमर की उपस्थिति में हुई भारत के साथ यह द्विपक्षीय मुक्त व्यापार ठीक नहीं है क्योंकि इंग्लैंड की आर्थिक नीति ने भारत क़ो गुलाम बना दिया था और अंग्रेजों ने देश पर शासन किया मेरे लिए देश सबसे ऊपर है और हम देश के स्वाभिमान से क़ोई भी समझौता नहीं कर सकते है हमें उनके साथ कभी व्यापार नहीं करना चाहिए जिसने देश क़ो गुलाम बनाया हों हम अपने चीजों क़ो खुद बना सकते हैं जों गाँधी जी का संदेश रहा है हमें अपने वीर शहीदों क़ो याद करना चाहिए जिसने अपने प्राण देश क़ो गुलामी से बचाने के लिए शहीद हों गए देश की गुलामी भी ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार से हुई थी उनकी विदेश नीति ठीक नहीं है जब भारत अंग्रेजों का गुलाम बना तो इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप अंग्रेजों द्वारा भारत पर अपने औद्योगिक अर्थव्यवस्था को लादना, भारत में पुराने देशी दरबारों के संरक्षण का लोप, मशीन उद्योगों की शुरूआत, विदेशी शासन की भारत में स्थापना और उसका राजनीतिक दबाव, बिट्रेन की आर्थिक नीति जिसके तहत उसने भारत को मूल रूप से कृषि प्रधान बनाए रखने की कोशिश की, 1813 ई. का चार्टर एक्ट इत्यादि। अर्थशास्त्र का एक आधारभूत सिद्धांत है कि सहज श्रम से या औद्योगिक तकनीकों से वस्तुओं के उत्पादन में अपेक्षाकृत कम खर्च होता है। इस तरह मशीन उद्योगों के द्वारा कम समय में अधिक और सस्ते मालों की बिक्री प्रारंभ हुई, जिससे हस्तशिल्प से निर्मित वस्तुओं की मांग तथा बिक्री में कमी आई।मशीनीकरण से नुकसान हुआ जैसे अंग्रेजी सत्ता के राजनीतिक दबाव व विदेशी मशीन उद्योगों के सस्ते उत्पादनों के कारण हुआ। इसके परिणामस्वरूप उद्योगों के कर्मचारी की जीविका का साधन नष्ट हो गया। यद्यपि 1850 ई. के पश्चात भारत में आधुनिक उद्योगों की स्थापना भी हुई, परन्तु इतनी तेजी से नहीं कि बेरोजगारी और बर्बादी के कगार पर पहुंचे मजदूर को पूर्ण रोजगार मिल जाए।भारतीय सामान अपने द्वारा निर्मित उत्कृष्ट किस्म की वस्तुओं को विदेश भेजते थे तो वहॉं भी केवल अभिजात और कुलीन वर्ग के लोग ही साधारणतया उसे खरीद पाते थे। इस प्रकार की सीमित मंडी तब और भी सीमित हो गई जब भारतीय वस्तुओं के प्रति विदेश में अवरोधक कानून बनाए जाने लगे। इसका भारतीय उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ा। रोजमर्रा की आवश्यकताओं का उत्पादन में भारतीय उत्पादन के विकास के लिए आवश्यक था, लेकिन इसे प्राथमिकता नहीं मिली।ब्रिटेन तथा अन्य देशों में मशीन से निर्मित सस्ती वस्तुओं की बाढ़ भारत के ग्रामीण इलाकों में हस्तशिल्प के पतन का मूल कारण था। रेलवे तथा परिवहन के अन्य साधनों के विकास से इस बाढ़ को फैलने में मदद मिली, क्योंकि अब ग्रामीण लोगों की पहुंच भी विदेशों में उत्पादित सस्ती वस्तुओं तक होने लगी। कारखानों में विकसित उत्पादन की सस्ती और लाभकारी तकनीक का मुकाबला हमारा सभी उद्योग बन्द हो गई और प्रायः नष्ट हो गई। औद्योगिक क्रांति का दौर में इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप भारतीय उद्योगों का जम कर विनाश हुआ। