लेख
02-Aug-2025
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- राजनीति में नैतिकता, जनसेवा और नवाचार के अद्वितीय संयोजक : राजेन्द्र शुक्ल (उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल के जन्म-दिवस 3 अगस्त पर विशेष) कुछ व्यक्तित्व केवल अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करते, वे एक विचार बन जाते हैं। राजनीति, प्रशासन, विकास और जन-भावनाओं के मध्य जब संतुलन की आवश्यकता होती है, तब कुछ ही लोग होते हैं जो इस संतुलन को दृढ़ता, संवेदनशीलता और दूरदृष्टि के साथ निभा पाते हैं। ऐसे ही एक कर्मठ नेता हैं— श्री राजेन्द्र शुक्ल। रीवा की धरती से राष्ट्रीय दृष्टिकोण तक की यात्रा उप मुख्यमंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल का जीवन एक अभ्यास है — उन मूल्यों का जो राजनीति को सत्ता का साधन नहीं, सेवा और संवेदना का पथ बनाते हैं। रीवा की सांस्कृतिक भूमि पर पले-बढ़े शुक्ल जी की संगठन क्षमता और जन-भावना को समझने की उनकी क्षमता ने उन्हें प्रारंभ से ही विशिष्ट बना दिया। आज वे पाँच बार से लगातार विधानसभा सदस्य हैं, यह कोई आकस्मिक राजनीतिक उपलब्धि नहीं, यह जनता द्वारा उस ईमानदार नेतृत्व को बार-बार चुने जाने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। विनम्रता, स्पष्टवादिता और संवादशीलता: न कभी बात घुमाते हैं, न टालते हैं श्री शुक्ल जी का व्यक्तित्व सतही राजनैतिक भाषणों से इतर, गंभीर, परिपक्व और सन्नद्ध विचारशीलता का है। वे जिस आत्मीयता से जन-सामान्य से संवाद करते हैं, वह केवल एक राजनेता की शैली नहीं, बल्कि एक जन-सेवक की सहज प्रवृत्ति है। स्पष्टता उनके व्यक्तित्व की रीढ़ है, चाहे वह किसी प्रशासनिक निर्णय पर हो, या किसी सामाजिक विषय पर; वे न कभी बात घुमाते हैं, न टालते हैं।उनका यह स्वभाव उन्हें लोकप्रियता से परे जाकर विश्वसनीयता प्रदान करता है। कार्यकर्ताओं के लिए वे ‘राजेन्द्र भैया’ हैं और अफसरों के लिए एक ‘न्यायप्रिय, अनुशासित और विचारवान मार्गदर्शक’। यह दुर्लभ संतुलन उन्हें मध्यप्रदेश के प्रशासनिक ढाँचे का एक आधार स्तंभ बनाता है। राजनीतिक जीवन के प्रारंभिक वर्षों से ही उन्होंने संगठनात्मक अनुशासन, विचारधारात्मक प्रतिबद्धता और विकासोन्मुख सोच के साथ सार्वजनिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाई। जन-सेवक के रूप में उन्होंने शासन की विभिन्न जिम्मेदारियाँ संभालते हुए आवास, पर्यावरण, वन, जैव-विविधता, ऊर्जा, खनिज, उद्योग, जनसम्पर्क, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी जैसे जटिल विभागों का नेतृत्व न केवल जिम्मेदारी से किया, बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में दीर्घकालिक नीतिगत परिवर्तन लाने का कार्य किया। ऊर्जा विभाग में कार्य करते हुए उन्होंने राज्य को 24 घंटे बिजली देने के सपने को अटल ज्योति योजना के माध्यम से यथार्थ में बदल दिया। उनका विश्वास था कि सशक्त ऊर्जा व्यवस्था के बिना औद्योगिक विकास और ग्रामीण सशक्तिकरण अधूरा है। नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में रीवा का ऐशिया का सबसे बड़ा सोलर पॉवर प्लांट विकास और पर्यावरण संतुलन की अद्वितीय मिसाल है। स्थानीय भावनाओं के साथ विकास की एकात्मता उप मुख्यमंत्री श्री शुक्ल ने यह भली-भांति समझा कि विकास का अर्थ केवल भौतिक नहीं है, बल्कि जन-भावनाओं, परंपराओं और सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ उसका समन्वय भी जरूरी है। यही कारण रहा कि उन्होंने स्थानीय गौरव सफेद बाघ को उसके प्राकृतिक आवास में पुनः लाकर लोगों की भावनाओं का सम्मान किया। यह निर्णय मात्र वन्य संरक्षण का नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक अस्मिता का था, जिसे जनता दशकों से जीवंत देखना चाहती थी।