अंतर्राष्ट्रीय
01-Aug-2025
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लंदन (ईएमएस)। डिमेंशिया जैसे गंभीर न्यूरोलॉजिकल रोग का निदान औसतन साढ़े तीन साल की देरी से होता है, जिससे मरीजों और उनके परिवारों को समय पर इलाज और मदद नहीं मिल पाती। यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है एक ताज अध्ययन में। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों जैसे याददाश्त की कमजोरी, शब्दों को याद करने में कठिनाई, भ्रम, और व्यवहार में बदलाव को अक्सर उम्र बढ़ने का सामान्य हिस्सा मान लिया जाता है। यही कारण है कि लोग चिकित्सकीय मदद लेने में देरी करते हैं। अध्ययन में 13 अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के डेटा की समीक्षा की गई, जिसमें यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और चीन के कुल 30,257 मरीजों की जानकारी शामिल थी। इसमें यह भी सामने आया कि कम उम्र में शुरू होने वाले डिमेंशिया और फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया के मामलों में औसतन 4.1 साल तक निदान में देरी हो सकती है। कुछ समूहों में यह समय और अधिक हो सकता है। यूसीएल की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. वासिलिकी ऑर्गेटा ने बताया कि डिमेंशिया का समय पर निदान आज वैश्विक स्तर पर एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि उचित स्वास्थ्य रणनीतियों के जरिये निदान प्रक्रिया को बेहतर बनाना आवश्यक है। समय पर पहचान और इलाज से मरीजों को बेहतर जीवन गुणवत्ता और अधिक समय तक हल्के लक्षणों के साथ जीने में मदद मिल सकती है। डॉ. फुओंग लेउंग ने बताया कि सामाजिक कलंक, डर और जागरूकता की कमी भी निदान में देरी का बड़ा कारण है। बहुत से लोग लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं या इसे बुढ़ापे से जोड़कर टाल देते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि डिमेंशिया से लड़ने के लिए सबसे जरूरी कदम है चिकित्सकों को इस रोग के प्रति संवेदनशील और प्रशिक्षित बनाना, ताकि वे शुरुआती लक्षणों को पहचान सकें और मरीजों को उचित देखभाल मिल सके। इसके साथ ही जागरूकता अभियान चलाकर लोगों में जानकारी बढ़ाना भी जरूरी है, जिससे वे लक्षणों को गंभीरता से लें और समय रहते मदद लें। सुदामा/ईएमएस 01 अगस्त 2025