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इंग्लैंड के उत्पादन को भारत में खपाने का प्रयास किया। 1813 ई. के कम्पनी चार्टर एक्ट के द्वारा जब भारत में कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को लगभग समाप्त कर दिया गया तो भारतीय बाजारों में सस्ते दर की अच्छे किस्म की वस्तुओं की बाढ़ आ गई।इससे भारतीय उद्योगों द्वारा बनाई गई वस्तुओं की बिक्री में भारी कमी आई। पूंजी की कमी, तकनीकी ज्ञान के अभाव आदि के कारणों से भारत औद्योगिकीकरण का लाभ न उठा सका और आर्थिक रूप से पिछड़ गया। ग्रामीण उत्पादन प्रणाली में मशीन का प्रयोग बढ़ने से भी हस्तशिल्प उद्योगों का ह्रास हुआ, मशीनों द्वारा स्वाभाविक रूप से बढ़ती मांग को पूरा किया जाने लगा।देशी रजवाड़े हस्तशिल्प उद्योगों के संरक्षक थे। उनके संरक्षण के समाप्त होने के कारण हस्तशिल्प में उत्पादित वस्तुओं के खरीददार समाप्त हो गए, जिसका हमारे उद्योग पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा। ईस्ट इंडिया कम्पनी यद्यपि इन उद्योगों को प्रश्रय प्रदान कर सकती थी, परन्तु उसने अपने गृह राज्य के दबाव में आ कर ऐसा काम किया जो भारतीय उद्योग के लिए अहितकर हुए। भारतीय उद्योगों का इसलिए भी विनाश हुआ कि अंग्रेजों की सीमा शुल्क नीति और परिवहन नियमन के तरीके भारत के हित के प्रतिकूल में थे, जिससे भारतीय व्यापारियों को व्यापार करने में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। उदाहरण स्वरूप लार्ड लिंटन के शासनकाल में भारत में बनी कपास की वस्तुएं जो बाहर के देशों में भेजी जाती थी, उन पर अतिरिक्त शुल्क लगाया गया, जबकि भारत में इंग्लैंड से लाई कई कपास की वस्तुओं पर इस शुल्क को माफ कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हुई, जबकि इंग्लैंड में बनी वस्तुओं के मूल्य में कमी। इससे भारतीय वस्तुओं की मांग पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा, जिससे हस्तशिल्प उद्योग भी प्रभावित हुआ। भारतीय उद्योगों के ह्रास का एक कारण इनके मंडी या बाजार का सीमित होना भी रहा, चूंकि भारत के हस्त शिल्प उद्योग मध्ययुगीन समाज के सीमित अभिजात्य वर्ग की पहुंच तक ही सीमित थे।ब्रिटेन की आर्थिक नीति के कारण भी परम्परागत उद्योगों का विनाश हुआ। इस नीति के तहत भारत में नये उद्योगों को विकसित होने से रोका गया। क्योंकि भारत में नये उद्योगों के विकास से ब्रिटेन में उत्पादित वस्तुओं की भारत में खपत घट जाती। इसके अलावे एक अन्य कारण से भी ब्रिटेन ने भारत को मूलतः कृषि प्रधान बनाए रखने का प्रयास किया। चूंकि इंग्लैंड को अपने उद्योगों को चलाने के लिए भारतीय कच्चे मालों के उत्पाद की जरूरत थी। इस तरह भारत एक औद्योगिक राष्ट्र का कृषि प्रधान औपनिवेशिक उपयोग बन कर रह गया जो आज तक वही प्रथा के कारण किसानों को किस्मत नहीं बदली और वो लाचार और विवश नजर आते हैं। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 29 जुलाई /2025