पर्यावरण संरक्षण उनके चिंतन का स्थायी हिस्सा रहा है।गौ-संरक्षण, तालाबों के पुनर्जीवन, बड़े पुलों और सड़कों के निर्माण, मंदिरों एवं तीर्थ-स्थलों के संरक्षण और रिंग रोड जैसी परियोजनाओं के माध्यम से उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि विकास केवल आँकड़ों में नहीं, बल्कि आम जन-जीवन के अनुभवों में परिलक्षित हो। जन-स्वास्थ्य, सिंचाई, सड़क, शिक्षा, एयरपोर्ट, हवाई सेवाओं का विस्तार और शहरी अधोसंरचना जैसे विषयों पर उनकी सोच स्थायित्व और समावेशिता पर केन्द्रित रही। उन्होंने पेयजल योजनाओं, सिंचाई विस्तार, स्वास्थ्य संस्थानों की गुणवत्ता में सुधार और चिकित्सकों की नियुक्ति जैसे कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। श्री शुक्ल का विश्वास रहा है कि शासन केवल निर्देश देने का माध्यम नहीं, बल्कि जन-सामान्य की भागीदारी से संचालित सामाजिक अनुबंध है। उन्होंने खाली पड़ी शासकीय भूमि को हरित बगीचों और उद्यानों में बदलकर शहरी सौंदर्य में वृद्धि की। युवाओं के लिए खेल अधोसंरचना तैयार कर उन्हें स्वाभिमान और राष्ट्रीयता के साथ जोड़ा। गौ-सेवा के प्रति उनका समर्पण उनके संवेदनशील नेतृत्व की झलक देता है। उन्होंने गौ-सेवा को आर्थिक रूप से व्यवहार्य एवं सामाजिक रूप से समावेशी बनाकर एक मॉडल प्रस्तुत किया। गौ-अभयारण्य और गौ-प्रबंधन के नवाचारों के माध्यम से उन्होंने ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था में एक स्थायी आय स्रोत की कल्पना साकार की। शिक्षा और संस्कृति के प्रति दीर्घदृष्टि उप मुख्यमंत्री श्री शुक्ल के चिंतन का महत्वपूर्ण स्तम्भ शिक्षा रहा है। संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना, नवीन महाविद्यालयों की संरचना और छात्रावासों के निर्माण में उन्होंने निरंतर नेतृत्व प्रदान किया। संस्कृति के संरक्षण को उन्होंने केवल आयोजनों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे शिक्षा, अधोसंरचना और नेतृत्व विकास का आधार बनाया। विकास के प्रति उनकी सोच: गहराई और समरसता उप मुख्यमंत्री श्री शुक्ल विकास को मात्र योजनाओं की श्रृंखला नहीं मानते। उनके लिए यह एक बहु-आयामी प्रक्रिया है, जो शासन की संवेदनशीलता, समाज की भागीदारी, और भविष्य की परिकल्पना के साथ मिलकर पूर्ण होती है।उनके भाषणों और संवादों में अक्सर यह बात उभर कर आती है कि हर योजना को बनाने से पहले उसके अंतिम लाभार्थी की आवश्यकता, सामर्थ्य और परिस्थिति को समझना चाहिए। यही सोच उन्हें योजनाओं के मूल्यांकन, संशोधन और समावेशी पुनर्रचना की ओर प्रेरित करती है। संघर्षशीलता और संवादशीलता: नेतृत्व की दो धाराएँ श्री शुक्ल का राजनीतिक जीवन वैचारिक स्पष्टता और व्यक्तिगत ईमानदारी का समन्वय है। उन्होंने कभी भी संघर्ष से कतराने की प्रवृत्ति नहीं अपनाई, चाहे वह जमीनी मुद्दों को शासन तक पहुँचाना हो या संकट की घड़ी में जनता के बीच खड़े रहना।वहीं दूसरी ओर, वे संवाद के पक्षधर हैं। उन्होंने प्रशासन और जनता के बीच सेतु बनकर भरोसे और पारदर्शिता की संस्कृति को मजबूत किया है।श्री शुक्ल केवल एक जन-प्रतिनिधि नहीं हैं। वे मूल्य-आधारित राजनीति के जीवंत प्रतीक हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि नेतृत्व ईमानदार, दृष्टि-संपन्न और संवेदनशील हो, तो कोई भी क्षेत्र पिछड़ा नहीं रह सकता, कोई भी समाज दिशाहीन नहीं होता।उनके नेतृत्व में स्थानीय आकांक्षाओं को गति मिली है, क्षेत्र को सांस्कृतिक पुनरुत्थान और सतत विकास की दिशा प्राप्त हुई है। सोच जो सामान्य से असामान्य की ओर ले जाती है यदि श्री शुक्ल जी की कार्यशैली को एक शब्द में बांधना हो, तो वह है ‘समस्याओं को अवसर में बदलने की दृष्टि’। नीति निर्धारण में भावनाओं और संभावनाओं का समावेश।