लेख
04-Aug-2025
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सरकारी जांच एजेंसियों पर कथित रूप से राजनीति हावी होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता जताई है, अपरोक्ष रूप से यह कहा जा रहा है कि सरकारी जांच एजेंसियां चाहे वह सीबीआई हो या सीआईडी या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सभी अपनी निष्पक्षता त्याग कर सरकार के निर्देशन में काम कर रहे हैं और सरकार में विराजित सत्तादल अपने विरोधियों को निपटाने के लिए इनका दुरुपयोग कर रहा है। ताजा उदाहरण प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा वकीलों और नेताओं को समन जारी करना है, सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि ईडी की इस दादागिरी को रोकने के लिए इस पर नियंत्रण हेतु आवश्यक मार्ग निर्देशक सिद्धांत (गाईडलाइन) जरूरी है। इस उदाहरण के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि न्यायालयों को राजनीति का अखाड़ा बनाने की कोशिशों को रोका जाना चाहिए, वरना न सिर्फ न्याय व्यवस्था बल्कि प्रजातंत्र की भी जडे हिल जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी दी कि ईडी सभी सीमाएं पार कर रहा है, ऐसा नही चल सकता, इसे रोकने के लिए तत्काल मार्गदर्शक सिद्धांत (गाईडलाइन) जारी करना चहिए। नेताओं पर मामलों और अपीलों पर नाराज न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक लड़ाइयां न्यायालय परिसर से बाहर जाकर लड़ी जानी चाहिए। न्यायालय परिसर को इसका अखाड़ा नहीं बनाया जाना चाहिए, मुवक्किलों से हुए संदेशों के आदान-प्रदान को लेकर वकीलों को ईडी द्वारा समन भेजना के स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश वीआर गवई ने कहा कि ईडी ऐसा कैसे कर सकता है? ईडी का विरोध कर रहे वकीलों ने भी इस प्रथा पर हमेशा के लिए रोक लगाने की मांग की है। मुख्य न्यायाधीश गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.के. अजरिय की बैंच में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तथा अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने माना की ईडी ने गलत किया है और वकीलों के भेजे गए समन वापस ले लिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इंडिया बुल्स के मामले में नोटिस के बावजूद उपस्थित न होने पर सीबीआई को भी फटकार लगाई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जामाल्या बागची की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही थी, याचिकाकर्ता के वकील की आपत्ती थी कि घोटाले की न तो सीबीआई ने शिकायत दर्ज की और न नोटिस के बावजूद कोर्ट में उपस्थिति दर्ज कराई, इस पर बेंच ने नाराजी जताई, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हमें सीबीआई का यह रवैया पसंद नहीं है, अदालती नोटिस पर उपस्थिति जरूरी है। इस प्रकार कुल मिलाकर अकेले इस प्रकरण से नहीं बल्कि ऐसे अनेक प्रकरण है, जिनसे यह स्पष्ट हो रहा है कि सरकारी जांच एजेंसियां निष्पक्ष रूप से काम करने के बजाय सरकार की मर्जी के मुताबिक काम कर रही है और इस कारण से आमजन को निष्पक्ष न्याय नहीं मिल पा रहा है। यह मूल रूप से राजनीति की गुलाम बन चुकी है। आज के शासन-प्रशासन व राजनीति की मौजूदा दिशा जानने के लिए यह एक उदाहरण भी काफी है, यदि यही चलन चलता रहा तो हमारे प्रजातंत्र की भावी दिशा कैसी व कितनी जनहितकारी होगी? इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है, साथ ही इस बात की भी गहन चिंता है कि प्रजातंत्र के यह स्तंभ एक दूसरे के काम में हस्तक्षेप करके आखिर क्या चाहते हैं? और देश को कौन से रास्ते पर ले जाना चाहते हैं? (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 4 अगस्त /2025