वे यह मानते हैं कि विकास तब संपूर्ण होगा, जब उसका लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे, चाहे वह किसी जन-जातीय अंचल में हो या किसी शहरी झुग्गी में।श्री शुक्ल मानते हैं कि आज की राजनीति में यदि सबसे बड़ी ज़रूरत किसी चीज़ की है, तो वह है, आत्मावलोकन और उत्तरदायित्व का भाव। उनका मानना है कि नेतृत्व केवल मंच पर भाषण देने का नाम नहीं, अदृश्य श्रम और सुलभ संवाद का निरंतर अभ्यास है। वे युवाओं को सलाह देते हैं: जोश को होश से जोड़िए। विचारशील बनिए, केवल प्रतिक्रियाशील नहीं। अपने भीतर उस नागरिक को खोजिए, जो केवल अधिकार नहीं माँगता, बल्कि कर्तव्यों की भी चिंता करता है। उनकी यह सलाह केवल भाषण का अंश नहीं, उनकी पूरी कार्यशैली की आत्मा है। राजनीति सिर्फ सत्ता की होड़ नहीं होती, बल्कि यह समाज की दिशा, उम्मीदों का निर्माण और साझा ज़िम्मेदारी का माध्यम होती है। ऐसे नेता कम ही होते हैं जो सत्ता को साधन मान कर, सिद्धांत, सेवा और संवेदना को लक्ष्य मानते हैं। श्री राजेन्द्र शुक्ल ऐसे ही दुर्लभ नेताओं में से एक हैं।श्री शुक्ल का जीवन-दर्शन स्पष्ट है: सत्ता तो क्षणिक होती है, पर सिद्धांत स्थायी। ज्ञान और नैतिकता के बिना कोई समाज सशक्त नहीं रह सकता।मंत्री पद पर रहते हुए वे कभी अकेले निर्णय नहीं लेते। लोकहित, प्रभावशाली क्रियान्वयन एवं प्रशासन का समन्वय उनके निर्णय की मूल आधारशिला हैं।उनकी सबसे बड़ी विशेषता है संवाद के माध्यम से नीति निर्माण।जनता की सुनवाई करते हैं, केवल समस्या नहीं, बल्कि माँग को समझते हैं।अधिकारियों से बातचीत करते हैं, लेकिन उन्हें मानव-सम्मान और दृष्टिकोण से जोड़ते हैं।हर निर्णय को केवल तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से देखते हैं।वे नीतियों को केवल कागज़ी दस्तावेज़ नहीं मानते, बल्कि मानवतावादी प्रक्रियाएँ बनाते हैं।उनकी यह प्रक्रिया केवल शासन-पद्धति नहीं, बल्कि एक मानव-केंद्रित दर्शन पेश करती है। नैतिकता और संयम: राजनीति का संतुलित पथ आम राजनीतिक हलचलों में जहाँ कटुता, ध्रुवीकरण, स्वार्थ की राजनीति और जोर ज़रूरी हो जाता है, वहाँ श्री शुक्ल जी ने अपनी कर्मठता, सादगी, संयम, सत्यनिष्ठा को अपनाया। उनका मानना है किबहस को संवाद तक सीमित रखिए, विवेकहीन आलोचना की जगह सृजनात्मक सुझाव दीजिए, जनहित को स्वयं से ऊपर रखिए।इस दृष्टिकोण ने उन्हें एक ऐसी स्थिति दी, जहाँ राजनीति धर्म, नैतिकता, और लोक-संगठन का अंग बन गई। राजनेता के साथ-साथ एक व्यक्तिगत जीवन भी होता है, जिसे श्री शुक्ल ने सादगी, प्रेम और नैतिकता से निभाया।परिवार में वे शांत, विचारशील और समय देने वाले सदस्य हैं।मित्रों में वे भरोसेमंद, संघर्षशील और सकारात्मक्ता से परिपूर्ण हैं।श्री शुक्ल सहकर्मियों और ऑफिस स्टॉफ के प्रति सदैव संवेदनशील रहते हैं।अपने व्यवहार में वे सरल और संवादप्रिय हैं। अपने पिता विंध्य की पहचान, समाजसेवी स्व. श्री भैयालाल शुक्ल के चरित्र की विशेषताओं और जनसेवा के भाव को शिरोधार्य कर उप मुख्यमंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल उनकी विरासत को सहेजने और आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं। उनकी मीठी वाणी, विनम्रता और विचारों का सहज आदान-प्रदान करने की प्रवृत्ति सबको आकर्षित करती है। इन व्यक्तिगत अभिव्यक्तियों ने उन्हें जनता के दिलों में और मन में सरल, सशक्त और स्नेहमयी तस्वीर दी है। (ताहिर अली, सेवानिवृत्त संयुक्त संचालक, जनसम्पर्क संचालनालय, मध्यप्रदेश शासन, भोपाल) ईएमएस / 02 अगस्त 25